घनी आबादी के बीच स्मार्ट सिटी की कल्पना केवल परिकल्पना ना हो

घनी आबादी के बीच स्मार्ट सिटी की कल्पना केवल परिकल्पना ना हो

आज के युग में हमारे देश-देश के मध्यम कद के शहरों का पुनरूत्थान, उन्हें स्मार्ट सिटी की मनोनीत परिकल्पना के अनुरूप विकसित करने का विचार न सिर्फ दूरदर्शिता की निशानी है बल्कि तत्काल आवश्यकता भी बन चुका है। माना गया है कि ऐसे शहर जहाँ निवासियों की सभी सामान्य जरूरतें शुद्ध पानी-बिजली-धूल-प्रदूषण-मुक्त सड़कें-घर-संचार-इंटरनेट-सोशल मीडिया-प्रशासनिक सुविधाएँ-सुरक्षा-शिक्षा-मनोरंजन-यातायात-स्वास्थ्य तेज और सहज रूप में उपलब्ध हों, वहां के नागरिक जीवनशैली में सहजता, शांति और संतुलन महसूस कर सकें।

ऐसी अवस्था जहाँ हर आम-व्यक्ति को गुणवत्ता-पूर्ण सुविधा कम सेवा मूल्य पर आसानी से मिल सके, वहाँ के जीवन-यापन के तरीके इतने सुलभ व संतुलित हों कि धूल-प्रदूषण-मुक्त सड़कें हों, पानी-बिजली सहज रूप से उपलब्ध हो, घर पहुँच घर-बैठे इंटरनेट-सोशल मीडिया-प्रशासनिक कार्य संपन्न हों। आम नागरिक, जो स्वतंत्रता-उपरांत जन-सुविधाओं के अभाव में अब तक जूझ रहे थे, उनके लिए इसका त्वरित निराकरण संचार-माध्यमों से संभव हो सके। इस प्रकार एक स्मार्ट-शहर की स्थापना केंद्र सरकार का लक्ष्य बन गया है।परंतु यह प्रश्न उठता है कि क्या हमारा भारत, अपनी विशाल जनसंख्या और मेट्रोपॉलिटन शहरों की घनी-संघन संरचना को देखते हुए, व मध्यम-कद-शहरों की संख्या को भी ध्यान में रखते हुए, वास्तव में इस स्मार्ट-सिटी की परिकल्पना को यथार्थ रूप दे सकता है? यदि सरकार व आम नागरिकों का संकल्प दृढ़ हो जाए, आपसी सहयोग व सामंजस्य बेहतर रूप से काम कर जाए, तो निःसंदेह भारत में स्मार्ट-सिटी की परिकल्पना यथार्थ रूप ले सकती है।

स्मार्ट-शहर के मानदंड स्पष्ट हो सकते हैं पर्याप्त बिजली-पानी-भोजन-घर आदि उपलब्ध हों; स्वास्थ्य-सुरक्षा-शिक्षा-मनोरंजन-यातायात की सुविधाएं सरलता से मिले; जीवन-आराम के संदर्भ में सभी आर्थिक गतिविधियाँ सुचारू रूप से चलें। ऐसी स्मार्ट-शहर यदि भारत में बन पाती है, तो निसंदेह वह देश के समग्र विकास को गति दे सकती है। लेकिन इसे मात्र दृढ़ संकल्प या नारेबाजी के आधार पर नहीं देखा जा सकता  यहाँ सार्थक मेहनत, रणनीति-निर्माण, निष्पादन-प्रक्रिया और जनता-सहयोग की समान जरूरत है।

 वास्तव में देश के प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता-दिवस पर घोषणा की कि भारत में एक सैकड़ा से अधिक-शहरों को स्मार्ट-सिटी बनाने की पहल होगी, तथा इसके लिए लगभग नौ-हजार करोड़ रुपये बजट का प्रावधान भी किया गया। इसके अंतर्गत केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय द्वारा एक मैनुअल जारी भी किया गया है। इस परियोजना को आने वाले वर्षों में मूर्त रूप देना है। योजना के अनुसार- 40 लाख से अधिक आबादी वाले 9 शहर, 10 लाख-40 लाख आबादी वाले 44 शहर, 5 लाख-10 लाख आबादी वाले 20 शहर, प्रत्येक राज्य एवं केंद्र-शासित प्रदेश की राजधानी-शहरों के अंतर्गत लगभग 37 शहर तथा पर्यटन/धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण लगभग 15 शहर सम्पूर्ण रूप से स्मार्ट-सिटी के प्रावधान में लाये जाने का प्रस्ताव है।

