सत्य साईं बाबा: मानवता के भीतर छिपे प्रकाश का जागरण

सत्य साईं बाबा: प्रेम, सेवा और सत्य का उदय

सत्य साईं बाबा: मानवता के भीतर छिपे प्रकाश का जागरण

सत्य साईं बाबा: एक जन्म, जो दीपक नहीं—पूरा प्रभात बन गया

जैसे कोई रहस्य बिना शोर किए दुनिया के कंधे पर हाथ रखता हैवैसे ही एक अदृश्य आभा ने 1926 की उस सुबह को भी छू लिया था—सुबह बिल्कुल साधारणपर उसके भीतर एक असाधारण हलचल साँस ले रही थी। यह वह कम्पन था जिसे न उस दिन धरती ने पहचानान लोगों नेलेकिन समय ने उसे अपनी गूढ़ स्मृतियों में सँभाल लिया। पुट्टपर्थी के शांतधूलभरे वातावरण में जन्मे सत्यनारायण राजु आगे चलकर सत्य साईं बाबा के रूप में संसार की चेतना को वैसा प्रकाश देने वाले थेजैसा कोई दीपक नहींबल्कि एक सम्पूर्ण सूर्योदय देता है। उनका जन्म केवल एक घटना नहीं थावह मानवता के लिए एक नए अध्याय का आरंभ था—एक ऐसा अध्यायजो हृदय की गहराइयों में उतरकर आत्मा के अंधकार को धैर्य और प्रेम की रोशनी से भरने आया था।

साईं बाबा का जीवन किसी रहस्यपूर्ण चमत्कारों का प्रदर्शन नहीं थाबल्कि सहजतानिर्मलता और गहन मानवीय मूल्यों पर टिके एक उजले सत्य की तरह था। वे ईश्वर को बाहरी आडंबरों में नहीं खोजते थेउनका भगवान मनुष्य की करुणासंवेदनाधैर्य और सत्यनिष्ठा में धड़कता था। यही कारण था कि उनका आध्यात्मिक पथ कठिन तपस्याओं से नहींबल्कि जीवन की सरलता और नैसर्गिक मानवता से आरंभ होता था। वे अकसर कहते थे, “प्रेम ही ईश्वर हैऔर ईश्वर का सर्वोच्च रूप सेवा है।” यह वाक्य सुनने में छोटा हैपर जब जीवन में उतरा जाए तो अत्यंत व्यापक हो जाता है—क्योंकि यह मनुष्य को बाहर से नहींबिल्कुल भीतर से बदल देता है।

1926 में जन्मा यह दिव्य व्यक्तित्व दुनिया को यह बताने नहीं आया था कि आध्यात्मिकता किसी दूर कीरहस्यमय शक्ति का अनुभव हैवह तो मनुष्य के भीतर छिपा वह सत्य हैजिसे भयक्रोधधूल और अहंकार अक्सर ढँक देते हैं। सत्य साईं बाबा का सम्पूर्ण जीवन इसी धूल को हटाने की प्रक्रिया था—धीमेकोमल और बिल्कुल सरल मानवीय स्पर्श के साथबिना किसी दार्शनिक पेचीदगी के। वे समझाते थे कि सत्य केवल बोलने की वस्तु नहींजीवन में उतारने की क्रिया हैसेवा केवल दान का कार्य नहींबल्कि जीवन की दिशा हैऔर प्रेम कोई क्षणिक भावना नहींमनुष्य का वास्तविक स्वरूप है।

उनकी सबसे विशिष्ट बात यह थी कि वे किसी एक मतधर्म या समुदाय के गुरु बनकर नहीं उभरे। वे किसी संकीर्ण दायरेकिसी सीमित पहचान को स्वीकार ही नहीं करते थे। उनके लिए मनुष्य बस मनुष्य था—उसका नामउसका धर्मउसकी परंपराएँ तो बस बाहरी आवरण थेभीतर वह चेतना का ही अंश था। वे कहा करते थे, “धर्म अनेक हैंपर सत्य एक हैमार्ग अनेक हैंपर मंज़िल एक।” यही उनके संदेश की आत्मा थी—एकताकरुणा और संपूर्ण मानवता का आलोक।

