घनी आबादी के बीच स्मार्ट सिटी की कल्पना केवल परिकल्पना ना हो
आज के युग में हमारे देश-देश के मध्यम कद के शहरों का पुनरूत्थान, उन्हें स्मार्ट सिटी की मनोनीत परिकल्पना के अनुरूप विकसित करने का विचार न सिर्फ दूरदर्शिता की निशानी है बल्कि तत्काल आवश्यकता भी बन चुका है। माना गया है कि ऐसे शहर जहाँ निवासियों की सभी सामान्य जरूरतें शुद्ध पानी-बिजली-धूल-प्रदूषण-मुक्त सड़कें-घर-संचार-इंटरनेट-सोशल मीडिया-प्रशासनिक सुविधाएँ-सुरक्षा-शिक्षा-मनोरं
स्मार्ट-शहर के मानदंड स्पष्ट हो सकते हैं पर्याप्त बिजली-पानी-भोजन-घर आदि उपलब्ध हों; स्वास्थ्य-सुरक्षा-शिक्षा-मनोरं
वास्तव में देश के प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता-दिवस पर घोषणा की कि भारत में एक सैकड़ा से अधिक-शहरों को स्मार्ट-सिटी बनाने की पहल होगी, तथा इसके लिए लगभग नौ-हजार करोड़ रुपये बजट का प्रावधान भी किया गया। इसके अंतर्गत केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय द्वारा एक मैनुअल जारी भी किया गया है। इस परियोजना को आने वाले वर्षों में मूर्त रूप देना है। योजना के अनुसार- 40 लाख से अधिक आबादी वाले 9 शहर, 10 लाख-40 लाख आबादी वाले 44 शहर, 5 लाख-10 लाख आबादी वाले 20 शहर, प्रत्येक राज्य एवं केंद्र-शासित प्रदेश की राजधानी-शहरों के अंतर्गत लगभग 37 शहर तथा पर्यटन/धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण लगभग 15 शहर सम्पूर्ण रूप से स्मार्ट-सिटी के प्रावधान में लाये जाने का प्रस्ताव है।
प्रारंभ में केंद्र सरकार द्वारा इस दिशा में चयनित शहरों में शामिल हैं-इलाहाबाद (अब प्रयागराज), कानपुर, लखनऊ, वाराणसी, देहरादून, हरिद्वार, बोधगया, भोपाल, इंदौर, कोच्चि, जयपुर, अजमेर आदि। विदेशी राष्ट्रों ने भी इस पहल में रुचि दिखाई है-- जापान ने वाराणसी को स्मार्ट-सिटी के रूप में विकसित करने में शामिल होने का प्रस्ताव रखा है, दिल्ली को स्मार्ट-सिटी बनाने के लिए कतर देश के प्रिंस ने बड़ी निवेश-राशि का प्रस्ताव प्रस्तुत किया है, तथा चेन्नई-बैंगलोर इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के निकट “लिटिल सिंगापुर” विकसित करने की चर्चा भी है। सरकार ने इस दिशा में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल को प्राथमिकता देने का निर्णय भी लिया है।
परंतु स्मार्ट-सिटी बनने के मार्ग में अनेक चुनौतियाँ भी हैं। उदाहरणस्वरूप- भारत में इस प्रकार की परियोजनाओं के कार्यान्वयन में कई फंसे हैं: आधुनिकीकरण-पूर्व आधारभूत संरचनाओं , पुरानी सड़क-नाली को स्मार्ट रूप देना कठिन है; वित्तीय संसाधनों की कमी और वित्तीय सततता की समस्या है। इसके अतिरिक्त, नगरीय स्थानीय निकायों की प्राविधिक एवं नियोजन-क्षमता सीमित है; भूमि अधिग्रहण-स्वीकृति-अनुमति प्रक्रियाओं में विलम्ब और ओवरलैपिंग संस्थागत जिम्मेदारियों की समस्या भी सामने आई है। और सबसे बड़ी चुनौती बड़े विदेशी-शहरों के अनुरूप मॉडल को भारत की विविध जनसंख्या-स्थितियों, आर्थिक-सामाजिक-मानदण्डों, कमजोर-शहरी-इन्फ्रास्ट्रक्चर व घनी जनसंख्या वाले नगरों में प्रत्यक्ष ले जाना आसान नहीं है।
इसलिए यदि स्मार्ट-सिटी की परिकल्पना मात्र आकार-आधारित, तकनीकी-उपकरणों-प्रचुरता पर आधारित हो जाए, तो संभावना है कि यह केवल हवा की बातें बनकर रह जाएँ। लेकिन यदि इसके पीछे ठोस योजना, समावेशी दृष्टिकोण, नागरिक भागीदारी, पारदर्शिता, स्थानीय क्षमता-निर्माण हो जाए, तो यह यथार्थ स्वरूप ले सकती है। उदाहरणत भारत के कई स्मार्ट-सिटी परियोजनाओं में यह देखा गया है कि अधिकांश फंड “एरिया-बेस्ड डेवलपमेंट” के अंतर्गत कुछ चुनिंदा क्षेत्रों तक सीमित रह जाते हैं, जिससे पूरे नगरवासियों तक लाभ नहीं पहुंच पाता। इसके साथ ही डिजिटल विभाजन यानी इंटरनेट-कनेक्टिविटी-तकनीकी पहुँच का असमान वितरण भी बड़ी बाधा है।
Read More दमघोंटू हवा पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती- अब नियमित सुनवाई से जुड़ेगी दिल्ली की सांसों की लड़ाईअतः निष्कर्षतः कह सकते हैं कि यदि देश का प्रत्येक नागरिक, इस सोच से प्रेरित होकर, सरकार की इस परियोजना में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान देने का संकल्प ले जाए, यदि नीति-निर्माण से लेकर कार्यान्वयन-प्रक्रिया तक नागरिक-भागीदारी व पारदर्शिता सुनिश्चित हो जाए, और स्थानीय निकाय-प्रशासन-निजी-क्षेत्र-

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