विज्ञान कोई मंजिल नहीं, यह यात्रा है
[जहाँ सवाल होते हैं, वहीं विज्ञान जन्म लेता है]
एक अंधेरी रात में, सदियों पहले, कोई इंसान आकाश की ओर देखता है और मन में सवाल उठता है – “ये तारे क्यों टिमटिमाते हैं? ये ग्रह क्यों घूमते हैं?” यही सवाल गैलीलियो को दूरबीन थामने के लिए प्रेरित करता है, न्यूटन को सेब गिरते देखने के लिए मजबूर करता है, और आज हम मंगल पर मानव बस्तियाँ बसाने का सपना देख रहे हैं। विज्ञान केवल किताबों या डिग्रियों तक सीमित नहीं है – यह वह अंतहीन जिज्ञासा है, जो इंसान को इंसान बनाती है। हर साल 10 नवंबर को जब हम विश्व विज्ञान दिवस मनाते हैं, हम उस अविचलित जिज्ञासा को नमन करते हैं, जो अज्ञानता के अंधकार से प्रकाश की ओर हमारी राह खोलती है और हमारी सोच की सीमाओं को पीछे छोड़ देती है।
यूनेस्को ने इस दिवस की शुरुआत 2001 में की थी और इसका नाम रखा था – “शांति और विकास के लिए विश्व विज्ञान दिवस।” इस नाम में ही एक संदेश छिपा है: विज्ञान न किसी देश का गुलाम है, न किसी धर्म का विरोधी। जब दुनिया परमाणु बम की धमकियों से कांप रही थी, उसी समय विज्ञान ने इंसुलिन खोजकर मधुमेह से पीड़ित लोगों को जीवन दिया, पोलियो को जड़ से उखाड़ फेंका, और इंटरनेट जैसी क्रांति से ज्ञान की सीमाओं को तोड़ा। विज्ञान ने हमेशा यह साबित किया है कि उसके हाथों में शक्ति है – विनाश की भी, रचना की भी। दिशा तय करना हमारा काम है। आज जलवायु संकट, वैश्विक महामारी या अंतरिक्ष में नई दुनिया की खोज – हर चुनौती में विज्ञान सबसे आगे खड़ा है, हमारा मार्गदर्शन करता है और मानवता को उज्जवल भविष्य की ओर ले जाता है।
भारत की मिट्टी में विज्ञान की जड़ें गहरी हैं। हजारों साल पहले, जब आर्यभट्ट ने पृथ्वी के घूमने की बात कही, लोग हँसे। आज, हम चंद्रयान-3 के जरिए चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी की खोज कर रहे हैं। कोविड के सबसे कठिन दिनों में, जब पूरी दुनिया वैक्सीन के लिए तरस रही थी, भारत ने कोविशील्ड और कोवैक्सीन विकसित कर एक अरब से ज्यादा डोज़ दुनिया को दीं। इसरो का बजट तो किसी हॉलीवुड फिल्म से भी कम है, फिर भी उसने 104 सैटेलाइट्स एक साथ लॉन्च कर विश्व रिकॉर्ड बनाया। यह कमाल पैसों का नहीं, जुनून का है। और यही जुनून आज के छोटे वैज्ञानिकों में भी दिखता है – राजस्थान की एक लड़की जो सौर ऊर्जा से पानी शुद्ध करती है, बिहार का एक लड़का जो पुराने फोन से वेंटिलेटर बनाता है। ये बच्चे कल के वैज्ञानिक नहीं, आज के हीरो हैं।
लेकिन रास्ते में काँटे भी हैं। अंधविश्वास आज भी सिर ऊँचा किए घूम रहा है। वैक्सीन को लेकर फैल रही अफवाहें, जलवायु परिवर्तन को झुठलाने वाले, ज्योतिष को विज्ञान बताने वाले – ये सभी विज्ञान के असली विरोधी हैं। विज्ञान सवाल करता है, जवाब माँगता है। और जो सवाल से डरते हैं, वे विज्ञान से डरते हैं। हमें चाहिए: स्कूलों में प्रयोगशालाएँ, गाँवों में इंटरनेट, और सबसे ज्यादा – ऐसा माहौल जहाँ सवाल पूछने पर डाँट न हो, बल्कि तारीफ हो। सपना देखिए: दस साल बाद का भारत। हर गाँव में सौर ऊर्जा, हर खेत में ड्रोन, हर बच्चे के हाथ में टैबलेट और दिमाग में सवाल। कैंसर का इलाज सस्ता और सुलभ हो, हवा साफ हो, समुद्र का पानी पीने लायक हो। अंतरिक्ष में हमारा अपना भारतीय स्टेशन हो, जहाँ तिरंगा गर्व से लहराता हो। यह सपना कोई कविता नहीं, यह विज्ञान का वादा है। बस जरूरत है – नीति की, निवेश की, और सबसे बड़ी बात: विश्वास की।
विश्व विज्ञान दिवस कोई केवल त्योहार नहीं है, यह एक पुकार है। पुकार है उस बच्चे की, जो पहली बार दूरबीन से चाँद देखता है और उसकी आँखें विस्मय से चौड़ी हो जाती हैं। पुकार है उस माँ की, जो वैक्सीन लगवाकर अपने बच्चे की सुरक्षा महसूस करती है। पुकार है उस किसान की, जो मौसम की सटीक जानकारी से अपनी फसल बचा लेता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमारा सबसे बड़ा दुश्मन अज्ञान है, और सबसे बड़ा साथी विज्ञान। एक किताब उठाइए, एक सवाल पूछिए, एक प्रयोग कीजिए। क्योंकि जिस दिन हम सवाल पूछना बंद कर देंगे, उसी दिन हम इंसान होना भी बंद कर देंगे। विज्ञान कोई मंजिल नहीं, यह एक यात्रा है – और यह यात्रा अभी शुरू ही हुई है। चलिए, साथ चलें, सवालों के साथ, खोज के साथ, और उज्जवल भविष्य की ओर कदम बढ़ाते हुए।
प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी

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