देखना कहीं लू न लग जाए लोकतंत्र को

देखना कहीं लू न लग जाए लोकतंत्र को

आज मै अपनी बात   कविराज सेनापति  से करना  चाहता हूँ ।  सेनापति ऋतु वर्णन के अद्भुत चितेरे रहे ।  आजकल देश के अधिकांश हिस्सों में जिस तरह गर्मी का प्रकोप है ,उसे अनुभव करते हुए मुझे सेनापति बार-बार याद आते हैं ।  वे लिखते हैं -

बृष को तरनि तेज, सहसौ किरन करि,

ज्वालन के जाल बिकराल बरसत हैं।
तपति धरनि, जग जरत झरनि, सीरी
छाँह कौं पकरि, पंथी-पंछी बिरमत हैं॥
'सेनापति नैक, दुपहरी के ढरत, होत
घमका बिषम, ज्यौं न पात खरकत हैं।
मेरे जान पौनों, सीरी ठौर कौं पकरि कौनौं,
घरी एक बैठि, कहूँ  घामै बितवत हैं।


कभी-कभी  मुझे लगता है कि आज की गर्मी की तरह आज की राजनीति पर मै भी सेनापति की तरह कुछ ख़ास लिख पाता । लेकिन कहते हैं न ' ये मुंह और मसूर की दाल ? ' मै लोकतंत्र   के नाम पर आजकल देश में बरस रही आग का वर्णन  आखिर कैसे कर सकता हूँ ? यहां तो पल-पल मौसम बदलता  है ।  मौसम और हिन्दुस्तानी नेताओं के बीच एक तरह की होड़ लगी हुई है बदलने को लेकर। इस बदलाव में सबसे आगे हमारे आदिगुरु माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी हैं।


आप कहेंगे कि आपका काम आजकल बिना मोदी जी के चलता ही  नहीं,! हकीकत है कि मोदी आजकल सर्वत्र व्याप्त हैं ' हरि व्यापक  सर्वत्र समाना ' की तरह। गोस्वामी तुलसीदास  जी ने राम चरित मानस में कहा है कि
-हरि ब्यापक सर्बत्र समाना। प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना॥
देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं। कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं॥
अर्थात मैं तो यह जानता हूँ कि भगवान सब जगह समान रूप से व्यापक हैं, प्रेम से वे प्रकट हो जाते हैं, देश, काल, दिशा, विदिशा में बताओ, ऐसी जगह कहाँ है, जहाँ प्रभु न हों। आज के युग में मुझे भी यही लगता है कि मोदी जी सर्वत्र  व्यापक है।वे केवल प्रेम से ही नहीं आपके सामने क्षोभ से ,घृणा से ,क्रोध से  प्रकट हो सकते है। आप  देश, काल, दिशा, विदिशा में बताओ, ऐसी जगह कहाँ है, जहाँ माननीय मोदी जी न हों ?

'राजनीति में,लोकतांत्र में तंत्रों में ,यंत्रों में ,मंत्रों में  सब कह हैं मोदी जी। ऐसी व्यापकता किसी और नेता की शायद नहीं है। राहुल गांधी या दूसरे नेता आजकल इस मामले में नंबर दो पर ही है।  और ये सब कमाल किसका है ,आप सभी जानते हैं।
 दो दिन पहले माननीय मोदी जी जब बनारस में गंगाविहार के दौरान क्रूज पर हमारे पत्रकार मित्रों को साक्षात्कार  दे रहे थे,तब मै उन्हें सुनकर भाव विभोर हो गया था ।  वे कह रहे थे कि -'यदि मै हिन्दू-मुसलमान करूँ तो मुझे पातकी कहिये ' मै माननीय की बातों पर आँखें बंद कर देश की जनता की तरह भरोसा करता आया हूँ ,लेकिन हमेशा कि तरह मोदी जी ने दिल्ली पहुँचते ही फिर से मेरा और देश का दिल तोड़ दिया।

