भारत के विभिन्न राज्यों में होली की अनोखी परंपराएं
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भारतीय संस्कृति में होली एक खास उत्सव है, जो सिर्फ रंगों का ही आकर्षण नहीं बल्कि एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक एवं धार्मिक त्योहार भी है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, होली हिंदू नववर्ष की शुरुआत का दिन है। प्राचीन समय से ही भारत में कृषि की प्रधानता रही है, और ऋतु परिवर्तन एवं फसलों की बुआई-कटाई की मान्यताएं हिंदू त्योहारों से जुड़ी हुई हैं। फसल पकने की खुशी में होली मनाने की और रंग खेलने की परंपरा है। जलती हुई अग्नि में नई फसल का कुछ भाग अर्पित करते हैं। दरअसल, जब भी कोई फसल आती है तो उसका कुछ भाग भगवान को, प्रकृति को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है। पूरे भारतवर्ष में होली धूमधाम से मनाई जाती है और इस त्योहार को लेकर देश के अलग-अलग राज्यों में लोककथाएं एवं परंपराएं प्रचलित हैं।
बिहार की होली
बिहार में होली का सतरंगी मिजाज देखने को मिलता है। मिथिला, भोजपुरी भाषी एवं मगध प्रदेश में होली के अलग-अलग अंदाज हैं। मिथिला क्षेत्र में सहरसा के बनगांव की घुमौर होली ब्रज की तरह ही प्रसिद्ध है। यहां हजारों की संख्या में लोग जुटकर घुमौर होली खेलते हैं। समस्तीपुर में एक विशेष प्रकार की छाता होली खेली जाती है, जिसमें बांस के बड़े-बड़े छाते बनाए जाते हैं। मगध क्षेत्र के पटना सहित नवादा, गया, औरंगाबाद, अरवल और जहानाबाद आदि जगहों पर बुढ़वा होली मनाई जाती है, जो होली के अगले दिन मनाई जाती है। भोजपुर क्षेत्र—आरा, जमुई आदि में धुरखेल होली का चलन है। यहां लोग पहले होलिका दहन की राख से होली खेलते हैं, फिर कादो-माटी की होली, फिर रंगों की होली और अंत में अबीर की होली खेलते हैं। बिहार में होली के पारंपरिक फाग लोकगीत गाए जाते हैं और होलिका दहन के दिन होलिका की अग्नि में कुलदेवी या देवता को बारा चढ़ाने का रिवाज है।
उत्तर प्रदेश की होली
उत्तर प्रदेश की होली की बात ही निराली है। यहाँ होली की कई छटाएँ देखने को मिलती हैं, जो विदेशों तक प्रसिद्ध हैं। काशी की होली की परंपरा बेहद खास है। यहाँ होली से पहले रंग एकादशी के दिन माता पार्वती की विदाई की परंपरा है। विदाई के लिए आए शिवजी के साथ रंग-गुलाल खेलकर होली का शुभारंभ किया जाता है। मथुरा-वृंदावन की होली कृष्ण और राधा के प्रेम का प्रतीक है। यहां होली की खुमारी 16 दिनों तक छाई रहती है। राधा के गांव बरसाने में लट्ठमार होली मनाई जाती है, जो विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ महिलाएँ पुरुषों को लाठियों से मारती हैं और पुरुष उनसे बचते हुए उन पर रंग डालते हैं। प्रयागराज में होली के दिन जुलूस निकालने की परंपरा है।
मध्य प्रदेश की होली
मध्य प्रदेश की भगोरिया होली झाबुआ और अलीराजपुर में मनाई जाती है। इसमें आदिवासी मेले का आयोजन रंगों और गुलाल के साथ किया जाता है। यह जीवन और प्रेम का उत्सव होता है। इंदौर की रंगपंचमी विश्व प्रसिद्ध है, जहाँ गेर (एक तरह का जुलूस) निकालने का रिवाज है, जिसमें लाखों लोग शामिल होते हैं और पूरी धरती रंगों से सराबोर हो जाती है। ग्वालियर में सिंधिया राजपरिवार की होली खेली जाती है। निमाड़ अंचल में बड़ी संख्या में गोंड आदिवासी लोग रहते हैं, जो पारंपरिक तरीके से होली मनाते हैं और मेघनाद की पूजा करते हैं। रायसेन जिले में अंगारे वाली होली मनाई जाती है, जिसमें नंगे पाँव अंगारों पर चलने की परंपरा है।
राजस्थान की होली
राजस्थान में बरसाने और मथुरा-वृंदावन की तरह लट्ठमार और फूलों की होली का प्रचलन है। जोधपुर, जयपुर और उदयपुर में शाही होली खेली जाती है। अजमेर में माली होली और गैर होली मनाई जाती हैं। गैर होली में कम से कम 12 गाँवों के पुरुष अजमेर में इकट्ठा होते हैं और ढोल-नगाड़ों के साथ फाग गाते हैं, जिसका आनंद पूरा शहर लेता है। डोलची होली एक विशिष्ट परंपरा है, जिसमें पुरुष ऊँट की खाल से बने डोलची नामक बर्तन से दूसरे पुरुष पर रंग फेंकते हैं।
गुजरात की होली
गुजरात में होली का त्योहार धुलेटी के नाम से जाना जाता है। यहाँ मथुरा की तरह 40 दिनों तक होली खेलने की परंपरा है। होली के अगले दिन हांड़ी प्रतियोगिता होती है, जिसमें लोग ऊँचाई पर टंगी हांड़ी तोड़ने का प्रयत्न करते हैं।
उत्तराखंड की होली
देवों की नगरी उत्तराखंड की होली ब्रज की तरह ही प्रसिद्ध है। यहाँ कुमाऊँ क्षेत्र में दो तरह की होली मनाई जाती है—बैठकी होली और खड़ी होली। बैठकी होली का आयोजन बैठकर किया जाता है, जबकि खड़ी होली में सामूहिक नृत्य के साथ चौराहों और चौबारों में इसे गाया जाता है। इनके अलावा देश के दक्षिण और अन्य राज्यों में भी होली धूमधाम से मनाई जाती है। होली की तरह ही रंगों का यह त्योहार दुनिया के कई अन्य देशों में भी मनाया जाता है।
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