ताले लगे दरवाज़ों पर, और रिश्ते छूटते चले गए

 [जब ताले चाभी से नहीं अपनत्व से खुलते थे]

ताले लगे दरवाज़ों पर, और रिश्ते छूटते चले गए

दरवाज़े तब नहीं खुलते थे जब चाभी घूमती थी, वे तब खुलते थे जब कोई पुकारता था  मैं हूँ… वो वक़्त था जब ताले धातु से नहींभरोसे से बने होते थे। वो दिनजब किसी के आने पर कुंडी खोलनी नहीं पड़ती थीबस मन खोलना होता था।  जाइए एक औपचारिक आमंत्रण नहींदिल से निकला अपनापन था। कोई पीछे से चुपचाप आ जाएतो डर की बजाय चेहरे पर मुस्कान खिलती थी। और आजघंटी बजती हैदरवाज़ा खुलता हैपर दिल बंद ही रहता है। हमारा समाजजो कभी विश्वास की नींव पर टिका थाअब सिक्योरिटी सिस्टम और शक की परतों में उलझ गया है। क्या हमने सचमुच प्रगति की हैया सिर्फ़ भरोसे को ताले में बंद कर दिया है?

वो दौर कुछ और था। गाँवों की गलियों मेंजहाँ हर घर एक-दूसरे का विस्तार थाताले सिर्फ़ रात की नींद की रखवाली करते थे। लोग अपने पड़ोसियों को नाम से जानते थेउनकी कहानियाँ जानते थे। भारतीय संस्कृति मेंजहाँ अतिथि देवो भवका मंत्र गूंजता थामेहमान को भगवान का दर्जा दिया जाता था। कोई अनजाना व्यक्ति घर आ जाएतो उसे पानी और प्रसाद मिलता थान कि संदेह भरी नज़रें। आँकड़ों की बात करें तोराष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबीके 2010 के आँकड़ों के अनुसारग्रामीण क्षेत्रों में चोरी और सेंधमारी के मामले शहरी क्षेत्रों की तुलना में 40% कम थे। इसका कारण सिर्फ़ पुलिस की मौजूदगी नहींबल्कि सामुदायिक विश्वास थाजो अपराध को रोकने का सबसे बड़ा हथियार था।

पर आज का सच कुछ और है। शहरीकरण ने हमें ऊँची-ऊँची दीवारें दींपर रिश्तों की गर्मी छीन ली। आज के घरों में ताले ही नहींसीसीटीवी कैमरेमोशन सेंसरऔर बायोमेट्रिक लॉक तक हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसारभारत में 2023 तक सिक्योरिटी सिस्टम का बाज़ार 2.5 बिलियन डॉलर का हो चुका थाऔर हर साल इसमें 12% की वृद्धि हो रही है। ये आँकड़े बताते हैं कि हम सुरक्षा पर कितना निवेश कर रहे हैंपर क्या ये यह भी नहीं दिखाते कि हमारा भरोसा कितना कम हो गया हैआज हम पड़ोसी का नाम तक नहीं जानतेलेकिन उसके घर में लगे कैमरे की रेंज ज़रूर जानते हैं।

क्या वजह है इस बदलाव कीक्या हम सचमुच इतने असुरक्षित हो गए हैंया हमने अपने मन में डर का ताला लगा लिया हैमनोवैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसारशहरी जीवनशैली में बढ़ता तनाव और अलगाव लोगों में विश्वास की कमी का बड़ा कारण है। जब हम हर अनजान चेहरे को शक की नज़र से देखते हैंतो हम न सिर्फ़ रिश्तों को खोते हैंबल्कि अपनी मानसिक शांति भी गँवा देते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओके एक अध्ययन के मुताबिकभारत में 20% लोग किसी न किसी रूप में चिंता से ग्रस्त हैंऔर इसका एक बड़ा कारण सामाजिक अलगाव है।