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सत्य साईं बाबा की जयंती किसी भव्य उत्सव का आह्वान नहीं करतीयह स्वयं के भीतर लौटने का अवसर देती है। यह दिन धीमीपर गहन आवाज़ में पूछता है—क्या हमारे जीवन में वह प्रेम है जो परिस्थितियों और व्यक्तियों की सीमाओं से परे जाता हैक्या हमारी सेवा दिखावे से ऊपर उठ पाती हैक्या हमारा भीतर सत्य निर्भीक होकर जीवित हैऔर क्या हमारा आचरण उस सहज मानवता को अभिव्यक्त कर पाता हैजिसकी शिक्षा बाबा ने दी थी?

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आज की दुनिया मेंजहाँ मनुष्य तकनीक में विस्तृत हुआ पर संवेदना में सिकुड़ गया हैजहाँ शब्द तेज़ होते गए पर व्यवहार की कोमलता कम होती गईवहाँ सत्य साईं बाबा का संदेश उपदेश नहींबल्कि आवश्यकता बन चुका है। वे कहा करते थे कि सेवा मनुष्य के भीतर की कठोरता को पिघलाती हैप्रेम उसकी सुप्त ऊर्जा को जगाता हैऔर सत्य उसके चरित्र को आकार देता है। इस युग मेंजब आत्माएँ असुरक्षित और मन दिशाहीन होते जा रहे हैंबाबा की ये तीन शिक्षाएँ जीवन की जड़ों को पुनः सींचने का कार्य करती हैं।

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उनकी उपस्थिति में लोग केवल विश्वास नहीं पाते थे—वे स्वयं को पहचानते थे। उन्हें महसूस होता था कि जो टूट गया हैउसमें पुनः जुड़ने की क्षमता हैजो खो गया हैवह फिर से मिल सकता हैऔर जो अंधकार हैवह प्रकाश में बदल सकता है। बाबा किसी को तैयार समाधान नहीं देते थेवे उसके भीतर समाधान खोजने का साहस जगाते थे। यही महान गुरु की पहचान है—वह मार्ग दिखाता हैपर चलने की स्वतंत्रता मनुष्य पर छोड़ता हैवह प्रकाश देता हैपर आँखें खोलने का निर्णय साधक पर छोड़ देता है।

साईं बाबा ने अपने जीवन से सिद्ध किया कि आध्यात्मिकता कोई एकांतवास नहींबल्कि समाज में रहते हुए मानवता को जीने की निरंतर साधना है। उन्होंने यह भी बताया कि दिव्यता किसी मंदिर या विधि तक सीमित नहीं—वह एक मुस्कानएक सहारेएक क्षमा और एक सेवा में जीवित रहती है।

1926 का वह दिव्य जन्म आज भी संसार को यह स्मरण कराता है कि जब मनुष्य प्रेम में स्थिर हो जाता हैसेवा में निमग्न हो जाता है और सत्य में अडिग हो जाता हैतब उसका अस्तित्व स्वयं एक दीपक बन उठता है—ऐसा दीपक जो समय से नहीं बुझतापरिस्थितियों से नहीं डगमगाता और अंधकार से नहीं घबराता।

सत्य साईं बाबा की जयंती इसलिए केवल एक तिथि नहीं—एक दर्पण है। इस दर्पण में हम वह मनुष्य देख सकते हैंजो हम बन सकते हैं यदि हम सच में चाहें—थोड़े और प्रेमपूर्णथोड़ा और दयालुऔर थोड़ा अधिक सत्यनिष्ठ। यही उनकी जयंती का वास्तविक तेज हैऔर यही 23 नवंबर,1926 की उस सुबह का अनश्वर प्रकाशजो आज भी दुनिया के हृदय में अपनी शांत उजास बिखेर रहा है।

 

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