मायावती को इतना शांत कभी नहीं देखा
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स्वतंत्र प्रभात
देश की राजनीति में अहम स्थान रखने वाली बहुजन समाज पार्टी की मुखिया पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को पहले कभी इतना शांत नहीं देखा गया जितनी कि वो इस बार के लोकसभा चुनावों में हैं। सभी पार्टियों ने मतदान पूर्व की सारी प्रक्रियाएं लगभग पूर्ण कर लीं हैं। या फिर पूर्ण होने को हैं। तैयारियों में बहुजन समाज पार्टी भी लगी है लेकिन जिस तरह से शांत रहकर बहुजन समाज पार्टी काम कर रही है वह एक अलग तरह की रणनीति में दिखाई दे रही हैं। हालांकि बहुजन समाज पार्टी ने भी अपने स्टार प्रचारकों की घोषणा कर दी है लेकिन सब जानते हैं कि बहुजन समाज पार्टी में मायावती से बढ़कर कोई बड़ा स्टार प्रचारक नहीं है।
देश के सबसे बड़े सूबे में चार बार सत्ता में काबिज रहने वाली मायावती एक बहुत ही परिपक्व नेता हैं। बहुजन समाज पार्टी की स्थापना कांशीराम ने की थी लेकिन उसको इस मुकाम तक पहुंचाने का काम मायावती ने ही किया है। देश की राजनीति में इस समय उथल-पुथल मची है कांग्रेस के तमाम नेता कांग्रेस से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर चुके हैं। जो कल तक भारतीय जनता पार्टी को जी भर कर कोसते थे आज वह उन्हीं के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। एक अनुमान यह है कि लगभग 450 छोटे बड़े नेता कांग्रेस पार्टी को कुछ ही समय में अलविदा कह चुके हैं।
अब यह उनका व्यक्तिगत स्वार्थ हो या कांग्रेस की नीतियां। इसी तरह आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव से पूर्व बड़े ही पशोपेश में पड़ गई है पार्टी के बड़े नेता अरविंद केजरीवाल सहित जेल में हैं अभी केवल संजय सिंह को ही जमानत मिल सकी है। अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद नहीं छोड़कर जेल से ही सरकार चलाने का एलान किया है। वह कानूनन भी जेल से सरकार चला सकते हैं। और ऐसा ही एक फैसला उनके पक्ष में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी दे दिया है।
हम बात कर रहे थे बसपा प्रमुख मायावती की तो इस बार मायावती ने जिस तरह से उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है उसे देखकर तो ऐसा प्रतीत होता है कि बसपा उम्मीदवार सपा का काम भारतीय जनता पार्टी का नुक़सान ज्यादा कर सकते हैं। मायावती मुस्लिम उम्मीदवारों को ज्यादा उतारने के लिए फेमस हैं लेकिन इस बार जितने मुस्लिम उम्मीदवारों को उन्होंने चुनाव मैदान में उतारा है वह सपा के गणित को फेल नहीं कर रहे हैं। लोगों का तो यहां तक मानना है कि अंदर ही अंदर मायावती और अखिलेश यादव में कोई डील हुई है। हालांकि यह बात केवल चर्चा में है इसका कोई ठोस सबूत नहीं है। लेकिन यह निश्चित है कि जिस तरह से मायावती इस बार का लोकसभा चुनाव जितनी शांति से लड़ रही हैं। इसमें कुछ न कुछ राज जरुर है।
जब इंडिया गठबंधन बना था तो उसी समय मायावती ने घोषणा कर दी थी कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेगी, और अकेले दम पर ही चुनाव लड़ेंगी। उनका कहना था कि जब बसपा का गठबंधन किसी पार्टी से होता है तो बसपा के वोट तो दूसरी पार्टी में ट्रांसफर हो जाते हैं लेकिन दूसरी पार्टी के वोट बसपा को नहीं मिलते जिससे पार्टी को नुकसान उठाना पड़ता है। पिछले लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का उत्तर प्रदेश में गठबंधन था जिसमें समाजवादी पार्टी को पांच और बहुजन समाज पार्टी को दस सीटों पर विजय मिली थी। अगर देखा जाए तो मायावती का यह कहकर गठबंधन तोड़ देना कि सपा का वोट बसपा को नहीं मिल सका, सरासर ग़लत ही लगता है क्योंकि सपा केवल पांच सीटों पर और बसपा ने दस सीटों पर विजय हासिल की थी। तब लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद बसपा ने सपा से गठबंधन तोड़ लिया था।
पिछले लोकसभा चुनाव के बाद हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बसपा अकेले दम पर चुनाव लड़ी और मात्र अपना एक प्रत्याशी ही जिता सकी जब कि समाजवादी पार्टी के 110 प्रत्याशी चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे। इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। फिर भी किसी के साथ गठबंधन न करना मायावती की मजबूरी है या दरियादिली यह तो चुनाव बाद ही पता चल सकेगा। मायावती राजनीति के सफर में अब आखिरी मुकाम पर हैं और इसीलिए उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को राजनैतिक विरासत सौंपने का निर्णय लिया है। हालांकि उत्तर प्रदेश के चुनावों की कमान उन्होंने अभी अपने हाथों में ही रखी है। लेकिन इतना शांत मायावती को कभी नहीं देखा गया। और समाजवादी पार्टी से जिस तरह की तल्खी वो रखतीं थीं वो आज नरम दिखाई दे रही है। हो सकता है कि यह लोकसभा चुनाव एक प्रयोग हो और आगे आने वाले विधानसभा चुनाव में सपा बसपा फिर से एक मंच पर आ जाएं।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस समय भारतीय जनता पार्टी का बोलबाला है लेकिन यदि मुस्लिम वोट एक जगह पड़ता है तो भारतीय जनता पार्टी को भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। यह बात भारतीय जनता पार्टी भी अच्छी तरह से जानती है, और सपा बसपा भी तो उम्मीद भी यही लगाई जा रही है कि इस लोकसभा चुनाव में प्रयोग करके सपा बसपा एक मंच पर आ जाएं। जिससे कि मुस्लिम मतों का बिखराव ना हो। मायावती ने लोकसभा चुनाव को लेकर अभी तक एक भी रैली नहीं की है। जबकि भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी ने रैलियां शुरू कर दी हैं। कांग्रेस पहले ही अपनी भारत जोड़ो यात्रा उत्तर प्रदेश में निकाल चुकी है। मायावती की रैलियों की लिस्ट तैयार तो हो चुकी है लेकिन उनमें अभी देरी है। राजनैतिक जानकारों के मुताबिक सपा बसपा और कांग्रेस इस चुनाव को केवल एक प्रयोग के तौर पर देख रही है।
पिछले लोकसभा चुनाव में सपा बसपा एक थीं जब कि विधानसभा चुनाव में सपा कांग्रेस मिल कर चुनाव लड़े थे। इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी मिल कर चुनाव लड़ रही है और आगे यह भी हो सकता है कि जब उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव हों तो समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी एक हो जाएं। मायावती ने राजनैतिक तौर पर बड़े-बड़े महारथियों को टक्कर दी है। वह एक सशक्त महिला हैं जिनको काफी अधिक राजनैतिक अनुभव है। मायावती को यह भी अहसास है कि बहुजन समाज पार्टी का जनाधार पिछले चुनावों में लगातार कम हो रहा है। और वह नये सिरे से जनाधार बढ़ाने की कोशिश में लगी हैं। राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। इसलिए कई सवाल ऐसे हैं जो कि चर्चा का विषय बने हुए हैं।
जितेन्द्र सिंह पत्रकार
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