भारत एक अंतरराष्ट्रीय वैश्विक मित्र

दक्षिण अफ्रीका में भरोसे का नया पैमाना

भारत एक अंतरराष्ट्रीय वैश्विक मित्र

भारत आज एक नए अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में तेजी से अग्रसर है; मोदी सरकार की विदेश नीतियाँ, आर्थिक सुधार और रणनीतिक साझेदारियाँ यह स्पष्ट करती हैं कि भारत अब किसी अन्य का मोहताज नहीं रहा, बल्कि अब विश्व शक्तिशाली देशों के लिए एक भरोसेमंद मित्र बन गया हैl अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इजराइल और एशियाई-अरब देश भारत को आर्थिक, सामरिक और राजन नीतिक दृष्टि से केंद्र में देखना चाहते हैं। अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्रियों के अनुमान हैं कि आने वाले कूछ वर्षों में भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है, और उसकी थल सेना विश्व में चौथे स्थान पर मजबूती से खड़ी हो सकती है ।यह सब देश-स्तर के आत्मविश्वास और नई शक्ति की झलक है।

भारत के आधुनिक विकास की नींव पंडित जवाहरलाल नेहरू के विजन से ही रखी गई थी: उन्होंने स्वतंत्रता के बाद पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कृषि, उद्योग, विज्ञान और स्वास्थ्य में वैज्ञानिक सोच को बुनियाद दी, ताकि भारत वैश्विक परिप्रेक्ष्य में समृद्धि और शक्तिशाली राष्ट्र बने। समय के साथ सरकारें बदलती रहीं, लेकिन विकास की गति, ठहरने की बजाय, लेकर आगे बढ़ती रही, और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आज इस विकास यात्रा को नई गति मिली है।

आर्थिक दृष्टिकोण से देखें तो IMF की नवीनतम रिपोर्ट बताती है कि भारत 2025 में विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, जिसकी नॉमिनल जीडीपी लगभग 4.19 ट्रिलियन डॉलर है, और यदि वर्तमान आर्थिक नीतियाँ बनी रहीं, तो अगले कुछ वर्षों में जर्मनी को पीछे छोड़कर तीसरे स्थान पर पहुंचने की संभावनाएँ हैं। क्रिसिल भी सहमत है कि 2025-2031 के बीच भारत की अर्थव्यवस्था लगभग 7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है, और प्रति-व्यक्ति आय 4,500 अमेरिकी डॉलर तक बढ़ सकती है जिससे भारत उच्च-मध्यम आय वाले देशों की श्रेणी में आएगा। विश्व बैंक भी भविष्यवाणी करता है कि भारत के लिए वित्त वर्ष 2025-26 में GDP वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत के करीब होगी, जो निजी खपत, सार्वजनिक निवेश और घरेलू मांग की मजबूती का संकेत है।

सामरिक दृष्टि से भी भारत की ताकत कम नहीं है: उसकी सेना अब वैश्विक मंच पर एक शक्तिशाली और भरोसेमंद ताकत के रूप में उभर रही है, जिससे छोटे और बड़े देशों दोनों के लिए भारत के साथ साझेदारी आकर्षक होती जा रही है। इस सामरिक महत्व ने भारत को केवल आर्थिक साझेदारी का केंद्र नहीं बनाया, बल्कि सुरक्षा सहयोग का भी भरोसेमंद आधार बना दिया है।

