राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन के लिए दिया गया प्रशिक्षण
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वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ.सियाराम कनौजिया,ब्लॉक पचपेड़वा,जिला बलरामपुर के द्वारा 9वी वाहिनी सशस्त्र सीमा बल बलरामपुर के कुल 08 जवानों को राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण दिया गया। यह प्रशिक्षण 1 दिन का था। इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य निम्न प्रकार से है
1.सीमावर्ती क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय ग्रामीणों को राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन के बारे में बल के प्रशिक्षित कर्मियों द्वारा जानकारी व प्रशिक्षण देना l
2.इस प्रशिक्षण के माध्यम से जवानों अपने सेवानिवृति के पश्चात रोजगार का एक साधन बना सकता है तथा अपने गांव में प्रशिक्षण केंद्र खोलकर वहा के स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार के लिए जागरूक कर सकते है l
3.मधुमक्खी के छते और बुनियादी उपकरण के बारे में जानकारी देना l
4.मधुमक्खी उत्पाद जैसे मधु, रायलजेली व पराग के सेवन से मानव स्वस्थ एवम निरोगित होता है एवं
बगैर अतिरिक्त खाद, बीज, सिंचाई एवं शस्य प्रबन्ध के मात्र मधुमक्खी के मौन वंश को फसलों के खेतों व मेड़ों पर रखने से कामेरी मधुमक्खी की परागण प्रकिया से फसल, सब्जी एवं फलोद्यान में सवा से डेढ़ गुना उपज में बढ़ोत्तरी होती है |
मधुमक्खी पालन में कम समय, कम लागत और कम ढांचागत पूंजी निवेश की जरूरत होती है,
कम उपजवाले खेत से भी शहद और मधुमक्खी के मोम का उत्पादन किया जा सकता है,
मधुमक्खियां खेती के किसी अन्य उद्यम से कोई ढांचागत प्रतिस्पर्द्धा नहीं करती हैं,
मधुमक्खी पालन का पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मधुमक्खियां कई फूलवाले पौधों के परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस तरह वे सूर्यमुखी और विभिन्न फलों की उत्पादन मात्रा बढ़ाने में सहायक होती हैं,
शहद एक स्वादिष्ट और पोषक खाद्य पदार्थ है। शहद एकत्र करने के पारंपरिक तरीके में मधुमक्खियों के जंगली छत्ते नष्ट कर दिये जाते हैं।
वैज्ञानिक तरीके से पालन करने में मधुमक्खियों को बक्सों में रख कर और घर में शहद उत्पादन कर रोका जा सकता है,
मधुमक्खी पालन किसी एक व्यक्ति या समूह द्वारा शुरू किया जा सकता है,
बाजार में शहद और मोम की भारी मांग है।
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