संजीवनी।

संजीवनी।

 
 


क्यों खतो में इत्र की तरह महकते नहीं।

क्यों गुलाबों की तरह महकते नहीं,
क्यूं चिड़ियों की तरह चहकते नहीं।

दफ्न हो रही है तमन्ना ए आरजू,
क्यू कलियों की तरह खिलते नहीं।

मर जायेगा आशिक़ तनहा होकर,
क्यों खतो में इत्र की तरह महकते नहीं।

फीकी पड़ गई है हमारी मोहब्बत,
क्यो तसव्वुर की तरह लहकते नहीं।

तमन्नाओं सी मंजिल हो तुम मेरी,
क्यों जुगनू की तरह चमकते नहीं।

आदतन मुश्किलें तो पैदा करेगा जमाना,
क्यों हसीन ख्वाबों की तरह जुड़ते नहीं।

पहलू में सुकून दो पल गुजार तो लो,
क्यों मिलने की तरह मिलते नहीं।

संजीव ठाकुर,

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संजीव-नी।
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