संजीव-नी। आकाश की अनंत ऊंचाई दो l

संजीव-नी। आकाश की अनंत ऊंचाई दो l

संजीव-नी।
आकाश की अनंत ऊंचाई दो l
 
इनकी छोटी-छोटी हथेलियों में,
पूरे ब्रह्मांड को समा जाने दो,
संपूर्ण संभावना के साथ 
पैदा हुआ नवजात,
एक नन्हा पंछी तो है।
आंखों में भविष्य के सपने 
जल की निश्छलता,
सूरज की किरणों की ताजगी,
चंद्रमा की स्निग्धतता, 
सागर की गहराई और 
गंभीरता लिए हुए 
इन मासूमों को 
आकाश की अनंत ऊंचाइयों दो, इनकी नन्ही छोटी आंखों में 
अपनी आकांक्षाएं, 
अपनी जिद,
अपना अहम मत लादिए, 
इन्हें गगनचुंबी ऊंचाइयों सी 
आशाओं के दीप जलाने दो, 
यह नन्हें ही ब्रह्म है, 
ब्रह्मांड हैं, और ईश्वर है, 
इन्हें न रोकिए ना
टोकिए ,
इनके छोटे-छोटे होठों में 
सच्चाई के गीत गाने दो, 
इनकी निर्दोष आंखों में 
कल का सूरज चंदा 
और सितारा चमकने दो, 
यह अबोध अभी 
नई उड़ान के आकांक्षी हैं, 
इनके नन्हे हाथों में 
पंख लगा कर 
पंछियों की तरह 
स्वतंत्र उड़ने दीजिए, 
खुले आकाश में 
किलकारी की गूंज के साथ 
नए स्वर देने की 
पूरी आजादी दीजिए, 
इन अबोध मासूमों को 
खुली हवा में पंछियों की 
तरह उड़ने दीजिए।
 
संजीव ठाकुर,

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