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लेकिन जैसा कि विकास की कहानी चमक-दमक से भरी है, वास्तविक धरातल पर चुनौतियाँ भी बहुत बड़ी हैं। भारत की जनसंख्या 140 करोड़ के करीब पहुंच चुकी है, और गर िबी, बेरोजगारी, असमानता, धार्मिक कट्टरता और अंधविश्वास जैसी दीर्घकालीन समस्याएँ अभी हल नहीं हुई हैं। गरीबी की दृष्टि से, विश्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि अतिमहंगाई या “e अत्यधिक गरीबी दर 2022-23 में .15 प्रति दिन की PPP आधार रेखा पर घटकर 2.3 प्रतिशत हो गई है, और इससे करीब 1.71 अरब मानव जीवन बेहतर हुआ है। यह वास्तव में एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन इसका मतलब यह भी है कि हमारे देश का बहुत बड़ा हिस्सा अब भी आर्थिक विसंगति, असुरक्षा और निर्धनता के पारिस्थितिक चक्र से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाया है। बेरोजगारी, विशेष रूप से युवा और स्नातक श्रेणियों में, भी एक गंभीर समस्या है: कुछ रिपोर्टों के अनुसार, विश्वविद्यालय स्नातकों में बेरोजगारी दर बहुत अधिक है, और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में अरबों युवा अस्थिर रोजगार पर निर्भर हैं।
               ऊर्जा सुरक्षा भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। भारत अपनी अधिकांश ऊर्जा—विशेषकर कच्चे तेल—की जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है: वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत की क्रूड ऑइल आयात निर्भरता लगभग 87.7 प्रतिशत तक पहुंच गई, जबकि घरेलू उत्पादन लगभग स्थिर है। इस निर्भरता के चलते भारत वैश्विक तेल कीमतों की अस्थिरता के प्रति संवेदनशील है, और यह व्यापार घाटा, मुद्रा अस्थिरता और महंगाई जैसे जोखिमों को बढ़ा सकती है। ऊर्जा संतुलन बनाने के लिए भारत को नवीनीकृत ऊर्जा, बायोफ्यूल, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और आंतरिक तेल उत्पादन में और त्वरित सुधार करना होगा।

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सामाजिक दृष्टिकोण से भी भारत में गहरी असमानताएँ हैं। महिलाओं की भागीदारी अभी भी कई क्षेत्रों में सिर्फ औपचारिक तौर पर ही दिखाई देती है प्रशासन, विज्ञान, चिकित्सा और सामाजिक नीति में जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में बाल श्रम, नारी उत्पीड़न और पिछड़े वर्गों की दुर्दशा अभी भी बड़ी समस्या है। नक्सलवाद, चरमपंथ और धार्मिक उन्माद जैसी सुरक्षा चुनौतियाँ देश की एकता और शांति के लिए खतरा बने हुए हैं और इनसे निपटना उतना ही जरूरी है जितना आर्थिक विकास को बढ़ाना।

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जहाँ तक भारतीय मुद्रा और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय स्वीकृति की बात है, भारत अभी उस स्तर तक नहीं पहुँचा है कि उसकी मुद्रा व्यापक रूप से अंतरराष्ट्रीय अवसंरचनाओं में प्रतिष्ठित मुद्रा के रूप में इस्तेमाल हो; इसके लिए वैज्ञानिक, तकनीकी और सुरक्षा-क्षेत्रों में और मजबूत होना पड़ेगा, ताकि वह पूर्ण रूप से राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक दृष्टि से एक समकक्ष देश बन सके जो अन्य देशों के साथ बराबरी से बैठकर वार्ता कर सके।
इतिहास में लौटकर देखें तो गांधी जी का सपना, “गरीब से गरीब, पिछड़े से पिछड़ा व्यक्ति भी आत्म-सम्मान से जी सके”, आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उनके विचारों के अनुसार सरकार की नीतियों को अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाने की जिम्मेदारी होनी चाहिए, ताकि विकास का लाभ सबसे निचले पायदान पर बैठे व्यक्ति तक पहुंचे। यह तभी संभव होगा जब हम सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और राजनीतिक स्तर पर मजबूत नीतियाँ बनाएँ; न केवल आर्थिक वृद्धि, बल्कि सामाज िक न्याय, समावेशन और गरिमा के साथ।

यदि भारत इन आंतरिक चुनौतियों का सही समाधान खोज ले — गरीबी का स्थायी उन्मूलन, रोजगार सृजन, ऊर्जा स्वतंत्रता, लैंगिक समानता, सामाजिक शांति — तो वह न सिर्फ एक महाशक्ति बन सकता है, बल्कि एक ऐसा राष्ट्र बन सकता है जहाँ हर नागरिक को विकास का अधिकार हो और हर भारतवासी अपने देश पर गर्व महसूस कर सके। यही उस दार्शनिक और वास्तविक विकास का मार्ग है जिसे पंडित नेहरू ने खोजना शुरू किया था और जिसे आज मोदी-काल में तेज़ गति दी जा रही है; और यदि यह राह जारी रही, तो बहुत जल्द भारत का परचम दुनिया के हर कोने में समानांतर सम्मान के साथ लहराता दिखेगा।

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