स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अपने ही घर में बेगाने हुये फिराक
पर्यटक स्थल तक नही हुआ मयस्सर बृ जनाथ तिवारी
On
गोलाबाजार गोरखपुर। गोला तहसील क्षेत्र में स्थित बनवारपार गांव में मुंशी गोरख प्रसाद के यहां सुप्रसिद्ध शायर रघुपति सहाय का जन्म28 अगस्त 1896 में हुआ था।दादा का नाम जानकी।प्रसाद था। किशोरी देवी के साथ बिबाह 29 जून 1914 को हुआ।फिराकने उच्च शिक्षा 1919 में आगरा वि०वि० से प्रथम क्षेणी में एम.ए.पास की उसके बाद:1919 में आईसीएस की परीक्षा पास की परन्तु अपने कतिपय व्यक्तिगत कारण से इस नौकरी को स्वीकार नहीं किया।कानपुरवि०वि०,1930 में इलाहाबाद वि०वि० में अंग्रेजी के प्रवक्ता पद पर नियुक्त हुये। अंग्रेज़ी,उर्दू और हिन्दीभाषा पर विशेष प्रभाव था।
रघुपति सहाय गोरखपुरी यानी शेर-ओ-शायरी की विश्व का ऐसा नाम जिसने दुनिया का एक ऐसा नाम जिसने दुनिया के साहित्य पटल पर अपने शायरी और मिज़ाज से एक अलग पहचान बनाया है।रघुपति सहाय गोरखपुरी केपैतृक गांव बनवारपार का नाम इनके पूर्वज बनवारी लाल के नाम पर पडा।बिडंबना है कि जिस गांव व शहर को अलग पहचान देते हुये अपना प्रभाव बनाया आज उसी बनवारपार और गोरखपुर ने उन्हें भूला दिया।फिराक जी का गजले,नज्म और शेर ओर शायरी उनकी यादों में आज तक उनके शहर में दम तोड़ रही है।
अपने ही शहर में बेगाने हो गये फिराक:
सरकार ने कभी फिराक के याद में एक कम्युनिटी सेन्टर बनाने की घोषणा की थी,लेकिन 61लाख रुपये का यह प्रस्ताव महज सरकारी जमुला बनकर रह गया।उनकी धरोहर को संग्रहित करने के लिए आने वाले नस्ल (पीढ़ी) को फिराक से रुबरु होने का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है।जिस घर में फिराक ने जन्म लिया और पले-बढे वह मकान खंडहर बना हुआ है।शासन-प्रशासन और साहित्य के कद्रदानों को इसका जरा सा कोई फिक्र नहीं है।
कभी पूर्वाचल का आनन्द भवन था 'लक्ष्मी निवास:
रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी का शहर गोरखपुर जिले में तुर्कमानपुर मुहल्ला में एक घर था।इनके पिता गोरख प्रसाद सहाय उर्फ़ इबारत यहां के जाने-माने वकील और फारसी के शायर थे।अपने समय में लक्ष्मी निवास पंडित जवाहरलाल नेहरु,अली बंधु व प्रेमचंद जैसे हस्तियों का रुकने के लिए ठिकाना रहा।स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित रामबली मिश्र,मजनू गोरखपुरी,गौहर गोरखपुरी,परमेश्वरी दयाल,एम कोटियावी राही,मुग्गन बाबू,जोश मलीहाबादी,मजनू द्विवेदी और शिब्बन लाल सक्सेना जैसे महान हस्तियों का अक्सर आना-जाना लगा रहता था।
लंबी बीमारी के बाद 3 मार्च 1982 को फिराक साहब इस दुनिया से अलबिदा हो गए।रघुपति सहाय अपनेपिता जी के मृत्यु के पश्चात पिता द्वारा छोड़े गये कर्ज,भाइयों की तालीम और बहनों की शादी के लिए फिराक को यह लक्ष्मी निवास बेचना पढ़ा।इसे महादेव प्रसाद तुलस्यान ने खरीदा।उनके पुत्र बाला बाला प्रसाद तुलस्यान राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के अधिक प्रभावित थे।लिहाजा बाद के दिनों में उन्होनें इस मकान को संघ को सौप दिया।वषों तक नानाजी देशमुख यहां संघ प्रमुख के रुप में रहे।अब इसके एक हिस्सा में सरस्वती शिशु मन्दिर नाम से स्कूल चलता है।स्वंय फिराक भी इस मकान को मनहुश मानते थे।
About The Author
स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।
Related Posts
राष्ट्रीय हिंदी दैनिक स्वतंत्र प्रभात ऑनलाइन अख़बार
12 Dec 2025
12 Dec 2025
11 Dec 2025
Post Comment
आपका शहर
10 Dec 2025 20:28:56
Kal Ka Mausam: उत्तर भारत इस समय कड़ाके की ठंड का सामना कर रहा है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार...
अंतर्राष्ट्रीय
28 Nov 2025 18:35:50
International Desk तिब्बती बौद्ध समुदाय की स्वतंत्रता और दलाई लामा के उत्तराधिकार पर चीन के कथित हस्तक्षेप के बढ़ते विवाद...

Comment List