Swantantra prabhat kavita sangrah
कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

ऊँचाइयों पर कभी परवाने नहीं होते”

ऊँचाइयों पर कभी परवाने नहीं होते” ऊँचाइयों पर कभी परवाने नहीं होते”ऊँचाइयों पर कभी परवाने नहीं होते,आसमान पर ठौर-ठिकाने नहीं होते।कदम सम्भल कर उठाना मेरे दोस्त,कम खंजर चलाने वाले नहीं होते।ख़ुद की शोहरत, ख़ुद को ही भाती है,यहाँ नफ़रत के...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

ख्वाबों की दुनिया सजाई थी मैंने। 

ख्वाबों की दुनिया सजाई थी मैंने।  संजीव-नी।    ख्वाबों की दुनिया सजाई थी मैंने।     दिल में ख़्वाबों की दुनिया सजाई थी मैंने,  तेरे आने की चाहत जगाई थी मैंने।     तेरे आने से महफ़िल गुलज़ार हो उठी, राह पलकों पे अपनी बिछाई थी मैंने।     तेरी पायल की छन...
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