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पहले के ज़माने में विश्वास एक सामाजिक पूँजी थी। गाँवों में आज भी कुछ जगहों पर यह देखने को मिलता है। वहाँ बच्चा किसी के भी घर चला जाएउसे रोटी मिल जाती है। वहाँ ताले नहींरिश्ते पहरा देते हैं। एक छोटा-सा उदाहरण लें — उत्तराखंड के कुछ गाँवों में आज भी लोग अपने घरों को बिना ताला लगाए छोड़ जाते हैंक्योंकि उन्हें यकीन है कि पड़ोसी उनकी गैरहाज़िरी में घर की देखभाल कर लेगा। ये विश्वास सिर्फ़ परंपरा नहींएक जीवनशैली हैजो हमें याद दिलाती है कि इंसानियत अभी बाकी है।

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लेकिन शहरों में कहानी अलग है। यहाँ हर दरवाज़े पर ताला हैऔर हर ताले के पीछे एक डर। हमने तकनीक को इतना गले लगाया कि सहजता को भूल गए। आज हम अपने घर को स्मार्ट लॉक से सुरक्षित करते हैंलेकिन पड़ोसी के साथ एक कप चाय की गर्माहट को भूल जाते हैं। एक अध्ययन के अनुसारभारत के शहरी क्षेत्रों में 60% लोग अपने पड़ोसियों के साथ कोई सामाजिक संबंध नहीं रखते। यह आँकड़ा सिर्फ़ एक संख्या नहींबल्कि हमारे बदलते सामाजिक ढाँचे की तस्वीर है।

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वो ज़माना कुछ और ही था, जब घरों की दीवारें भले ही मिट्टी की होती थींपर दिलों में भरोसे की ईंटें जड़ी होती थीं। एक गाँव में एक बुजुर्ग दंपति रहते थेजिनका दरवाज़ा कभी बंद नहीं होता था।  एक बार किसी ने उनसे पूछाआपको डर नहीं लगता कि कोई चोरी कर लेगाउन्होंने मुस्कुराकर जवाब दिया  जो ले जाएगाउसे शायद हमसे ज़्यादा ज़रूरत होगी। यह जवाब सिर्फ़ शब्द नहींएक दर्शन था — विश्वास का दर्शन। उस दौर में लोग लोग तिजोरियाँ नहींरिश्ते बचाते थेडर से नहींभरोसे से जीते थे।

आज हमें यह तय करना है कि हम कैसा समाज चाहते हैं। क्या हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे एक ऐसी दुनिया में बड़े होंजहाँ हर दरवाज़े पर कैमरा हो और हर रिश्ते पर सवालया हम चाहते हैं कि वे उस विश्वास की गर्माहट को जानेंजो कभी हमारे समाज की रीढ़ थीतकनीक को रोकना मुमकिन नहींलेकिन विश्वास को फिर से जगाना हमारे हाथ में है। शुरुआत छोटी-छोटी चीज़ों से हो सकती है — किसी अनजान बच्चे को मुस्कुराकर देखनाकिसी पड़ोसी की मदद बिना शर्त करनाया किसी मेहमान को बिना सवाल किए घर में जगह देना।

विश्वास कोई जटिल विज्ञान नहीं हैयह एक साधारण मानवीय भावना है। जब हम किसी पर भरोसा करते हैंतो हम न सिर्फ़ उनके लिएबल्कि अपने लिए भी एक बेहतर दुनिया बनाते हैं। क्योंकि जो रिश्ते भरोसे से बनते हैंउन्हें चाभियों की ज़रूरत नहीं पड़ती। जो दरवाज़े अपनत्व से खुलते हैंवे कभी बंद नहीं होते। आज जब हम अपने घरों को तालों से लैस कर रहे हैंतो एक बार ठहरकर सोचें — क्या हम सिर्फ़ अपने घरों को सुरक्षित कर रहे हैंया अपने दिलों को भी बंद कर रहे हैंताले अब भी खुल सकते हैं। बस उस पुरानी चाभी को ढूँढना होगाजो धूल में छुपी है। उसे साफ़ कीजिएऔर देखिए — न सिर्फ़ दरवाज़ाबल्कि पूरी दुनिया खुलने लगेगी।

प्रो. आरके जैन अरिजीत, बड़वानी (मप्र)

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