झारखंड से साइकिल चलाकर बलिवन गांव पहुंचा मजदूर
देवरिया। कोरोना के बढ़ते संकट के बीच उतपन्न हुई बेरोजगारी ने मजदूरों व कामगारों की हालत अत्यंत दयनीय बना दिया है। देश के विभिन्न प्रान्तों में रहने वाले मजदूरों का बस एक ही लक्ष्य है- वह है किसी भी कीमत पर घर पहुंचना। अपने घर पहुंचकर परिजनों के बीच रहने को बेताब मजदूर हर तरह
देवरिया। कोरोना के बढ़ते संकट के बीच उतपन्न हुई बेरोजगारी ने मजदूरों व कामगारों की हालत अत्यंत दयनीय बना दिया है। देश के विभिन्न प्रान्तों में रहने वाले मजदूरों का बस एक ही लक्ष्य है- वह है किसी भी कीमत पर घर पहुंचना। अपने घर पहुंचकर परिजनों के बीच रहने को बेताब मजदूर हर तरह की जोखिम उठाने को मजबूर हैं।
ऐसी ही एक वाक्या बुधवार को पेश आया,जब खामपार थाना क्षेत्र के बलिवन खास गांव निवासी एक युवक झारखंड से साइकिल चलाकर गांव पहुंचा।ग्राम प्रधान ने उसे गांव के प्राथमिक विद्यालय स्थित क्वारन्टाइन सेंटर में रखवा दिया।
बताया जाता है किखामपार थाना क्षेत्र के बलिवन खास गांव निवासी 36 वर्षीय युवक सहदेव चौहान पुत्र शंकर चौहान झारखंड प्रान्त के पलामू जिला के पड़वा थाना क्षेत्र के गाड़ीगांव स्थित एक प्राइवेट फैक्ट्री में काम करने के लिए दो माह पूर्व घर से गए।वहां वह महज एक माह तक काम किए थे कि इसी बीच लॉक डाउन की घोषणा हो गई।घर की आर्थिक स्थिति मजबूत करने की सपना संजोए झारखंड गए सहदेव को एक माह तक घर मे लॉक रहना पड़ा।जब खाना खुराक की समस्या सामने आई तो 26 अप्रैल को साइकिल से ही घर के लिए चल दिए।
वह पलामू से औरंगाबाद,पटना,हाजीपुर, छपरा,सिवान,गोपालगंज होते हुए चौथे दिन बुधवार को गांव पहुंचा।सहदेव ने बताया कि मेरे साथ बिहार के भी दर्जनों युवक थे।दिन भर हम लोग साइकिल चलाते थे व रात में किसी गांव के विद्यालय में सो जाते थे।लेकिन रास्ते मे किसी ने भी खाने तक को नहीं पूछा।साथ मे कुछ बिस्कुट व सत्तू लेकर चले थे,
वही काम आया।गांव के बाहर पहुंचने पर ही प्रधान प्रतिनिधि गुड्डू बाबू ने उसे प्राथमिक विद्यालय में रखवा दिया।इसके अलावा सिवान के जीरादेई थाना क्षेत्र के जिरासो स्थित अपनी मायके से पैदल चलकर आई एक बृद्ध महिला को भी प्राथमिक विद्यालय में रख दिया गया।
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