kavya darshan
कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

कुवलय

कुवलय कला का पुरस्कार  अब मिलता नहीं है  चित्र विचित्र होकर भी कोई बिकता नहीं।    घर की वापसी  अब कोई करता नहीं  प्रजातंत्र के लिए  कोई लड़ता नहीं।    सभ्यता व संस्कृति से अब कोई डरता नहीं श्रमिक के लिए किसी से...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी|

संजीव-नी| कैलेंडर चुप क्यों है, चिथडी दीवारों    पर, रूआंसे उधडे पलस्तर, और केलेंडर आमने सामने, एक दूसरे को फूटी आंखों भी नहीं सुहाते, साथ रहना, रोना, खासना, मजबूरी थे सब, वैसे भी...
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संजीव-नी।

संजीव-नी। प्रभु साथ दो मेराl    प्रभु साथ दो मेराl जहां भी हो अंधेरा राह में सत्य की  सदैव साथ हो तेराl       जहां लोभ का डेरा पथ में न्याय के चलूं मैं अकेला प्रभु साथ दो मेराl    वासना के प्रबल आंधी तूफान...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

कविता,

कविता, मोमिता हम शर्मिंदा है।     क्या हम कहीं खो गए हैं क्या हम कहीं सो गए हैं  या नपुंसकता की हद तक हम सब मजबूर हो गए हैं? क्या ऐसा तो नहीं कि  हम हृदयहीन हो गए हैं  गुड़िया और चिड़िया...
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संजीव-नी।

संजीव-नी। युग निर्मात्री नारी।     कम ना आंको नारियों की शक्ति को, मां दुर्गा के प्रति  इनकी भक्ति को।     दुश्मनों का नाश  करती मां भवानी अलौकिक अद्भुत है  नारी हिंदुस्तानी। घर परिवार मुख्य  धुरी है देश की नारी, उसे कभी मत  समझो...
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संजीव-नीl

संजीव-नीl कविता, भोले चेहरे कितने मगरूर हो गए हैं।    रिश्ते अब अपने रिश्तों से दूर गए है, लोग आज कितने निष्ठुर हो गए हैं l    दुश्मनो से दोस्त कर रहें गुजारिश, भोले चेहरे कितने मगरूर हो गए हैं।    ज़माने की कैसी...
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संजीव नी।

संजीव नी। कविता    तू खुदा नहीं पर कमतर भी नहीं ।    तेरे सामने मेंरा वजूद बेहतर भी नहीं ,  तू खुदा नहीं पर कमतर भी नहीं ।    यारों ने आईना दिखाया मुझे बार बार जानता हूँ वो फकत आईना तेरा भी नहीं।...
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संजीवनी।

संजीवनी। इससे पहले कि हवाएं ,    इससे पहले कि हवाएं  शब्द भंडार ले जाएं  चलिए मधुर गीत लिख लेते हैं।    इससे पहले कि हिम श्रृंखलाओं  की बर्फ पिघल जाए, उससे कुछ ठंडी छुअन ले लेते हैं।    इससे पहले कि लंबी  वृक्ष...
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राहु 

राहु  राहु     राहु हूँ  नई राह दिखता हूँ। पथ पर अग्रसर कर  अपार सफलता दिलवाता हूँ। कर्म बुरे करते तो  रोग, शत्रुता और ऋण बढ़ाता हूँ। शुभ कर्मो पर धनार्जन के नये मौके दिखलाता हूँ। शुक्र, शनि, बुध मित्रों संग  मिलकर...
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संजीव-नी।

संजीव-नी। प्यारी मां तेरी जैसी l    हर किसी की माँ हो, माँ हो मेरी जैसी, हर नारी लगती प्यारी मुझे मां जैसीl    रोटी के इंतजाम में गई मां की बाट जोहता, लौटती हर औरत लगती शाम उसे मां जैसी।    मां मेरी...
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संजीव-नी।

संजीव-नी।    ।प्राकृतिक विभीषिका ।    हवा में जहर  मन में विषैला पन  आखिर क्या है इसकी परिणति  और भविष्य, प्राकृतिक विभीषिका, लाखों बच्चों बुजुर्गों की कर दी खत्म इह लीला, प्रकृति की अनुपम देन जल,वायु और हरियाली हमने मलिन इरादों से  कर...
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संजीव-नी ।

संजीव-नी । ईश्वर का हर पल करो वंदन अभिनंदन।    जरा विचार कीजिए आपके पसंद करने न करने से  मैं आदमी न रहकर  छोटा जीव जंतु या चौपाया  हो जाऊंगा , और आपकी पसंदगी से  मैं आदमी से ईश्वर  हो जाऊंगा  या मेरी...
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