युद्ध सुरक्षा के लिए हो तो धर्म है।

युद्ध सुरक्षा के लिए हो तो धर्म है।

युद्ध सुरक्षा के लिए हो तो धर्म है।


लेखिका-ऊषा बेन अनिल कुमार जोषी पालनपुर गुजरात

युध्द शब्द, किसी भी शांतिप्रिय समुदाय या शांतिप्रिय इन्सानों को  अच्छा नहीं लगता है। हमें भी ये शब्द बिलकुल नहीं भाता ,किन्तु विश्व पर नजर डालें तो,..भूत हो या वर्तमान, कहीं ना कहीं युद्ध अपना ताँडव दिखाता रहता है?

ये शब्द तो  छोटा  सा लगता है, परंतु उसके पीछे की त्रासदी  बहुत लम्बी और कष्टदायक है।युद्ध से होनेवाले नुकसान का तो अंदाजा भी लगाना मुश्किल 
होता है।  कितने घर कितने सुहाग उजड़ते है यह सोचकर भी रूह कांप उठता है।

कितने बच्चे अनाथ हो जाते है ,बसा बसाया शहर उजड़ जाता है,जिसे बसाने में कई दशक की मेहनत होती है ,किसी किसी की तो पूरी जिंदगी की कमाई होती हैजो एक ही झटके में बर्बाद हो जाता है ,एक ही बम के हमले में तहस नहस हो जाता है?

एक तरफ युद्ध शब्द सूनते ही  इंसान अपने स्वभाव मुताबिक..,  खौफ, चिंता में घिर जाता है, तो वही किसी  शूरवीर के दिल मे तो शौर्य वीरता के अश्व दौडने लगते है। युद्ध की खूँखार भयानकता मनुष्य मन से आकार लेती हुई जमीं पे अपना खेल दिखाना शुरू कर देती है ! दुनिया मे जितने भी  युद्ध युद्ध हुए उनपर  नजर डालें तो, युद्ध के ज्यादातर कारण साम्राज्य विस्तार की लालसा एवं नीजी स्वार्थ होता  है, तो कभी ,.कहीं कई बार राष्ट्र की रक्षा से प्रेरित होकर भी युद्ध हुए है।  

इंसान को अपने अंतिम समय मे, छः फुट की जमीन की आवश्यकता होती है यह  जानते हुए भी छःसौ  फुट की जमीन की लालच,लालसा को वह रोक नहीं पाता? ! युद्ध से , कोई भी राष्ट्र की सिर्फ ऐश्वर्य या मानव की खुवारी ही नहीं  किन्तु सभ्यता, संस्कृति और देश की अस्मिता का भी ह्रास  होता है।

   हम अपने राष्ट्र की बात करें तो भारत सोने की चिडिया कहलाता था,  हमारा ऐश्वर्य देख बार बार परदेशी आक्राँताओं ने भारत पर  दसों  दिशाओं  से  आक्रमण किये , कई प्रकार के युद्ध हुए , जैसे की हाईडे स्पीच, सिकंदर पोरस के बीच, कलीँग युद्ध, सिँध की लडाई, तराईन प्रथम, द्वितीय, चंदावर का, पानीपत प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चंदेरी, खानवा का घाघरा युद्ध, चंद्र गुप्त, सेल्यूकस का, बप्पा रावण, हल्धीघाटी 1857 का विप्लव, प्रथम, द्वितीय विश्व युद्ध जैसे युद्ध हुए, 

जहाँ हमारे  परम वीरों, विरांगनाओं, क्रांतिकारीओँ,वीर सम्राटों,- पोरस ,चंद्रगुप्त मोर्य,पृथ्वीराज चौहान, महाराना प्रताप, बप्पा रावल, विजय नगर के,चालुक्य, यादव वंश के सम्राटों ,शिवाजी महाराज, तानाजी, गुरु गोविंद सिंह जी,उनके दोनों वीर सपूतों, राजा विक्रमादित्य, झांसी की रानी, रानी अहल्या बाई, रानी नायिकी देवी,ताराबाई, दुर्गा मती,दुर्गा भाभी, रानीअबका चौटा, रानी चेनम्मा जैसे वीर, वीराँगनाओ ने, राष्ट्र एवं धर्म को बचाने हेतु, इन दुष्ट विधर्मियों का बड़े साहस एवं वीरता से डटकर कडा मुकाबला कर राष्ट्र की रक्षा तथा गौरव के लिए  हंँसते मुँह अपने प्राणोंकी आहुति दी।          

                      भारत देश हमेशा शाँति प्रिय रहा है किसी से बैर  या  किसी पे आक्रमण नहीं करता, अपितु "वसुदेव कुटुम्बकम" की भावना रखता है, परन्तु  जब जब
भारत पर आक्रमण हुआ है,तब तब धर्म ,न्याय, राज्य और राष्ट्र की प्रजा,परिवार की रक्षा के लिए युद्ध करने से कभी पीछे नही हटी है। कभी..न  ही ,झुकी नहीं है।                 आज के परिप्रेक्ष्य मे देखें तो भारत पाकिस्तान युद्ध-1947/48,भारत चीन 1962, भारत पाकिस्तान 1965 कारगिल युद्ध 1999 जैसे युद्ध संग्रामों मे हमारे सैनिको,शूरवीरोँ ने देश की सीमा रक्षा के लिए ,अपने खुन से लक्ष्मण रेखा तय की है। हमारे वीर सपूतों ने कभी भी रणमैदान मे पीठ नहीं दिखाई है।...
"जब हम बैठे थे घरों मे.,

वो खेल रहे थे..खुन की होली!"