प्रारंभ में केंद्र सरकार द्वारा इस दिशा में चयनित शहरों में शामिल हैं-इलाहाबाद (अब प्रयागराज), कानपुर, लखनऊ, वाराणसी, देहरादून, हरिद्वार, बोधगया, भोपाल, इंदौर, कोच्चि, जयपुर, अजमेर आदि। विदेशी राष्ट्रों ने भी इस पहल में रुचि दिखाई है-- जापान ने वाराणसी को स्मार्ट-सिटी के रूप में विकसित करने में शामिल होने का प्रस्ताव रखा है, दिल्ली को स्मार्ट-सिटी बनाने के लिए कतर देश के प्रिंस ने बड़ी निवेश-राशि का प्रस्ताव प्रस्तुत किया है, तथा चेन्नई-बैंगलोर इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के निकट “लिटिल सिंगापुर” विकसित करने की चर्चा भी है। सरकार ने इस दिशा में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल को प्राथमिकता देने का निर्णय भी लिया है।

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परंतु स्मार्ट-सिटी बनने के मार्ग में अनेक चुनौतियाँ भी हैं। उदाहरणस्वरूप- भारत में इस प्रकार की परियोजनाओं के कार्यान्वयन में कई फंसे हैं: आधुनिकीकरण-पूर्व आधारभूत संरचनाओं , पुरानी सड़क-नाली को स्मार्ट रूप देना कठिन है; वित्तीय संसाधनों की कमी और वित्तीय सततता की समस्या है। इसके अतिरिक्त, नगरीय स्थानीय निकायों की प्राविधिक एवं नियोजन-क्षमता सीमित है; भूमि अधिग्रहण-स्वीकृति-अनुमति प्रक्रियाओं में विलम्ब और ओवरलैपिंग संस्थागत जिम्मेदारियों की समस्या भी सामने आई है। और सबसे बड़ी चुनौती बड़े विदेशी-शहरों के अनुरूप मॉडल को भारत की विविध जनसंख्या-स्थितियों, आर्थिक-सामाजिक-मानदण्डों, कमजोर-शहरी-इन्फ्रास्ट्रक्चर व घनी जनसंख्या वाले नगरों में प्रत्यक्ष ले जाना आसान नहीं है।

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  इसलिए यदि स्मार्ट-सिटी की परिकल्पना मात्र आकार-आधारित, तकनीकी-उपकरणों-प्रचुरता पर आधारित हो जाए, तो संभावना है कि यह केवल हवा की बातें बनकर रह जाएँ। लेकिन यदि इसके पीछे ठोस योजना, समावेशी दृष्टिकोण, नागरिक भागीदारी, पारदर्शिता, स्थानीय क्षमता-निर्माण हो जाए, तो यह यथार्थ स्वरूप ले सकती है। उदाहरणत भारत के कई स्मार्ट-सिटी परियोजनाओं में यह देखा गया है कि अधिकांश फंड “एरिया-बेस्ड डेवलपमेंट” के अंतर्गत कुछ चुनिंदा क्षेत्रों तक सीमित रह जाते हैं, जिससे पूरे नगरवासियों तक लाभ नहीं पहुंच पाता। इसके साथ ही डिजिटल विभाजन यानी इंटरनेट-कनेक्टिविटी-तकनीकी पहुँच का असमान वितरण भी बड़ी बाधा है।

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अतः निष्कर्षतः कह सकते हैं कि यदि देश का प्रत्येक नागरिक, इस सोच से प्रेरित होकर, सरकार की इस परियोजना में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान देने का संकल्प ले जाए, यदि नीति-निर्माण से लेकर कार्यान्वयन-प्रक्रिया तक नागरिक-भागीदारी व पारदर्शिता सुनिश्चित हो जाए, और स्थानीय निकाय-प्रशासन-निजी-क्षेत्र-सहयोग यथोचित रूप से हो जाए, तो निश्चित ही अगले दो दशकों में भारत में सैकड़ों स्मार्ट-शहर निर्मित हो सकते हैं। और तब आम नागरिकों को जन-सुविधाओं का सामान्य-स्वीकरण मिलेगा तथा भारत एक विकसित राष्ट्र की श्रेणी में तेज़ी से आ जाएगा। सिर्फ लक्ष्य-घोषणा-ही पर्याप्त नहीं लक्ष्य के पीछे मेहनत-संकल्प-लोक-भागीदारी-निरंतरता-अभ्यास ज़रूरी हैं।

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