दुश्मनी का ये अंदाज हमें पसन्द आया।।
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संजीव नी।
दुश्मनी का ये अंदाज हमें पसन्द आया।।
बड़ी शिद्दत से निभाई है तुमने अदावत,
दुश्मनी का ये अंदाज हमें पसन्द आया।।
मासूम हो,रंजिश करने की नहीं उमर,
गुस्सा होता चेहरा लाल हमें पसंद आया।
रकीब की तरह तिरछी नजरो से न देखो,
आँखों का कातिलाना कहर हमें पसंद आया।
आते तो हर हंसी शाम सुलह के लिए,
बीच बीच में हो जाना नाराज हमें पसंद आया।
तेरी दुश्मनी का अंदाज भी फकत हसीन है,
रूबरू न आकर,ख्वाब में लेना खबर
हमे पसंद आया।
खुदा ने सारी नफासत बक्शी है सिर्फ तुम्हे,
कभी बिजली सा कड़क जाना हमे पसंद आया।
लौट कर न आएंगे कभी कहकर जाना,
अगली साँझ तेरा सामने नजर
हमे पंसन्द आयाl
संजीव ठाकुर,रायपुर छत्तीसगढ़
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