निरस्त हों वक्फ बोर्ड के विशेष अधिकार
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स्वतंत्र प्रभात
भारत जैसे धर्म निरपेक्ष देश में किसी एक सम्प्रदाय विशेष की धार्मिक संस्था के पास भूमि अधिग्रहण के बेशुमार अधिकारों का होना हैरान भी करता है और परेशान भी करता है। यहां चर्चा का विषय वक्फ बोर्ड है। आप को सुन कर शायद हैरानी होगी की आजाद भारत में भारतीय सेना और भारतीय रेलवे के बाद वक्फ बोर्ड ही वो संस्था है जिसके पास अधिकारिक तौर पर सबसे अधिक जमीन है। वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के विवरण के अनुसार देश में वक्फ बोर्ड के पास फिलहाल 8 लाख 54 हजार 509 संपत्तियां हैं, जो कुल मिलाकर 8 लाख एकड़ से ज्यादा है। वक्फ का मतलब है खुदा या अल्लाह के नाम पर अर्पित वस्तु।
यह मुस्लिम सम्प्रदाय और इस्लामिक कानून की एक प्रणाली है, जिसमें जकात यानि दान की गई संपत्ति का स्वामी अल्लाह या खुदा को बना दिया जाता है और संपत्ति को पूर्ण रूप से धर्म के कार्यों में इस्तेमाल के लिए समर्पित कर दिया जाता है। सेंट्रल वक्फ काउंसिल ऑफ इंडिया एक वैधानिक निकाय है। इसकी स्थापना 1964 में भारत सरकार द्वारा 1954 के वक्फ अधिनियम के तहत की गई थी। यह केंद्रीय निकाय वक्फ अधिनियम, 1954 की धारा 9 (1) के प्रावधानों के तहत स्थापित विभिन्न राज्य वक्फ बोर्डो के तहत काम की देखरेख करता है।
असल में 1947 के विभाजन और भारत में कुछ मुसलमानों के पाकिस्तान पलायन के बाद उनकी लावारिस पड़ी सम्पत्तियों को वक्फ बोर्ड को सौंप दिया गया था और इसके साथ-साथ वक्फ बोर्ड को यह अधिकार भी दिया गया कि अन्य पलायन किए मुस्लमानों की सम्पतियों को खोज कर वह अपने कब्जे में ले सकते हैं। बस यही से शुरू हुआ वक्फ बोर्ड का दूसरों की जमीन को मुस्लमानों की बता अपने कब्जे में लेने का खेल। देशभर में वक्फ की संपत्तियों को संभालने के लिए एक केंद्रीय और 32 स्टेट वक्फ बोर्ड हैं। हर राज्य के अलग-अलग वक्फ बोर्ड हैं। जबकि केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री सेंट्रल वक्फ काउंसिल का अध्यक्ष होता है।
1995 में वक्फ कानून में संशोधन करते हुए वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दी गईं। अब यदि वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर अपना दावा करता है तो उसे उसकी संपत्ति माना जाएगा। यदि दावा गलत है तो भी संपत्ति के मालिक को इसे सिद्ध करना होगा। 2013 में फिर इसमें संशोधन किए गए। वक्फ प्रॉपर्टी एक्ट 2013 आर्टिकल 40 पहले 1956 और फिर 1995 में इसमें संशोधन हुए। वर्ष 2013 में संसद ने वक्फ प्रॉपर्टी एक्ट-2013 को पारित किया। इसके प्रावधान सेक्शन 40 के मुताबिक बोर्ड के कोई दो लोग चाहें तो देशभर में किसी भी सम्पत्ति को वक्फ की संपत्ति बता सकते हैं। इसके लिए उन्हें कोई साक्ष्य देने की जरूरत नहीं है। दोनों सदस्य जिला मजिस्ट्रेट या किसी भी जिम्मेदार अधिकारी को 24 से 72 घंटे में उस जगह को खाली करने का आदेश दे सकते हैं।