 हमारे वीरों ने अपना खुन बहाके  राष्ट्र की अस्मिता को आँच नहीं आने दी है, उनकी वीरता ही हमारे त्रिरंगा का, भगवा का रुआब है, गौरव है।।  इतना कुछ होते, देखते हुए भी हमारी कमनसीबी हुई कि,, हमारे वीरोँ,वीराँगनाओ के शौर्य की कहानियां  देश के गद्दारो ने छुपाई, हमारे स्थापत्य, कला,शिल्प को छुपाया गया। संप्रभुता,सेकुलरिज्म की आड मे ,गद्दारोँ ,खुनियोँ को देश भक्त कहा गया?!         
                          
किन्तु अब बहुत हो चुका प्रजातंत्र जग चुका है,सब जान चुके है कि,वीरों का इतिहास उजागर हो चुका है। अथर्ववेद मे कहा है कि

,"व्याध्रँ दत्वतां वयं प्रथमं जन्म यामसी।
 आ दुष्टनमथां अहिं यातुधान मथां वृकम।।" 
,अर्थात दुष्ट व हिंसक प्राणी चोर और बदमाशों का नाश करना धर्म है-
"अहिंसा परमो धर्म, धर्म हिंसा तथैव च।" 

अहिंसा सबसे बडा धर्म है और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा भी उसी प्रकार श्रेष्ठ है। भगवा के त्याग, बलिदान का महत्व राष्ट्र प्रेमियों जान चुके है ,अब ईतिहास के बंद पन्नों को खोज कर संवारे जा रहे है। हम शांति प्रिय जरूर है किन्तु अगर किसी ने भूत को दोहराने की कोशिश  दुबारा की तो हमारे जवानों चुप नहीं बैठेंगे। युद्ध हो या जीवन जब राष्ट्र की रक्षा के लिए रणनाद ह़ोता है तो राष्ट्र की सुरक्षा के लिए जरूरत  दौड़ पड़े ।       

                अभी रशिया / युक्रेन बीच युद्ध चल रहा है। युद्ध की  भयावहता देखते हुए भी ,दुनिया का नैतृत्व ,युद्ध की अनदेखी करते हुए पलायन वाद करतें रहते हुए देखे जा रहे है। हमारे प्रधानमंत्रीजी ने कहा कि 

" हम युद्ध नहीं चाहनेवालों मे से हैं, सीमा ओर राज्य बांटे जाते हे, रिश्ते नहीं। कोई भी दो देशों के बीच चल रहे युद्ध का प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव दुनिया के हर देश पर डालता है, बातचीत के दौरान हर समस्या का समाधान हो सकता है। एक तरह से देखें त़ो आंतरराष्ट्रीय बाजार मे पुरा विश्व एक दूसरों से जुडा हुआ है। हमें गर्व हे हमारा देश आत्मनिर्भर अभियान के मार्ग आगे बढ रहा है।

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है" मेरी प्राचीन मातृभूमि पुनः जागृत हो चुकी है, पहले से ज्यादा भव्य बनके सिहासन मे बैठ रही है।" पंडित दीनदयाल जी ने कहा था कि " हम सब भारत माता को सच्चे अर्थ मे सुजलाम सुफलाम बनाकर रहेंगे, जो दुर्गा बन असुरों का संहार करेगी, लक्ष्मी जी बन देश समृद्ध करे, सरस्वती जी बनके ज्ञान का प्रकाश फैला देगी। हमारी आंखों मे स्वर्णिम स्वप्न है। सनातन संस्कृति के हम पुजारी है। " सुभाष बाबु ने भी कहा," भारत समग्र  विश्व के लिए आशिर्वाद रुप होगा।"                                    

युद्ध की कथा सुन हमें हमारे वीरों के बलिदानों को याद कर मस्तिष्क को जगाना है। हमारी भव्य संस्कृति गौरव को याद रखना है। हमारे जड़ तंत्र क़ो चेतना देनी है। हमारे देश के वीरों विरांगनाओं, क्रांतिकारीओं को कोटी कोटी नमन, जिन्होंने राष्ट्र के खातिर अपना घर, परिवार, समाज, छोड़ राष्ट्र की रक्षा को  अपना गौरव समझा।
 

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