उन्होंने पांचवें चरण के मतदान से पहले एक बार फिर हिन्दू-मुसलमान किया ।  मंगलसूत्र,विरसे और आरक्षण कि डकैती की बातें कर डालीं। अर्थात उनका काम हिन्दू -मुसलमान और उन हौवों के बिना नहीं चला जो वे पिछले एक महीने से अपने साथ लेकर तमाम रैलियों में उपस्थित होते हैं।
मुमकिन है कि मै गलत होऊं लेकिन लगता है कि मोदी जी अपने हौवों के जरिये इस देश के लोकतंत्र को लू लगाकर मानेंगे। वे तीसरी बार सत्ता हासिल करने के लिए इतने व्याकुल  हैं कि पूछिए मत! आप पूछिए भी तो, आपको सच बताएगा कौन ? किसी को मोदी के मन की बात पता नहीं है।  खुद मोदी जी को भी नहीं। वे कांग्रेस को मिटाने के लिए भाजपा और संघ के साथ-साथ देश कि तमाम रिवायतों को मिटा देना चाहते हैं। हिन्दुओं को लेकर वे उतने ही संवेदनशील  हो   गए हैं जितना किसी जमाने में मुसलमानों को लेकर मोहम्मद   जिन्ना हुआ करते थे। जिन्ना साहब आख़िरकार मुसलमानों के लिए पाकिस्तान लेकर ही माने।

 और मुझे लगता है कि अब मोदी जी भी हिन्दुओं के लिए हिंदुस्तान से हिन्दू द्वीप लेकर ही मानेंगे।  वे तब तक सत्ता को टा-टा,वाय-वाय नहीं कहेंगे जब तक कि उन्हें हिन्दू द्वीप मिल नहीं जाता ।  वे ऐसा देश चाहते हैं  जहां हिन्दुओं के अलावा अव्वल तो कोई दूसरा हो ही नहीं और हो भी तो हमेशा हिन्दुओं के सामने साष्टांग मुद्रा में खड़ा दिखाई दे।
भविष्य के गर्त में क्या है ,ये कोई नहीं जानता। महात्मा गाँधी   भी नहीं जानते थे। उन्होंने भी अपना जीवन उस देश के लिए न्यौछावर किया जिसमें हिन्दू-मुसलमान,सिख और ईसाई ही नहीं बल्कि तमाम लोग शामिल थे और हैं। गांधी के बाद हिंदुस्तान को हिंदुस्तान बनाये रखने के लिए शहादतों का सिलसिला थमा नहीं। लेकिन दुर्भाग्य ये है कि खालिस हिन्दू द्वीप चाहने वालों में से किसी ने कोई शहादत अब तक दी नहीं।

शहादत देना और शहादत का अपमान करना दो अलग-अलग चीजें हैं। इसे समझना आसान नहीं  है। देश को आज शहादत की नहीं मोहब्बत की जरूरत है ।  किस कश्ती को हमारे पुरखे  तूफ़ान से बचाकर निकाल लाये थे उसे सम्हालकर रखने की जरूरत है। किन्तु  हो उलटा रहा है। हम देश कि किश्ती को एक बार फिर हिन्दू -मुसलमान कर एक नए तूफ़ान में फंसता देख रहे हैं।
अठरहवीं लोकसभा के लिए चलकर रहे मतदान के शेष तीन चरणों में आप अपने विवेक से सही फैसला कर इस कश्ती को तूफ़ान में घिरने से बचा सकते हैं। नेताओं के श्रीमुख से निकलती आग से बचा सकते हैं। आप यदि चूके तो लोकतंत्र को लू लगना तय है। और हम सब लू लगा लोकतंत्र नहीं एक स्वस्थ्य लोकतंत्र चाहते हैं ,एक ऐसा लोकतंत्र जिसमें राजनीति झूठ की बैशाखियों पर न टिकी हो। अदावत जिसकी रगों में न बहती  हो। तय आपको करना है क्योंकि ये देश हमारा भी है और आपका भी।

राकेश अचल

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