द वायर के संपादक रिपोर्टर के विरुद्ध कायम मुकदमे की एफआईआर रद्द।

द वायर के संपादक रिपोर्टर के विरुद्ध कायम मुकदमे की एफआईआर रद्द।

द वायर के संपादक रिपोर्टर के विरुद्ध कायम मुकदमे की एफआईआर रद्द।


इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला


स्वतंत्र प्रभात।
प्रयागराज ब्यूरो

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने द वायर, इसके संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और रिपोर्टर इस्मत आरा के खिलाफ पिछले साल 26 जनवरी, 2021 को नई दिल्ली में कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे एक प्रदर्शनकारी की मौत की रिपोर्ट के संबंध में उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर को खारिज कर दिया है।

जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस रजनीश कुमार की खंडपीठ ने कहा है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा किए गए प्रकाशन के अध्ययन से संकेत मिलता है कि इसमें घटना के तथ्य का उल्लेख किया गया है।

उसके बाद घटना के संबंध में परिवार के सदस्यों के बयान और डॉक्टरों द्वारा दी गई कथित जानकारी, यूपी पुलिस के इससे इनकार और उस दिन क्या हुआ था दर्ज है।

खंडपीठ ने घटनाओं की क्रोनोलॉजी पर भी टिप्पणी की और कहा कि रिपोर्ट को बाद में रामपुर पुलिस के बयान के साथ अपडेट किया गया था। खंडपीठ ने कहा कि रिपोर्ट का प्रकाशन 30 जनवरी की सुबह 10.08 मिनट पर हुआ और इसी दिन शाम 4.39 बजे रामपुर पुलिस ने तीन डॉक्टरों का स्पष्टीकरण जारी किया, जिसे कुछ मिनटों बाद 4.46 पर याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रकाशित किया गया। रामपुर पुलिस का कहना था कि यह ट्वीट जनता को उकसाने, दंगा फैलाने और मेडिकल अधिकारियों की छवि ख़राब करने वाले थे। अदालत ने इस दावे पर भी टिप्पणी की है।

खंडपीठ ने कहा कि उक्त खबर यह नहीं बताती कि याचिकाकर्ताओं ने कोई राय व्यक्त की थी, जिसके कोई नतीजा निकला। इसलिए अदालत को याचिकाकर्ताओं की ओर से कोई राय या दावा नहीं मिलता है जो लोगों को उकसा या भड़का सकता। इस अदालत के सामने यह बताने के लिए कुछ ऐसा पेश नहीं किया गया कि याचिकाकर्ताओं के खबर/ट्वीट के प्रकाशन के कारण कहीं अशांति या दंगा हुआ, जिसका सार्वजनिक व्यवस्था पर कोई असर पड़ सकता था।

खंडपीठ ने कहा कि इस रिपोर्ट में केवल पीड़ित परिवार के कथन शामिल थे और ऐसी कोई सामग्री नहीं थी, जिससे उकसावा मिलता हो। खंडपीठ ने कहा कि द वायर की रिपोर्ट में सिद्धार्थ वरदराजन या इस्मत आरा ने अपनी राय जाहिर नहीं की है और इसमें केवल पीड़ित परिवार और डॉक्टरों की बात को ही रखा गया है।

यह मामला पहली बार 31 जनवरी 2021 को वायर के सम्पादक सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ उनके एक ट्वीट को लेकर रामपुर जिले के सिविल लाइंस थाने में दर्ज किया गया था। इस ट्वीट में उन्होंने इस्मत आरा की उसी साल 30 जनवरी को द वायर द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट को साझा किया था। वरदराजन के खिलाफ आईपीसी की धारा 153बी और 505 के तहत मामला दर्ज होने के एक दिन बाद इसमें इस्मत और द वायर का नाम जोड़ा गया था।

इस रिपोर्ट में 26 जनवरी 2021 को हुई किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान मारे गए प्रदर्शनकारी नवरीत सिंह के दादा हरदीप सिंह डिबडिबा के हवाले से कहा गया था कि उनके पोते की मौत दुर्घटना से नहीं बल्कि गोली लगने से हुई है। सिंह के परिवार ने दिल्ली पुलिस के इस दावे को मानने से इनकार कर दिया था कि उनकी मौत इसलिए हुई क्योंकि उनका ट्रैक्टर पलट गया था। उनका कहना था कि नवरीत को गोली मारी गई है। जिन किसानों ने कहा था कि वे आईटीओ के पास हुई घटना के गवाह थे, उन्होंने भी पहले यही दावा किया था। द वायर की रिपोर्ट में पुलिस और अस्पताल प्रशासन के बयान भी शामिल किए गए थे।

द वायर ने शुरू में यह कहते हुए कि यह प्रेस की स्वतंत्रता पर एक हमला है, रामपुर, बाराबंकी और गाजियाबाद में तीन अलग-अलग रिपोर्ट्स को लेकर यूपी पुलिस द्वारा दर्ज की गई तीन प्राथमिकी को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। हालांकि द वायर ने अपनी याचिका तब वापस ले ली जब अदालत ने कहा कि उसे पहले अलग से उच्च न्यायालय जाना चाहिए।

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