भीड़ का हिस्सा नहीं, संवेदनशील, दायित्ववान एवं अनुशासित सहभागी बनें
On
लेखक:प्रो.(डा.) मनमोहन प्रकाश, शिक्षाविद्
भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और खेल आयोजन हमारी सांस्कृतिक विविधता और सामूहिक उत्साह के प्रतीक हैं। ये आयोजन निरंतर होते रहते हैं, किंतु जब यही उत्सव असंवेदनशीलता, अव्यवस्था और अनुशासनहीनता के कारण त्रासदी का रूप ले लेते हैं, तो एक गंभीर प्रश्न उठता है—क्या हम केवल एक भीड़ हैं या एक जिम्मेदार समाज? क्या भीड़ प्रबंधन केवल शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी है? क्या सहभागियों का कोई दायित्व नहीं बनता?
हमारे देश में भीड़ के अनियंत्रित होने के कारण अनेक त्रासद घटनाएं घट चुकी हैं। 1954 के प्रयागराज कुंभ में हुई भगदड़ स्वतंत्र भारत की पहली बड़ी चेतावनी थी, जिसने प्रशासनिक सीमाओं को उजागर किया। इसके बाद 2003 में नासिक कुंभ;
2008 में नांदेड़ (हुज़ूर साहिब गुरुद्वारा), नैना देवी मंदिर (हिमाचल प्रदेश);2011में पुलुमेदु मकर संक्रांति मेला, केरल;
2013 में रतनगढ़ मंदिर, दतिया (मध्य प्रदेश);2014 में पटना देवी मंदिर (बिहार), डोमरी गांव (वाराणसी),2014 में दशहरा समारोह, पटना;2015 में पुष्करम उत्सव, राजमुंदरी (आंध्र प्रदेश);2022 में वैष्णो देवी मंदिर;2023 में कुबेरेश्वर धाम, रुद्राक्ष महोत्सव;2024 में हैदराबाद थिएटर हादसा;2024 में हाथरस, सत्संग के बाद भगदड़;2025 में महाकुंभ हादसा, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन हादसा, चिन्नास्वामी स्टेडियम (बेंगलुरु) के बाहर आईपीएल विजय का जश्न जैसे आयोजनों में विभिन्न कारणों से भीड़ अनियंत्रित हुई, भगदड़ मची और कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
इन हादसों की जिम्मेदारी किस पर डाली जाए? क्या आयोजनकर्ता पूर्णतः दोषी हैं? क्या प्रशासनिक व्यवस्था ही विफल रही? या फिर क्या भीड़ में शामिल हर व्यक्ति को भी आत्ममंथन नहीं करना चाहिए?
भीड़भाड़ वाले आयोजनों में भाग लेना अनुचित नहीं है, किंतु सहभागी बनने से पहले कुछ मूलभूत प्रश्नों पर विचार करना आवश्यक है:क्या आयोजन को प्रशासन से अनुमति प्राप्त है?;
आयोजन स्थल की क्षमता और व्यवस्था कैसी है?;क्या यह आयोजन केवल आमंत्रित या पासधारकों के लिए है या सभी के लिए खुला है?;निजी वाहन लेकर वहां जाना कितना उचित है?;
क्या भीड़ में मेरी उपस्थिति आवश्यक है या घर से भी इसे देखा जा सकता है?आज के तकनीकी युग में बहुत से आयोजन घर बैठे टीवी या डिजिटल माध्यमों से देखे जा सकते हैं। यदि हर व्यक्ति यह मान ले कि वह केवल दर्शक नहीं, बल्कि आयोजन का सह-व्यवस्थापक है, तो कई समस्याएं स्वतः समाप्त हो सकती हैं।
हम यह भूल जाते हैं कि लाइन तोड़ने वाला, धक्का देने वाला, गेट पर चिल्लाने वाला,शोर मचाते हुए, झंडा लहराते हुए तेज रफ्तार में दो पहिए वाहन चलाने वाला,अफवाह फैलाने वाला, नियमों की अनदेखी करने वाला व्यक्ति स्वयं अव्यवस्था का हिस्सा बन जाता है।
भीड़ प्रबंधन केवल पुलिस बल, बैरिकेडिंग, स्मार्ट निगरानी प्रणाली, सीसीटीवी, ड्रोन, RFID टैगिंग, इमरजेंसी रिस्पॉन्स सिस्टम, मोबाइल ऐप्स, हाईटेक लाउडस्पीकर या वर्चुअल रूट मैपिंग से संभव नहीं। इसका मूल आधार है अनुशासन, संवाद और नागरिक सहयोग।
एक जिम्मेदार सहभागी वही होता है जो समय का पालन करे,
अनुशासन में रहे,अफवाहों से बचे,दूसरों की सुविधा का उतना ही ध्यान रखे जितना अपनी, असहज, असहाय लोगों की मदद करे,प्रशासन का सहयोग करे।यह आचरण किसी कानून या प्रशिक्षण से नहीं आता, बल्कि सामाजिक चेतना और नैतिक अनुशासन से उत्पन्न होता है।
हमें यह स्वीकार करना होगा कि हादसे केवल व्यवस्था की विफलता नहीं, बल्कि हमारे सामूहिक असंवेदनशील और गैर-जिम्मेदार व्यवहार का भी परिणाम होते हैं। जांच रिपोर्ट, मुआवजा और खेद-प्रकट करना पर्याप्त नहीं। जरूरत है आत्मचिंतन और सक्रिय नागरिक सहभागिता की।
अब समय आ गया है कि हम आयोजनों को केवल 'उपस्थित रहने' की प्रक्रिया न मानें, बल्कि अपनी भूमिका को रचनात्मक रूप से परिभाषित करें। जब हर नागरिक स्वयं को उत्तरदायी मानेगा, तभी भारत की आयोजन-संस्कृति सुरक्षित, गरिमामय और प्रभावशाली बन सकेगी। अतः भीड़ नहीं—संवेदनशील, दायित्ववान और अनुशासित सहभागी बनना ही आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।
About The Author
Related Posts
Post Comment
आपका शहर
14 Jul 2025 15:09:25
चिंताजनकः उत्तराखंड में आ सकता है बड़ा भूकंपदून में वैज्ञानिकों ने की चर्चा, संभावित क्षेत्र की तलाश की शुरू। खबर:अमित...
अंतर्राष्ट्रीय
14 Jul 2025 17:40:56
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दूसरी बार राष्ट्रपति पद की ताजपोषी के साथ-साथ डोनाल्ड ट्रंप द्वारा रूस यूक्रेन युद्ध के...
Online Channel
खबरें
राज्य

Comment List