कैसे पहचाने देशज राजनीति के पांच तत्व ?
मनुष्य की देह क्षित,जल,पावक ,गगन और समीर जैसे पांच प्रमुख तत्वों से निर्मित है । इसी तरह भारत की राजनीति के भी पंच महाभूत हैं,लेकिन इनकी शिनाख्त अभी तक किसी ने नहीं की । दुनिया की सबसे पुरानी पार्टी हो या दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी ,सबने भारतीय राजनीति को पहचानने में लगातार गलतियां की है। किसी ने राजनीति के पांच भूतों में जुमले मिला दिए,किसी ने नारे, किसी ने गारंटियां तो किसी ने वारंटियाँ। भारतीय राजनीति के पंचतत्व हमेशा पार्श्व में धकेले जाते रहे।
कभी आपने सोचा कि भारतीय राजनीति के पांच तत्वों को देश की आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों ने बहुत पहले पहचान लिया था ,लेकिन वे उन तत्वों को किताबों में दर्ज करने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। भारतीय राजनीति के पांच तत्वों को संविधान में जगह मिली लेकिन राजनीति में नही। कांग्रेस ने इस दिशा में आधी-अधूरी कोशिश की लेकिन कांग्रेस की छह दशक से ज्यादा लम्बी कोशिश पर भाजपा ने एक दशक में ही मिटटी में मिला दिया। आज भी भारतीय राजनीति की आत्मा भटक रही है अपनी काया में प्रविष्ट होने के लिए।
आज का विषय ज़रा गरिष्ठ अवश्य है लेकिन है रुचिकर । आप इसमें गोता लगाइये ,आपको आनंद की अनुभूति होगी। एक दशक से सत्ता से दूर कांग्रेस ने भस्मीभूत होने से पहले भारतीय राजनीति के पांच तत्वों की न केवल शिनाख्त कर ली बल्कि उन्हें अपनी भावी राजनीति की धुरी भी बनाने की कोशिश की है। कांग्रेस का चुनावी घोषणा पत्र इस बात के संकेत देता है। कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र में पहली बार पांच न्याय और पच्चीस गारंटियों की बात कही गयी है।
राजनीति के पांच तत्वों में ' गारंटी' का घालमेल सबसे पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 'मनरेगा' लाकर किया था। बाद में तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने को आतुर आज के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी ने गांधी की इस गारंटी को ' मोदी की गारंटी ' में तब्दील कार दिया। भारत की 77 साल की राजनीति में पंचभूतों का लौटना सुखद है। कांग्रेस सत्ता में वापस आये या न आये इससे कोई ख़ास फर्क पड़ने वाला नहीं है। फर्क इस बात से पड़ने वाला है कि संविधान में दर्ज राजनीति के पंचभूत जीवित कैसे रहे ?
कांग्रेस ने शायद इस दिशा में चिंतन किया है। कांग्रेस का दावा रहा है कि आजादी के बाद उसके राज में संवैधानिक मूल्यों और ढांचे का यथावत रखने की कोशिश होती रही है, लेकिन इस दौर में अब उन पर खतरा मंडरा रहा है। मसलन समानता के अधिकार को लेकर वह किसी भी तरह के भेदभाव को रोकने के लिए संविधान की अनुच्छेद 15-16 में विस्तार करेगी। वह संघवाद के जरिए संविधान में दिए राज्यों के अधिकारों के पक्ष में भी दिखी। दरअसल, पार्टी एनडीए सरकार पर सुव्यवस्थित तरीके से संघवाद के ताने-बाने को नष्ट करने का आरोप लगाती रही है। इसे दुरुस्त करने के लिए वह संविधान की 7वीं अनुसूची में विधायी क्षेत्रों के वितरण की समीक्षा की बात करती है। इसी तरह से कांग्रेस देश में हमारी संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता पर जोर देती दिखी।
आपको शायद याद हो कि भारतीय राजनीति के पांच तत्वों में सम्प्रुभता, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता , लोकतांत्रिक और समानता को शामिल किया गया था । बाद में राजनीति की देह में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथाउन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिएकुछ और अवयव शामिल किये गए। आज की राजनीति में ये तमाम तत्व बाहर कर दिए गए हैं। संविधान के साथ ही सब कुछ खतरे में है। लेकिन इस निराशा के दौर में भी राजनीति मरी नहीं है। राजनीति हो रही है । लोग जेल जा रहे हैं, जेलों से बाहर भी आ रहे हैं ,लेकिन राजनीति कर रहे हैं। कोई सन्यासी नहीं हुआ है।
कांग्रेस अपने पंचतत्वों से ओतप्रोत चुनावी घोषणापत्र को देश के हर तीसरे घर तक पहुँचाने की कोशिश कर रही है । कोई 8 करोड़ घरों तक कांग्रेस को अपनी बात पहुँचना है। भाजपा अपनी बात हर दिन पहुंचती है ,चाहे चुनाव हो या न हो। भाजपा के पास कांग्रेस से बड़ा और सु-संगठित संगठन भी है लेकिन भाजपा के पंचभूत में भी अब कांग्रेसी तत्व लगातार बढ़ रहा है। पिछले दस साल में भाजपा एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने कांग्रेस के महाभ्रष्ट ,और जनता द्वारा ख़ारिज नेताओं को अपने दल में शामिल किया है। आज की भाजपा 1980 वाली भाजपा नहीं है । आज की भाजपा 2024 की भाजपा है ,कांग्रेसयुक्त भाजपा देश को कांग्रेस मुक्त कैसे कर पायेगी ,ये कहना कठिन है। लेकिन मेरी चिंता कांग्रेस या भाजपा नहीं बल्कि भारतीय राजनीति के वे पंचभूत हैं जिनकी कमी की वजह से राजनीति लगातार त्रासद और अविश्वसनीय होती जा रही है।
इस देश ने पिछले 77 साल में कांग्रेस को हासिये पर जाते देखा है, वामपंथ को सिमिटते देखा है। समाजवाद को खंड-खंड होते देखा है। ये देश दक्षिणपंथी विचारधारा को उन्नत होते हुए भी देख रहा है और मुझे यकीन है कि ये देश इस दक्षिणपंथ का पराभव भी देखेगा। क्योंकि आज की राजनीति में पंच तत्व नदारद हैं। ये देश किसी की गारंटी से आगे बढ़ेगा तो वो गारंटी केवल संविधान की हो सकती है।
किसी मोदी या राहुल की नहीं हो सकती। मोदी और राहुल व्यक्ति हैं ,संविधान नहीं। जो संविधान के इतर जाएगा उसकी रामलीला का पटाक्षेप देश की जनता कर देगी। ध्यान रखिये कि ये वो देश है जिसमें भक्त,अंधभक्त,देशभक्त ,स्वामिभक्त पैदा तो होते हैं लेकिन पूजे वे ही जाते हैं जो संविधानभक्त होते हैं। अब देश के हर मतदाता की जिम्मेदारी है कि वो राजनीति के पंच तत्वों की शिनाख्त करे और उस दल के साथ खड़ा हो जो इन पंच तत्वों के संरक्षक नजर आते हों।
राकेश अचल
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