ऐसी सूरत में शासन एवंम प्रशासन को उस आदेश पर अमल कराना होगा। हाइकोर्ट में ऐसे मामलों की सुनवाई नहीं हो सकती। पीड़ित को इसकी पिटीशन लेकर वक्फ बोर्ड के ट्रिब्यूनल में जाना होगा। बीते एक दशक में देश में इस कानून के माध्यम से सरकारी जमीनों को कब्जाने का काम हो रहा है। प्रयागराज के चंद्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क में वक्फ बोर्ड ने अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए कोरोनाकाल में मस्जिद, मजार और दूसरे निर्माण करवा दिए। दिल्ली के संजय गांधी उद्यान में भी मजार का मामला सामने आया है। इस एक्ट के बाद से सरकारी जमीन घेरने का सिलसिला देश भर में चल रहा है। तेलंगाना में भी एक मस्जिद की प्रापर्टी को लेकर ऐसा ही विवाद सामने आया है। तमिलनाडु में वहां के राज्य वक्फ बोर्ड ने एक पूरे गांव पर ही अपना मालिकाना हक जता दिया है।
जबकि इस कावेरी नदी के किनारे स्थित तिरुचिरापल्ल जिले के तिरुचेंथराई गांव में हजारों साल पुराना सुंदेश्वर मंदिर है। इनके अलावा बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश व देश के अन्य राज्यों में वक्फ बोर्ड के भूमि कब्जाने के अनगिनत मामले सामने आए हैं। पिछले 13 साल में वक्फ की संपत्ति करीब दोगुनी हो गई है। ऐसे कई तथ्य हैं जो इस व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते हैं। आज यह व्यवस्था पूरी तरह से कब्जे और वसूली का माध्यम बनती दिख रही है। यहां सोचने वाली बात यह है कि वक्फ संपत्तियों के रखरखाव के लिए जिस तरह की कानूनी व्यवस्था की गई, वैसी व्यवस्था सनातन धर्म के साथ-साथ बौद्ध, सिख, ईसाई या अन्य किसी पंथ के अनुयायियों के लिए नहीं है। यह पंथनिरपेक्षता, एकता एवं अखंडता की भावना के विपरीत है।
अन्य समुदायों के लिए इंडियन ट्रस्टीज एकट, चैरिटेबल एंडामेंट एक्ट, आफिशियल ट्रस्टीज एक्ट और चैरिटेबल एंड रिलीजियस एक्ट जैसे साझा अधिनियमों के तहत सभी समुदायों से जुड़े ट्रस्ट व दान आदि का प्रबंधन किया जाता है। फिर एक विशेष समुदाय के अलग व्यवस्था क्यों? वक्फ बोर्ड में मुस्लिम विधायक, मुस्लिम सांसद, मुस्लिम आइएएस अधिकारी, मुस्लिम टाउन प्लानर, मुस्लिम अधिवक्ता व अन्य मुस्लिम बुद्धिजीवीयों को स्थान दिया जाता है। सभी को सरकारी कोष से भुगतान किया जाता है जब कि केंद्र या राज्य सरकारें किसी मस्जिद, मजार या दरगाह की आय से एक भी रुपया नहीं लेती हैं। दूसरी ओर केंद्र व राज्य सरकारें देश के लगभग चार लाख मंदिरों से करीब एक लाख करोड़ रुपये लेती हैं लेकिन उनके लिए ऐसा कोई अधिनियम नहीं है।
वक्फ अधिनियम 1955 की धाराओं 4, 5, 6, 7, 8, 9 और 14 में वक्फ संपत्तियों को विशेष दर्जा दिया गया है। हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई व अन्य समुदायों के पास सुरक्षा का कोई विकल्प नहीं है, जिससे वे अपनी संपत्तियों को वक्फ बोर्ड की संपत्ति में शामिल होने से बचा सकें। जब भारतीय सविंधान में स्पष्ट रूप में लिखा है कि सभी धर्मों के अधिकार एक समान है तो किसी विशेष समुदाय के लोगो को विशेष अधिकार देना सविंधान और कानून का उल्लंघन क्यों ना माना जाए? देश में एकता, अखण्डता बनाए रखने लिए सब पर एक कानून लागू होना चाहिए। वक्फ बोर्ड के विशेष अधिकारों को निरस्त कर वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का रख रखाव भी उसी अधिनियम के तहत होना चाहिए जिसके तहत अन्य धर्मों एवंम सम्प्रदायों की संपत्तियों का होता है।
(नीरज शर्मा'भरथल')
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