आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर शुरू सोशल वार रुम तैयार 

आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर शुरू सोशल वार रुम तैयार 

स्वतंत्र प्रभात 
पुराने समय में न मोबाइल था और न ही इतने इलेक्ट्रॉनिक साधन, झंडे, बैनर, बिल्ले, पेम्प्लेट्स और लाउडस्पीकर से ही चुनाव प्रचार होता था। लाउडस्पीकर का प्रयोग भी भी दो तरह से होता था एक स्थाई हर मुहल्ले के कार्यालय में जो सुवह साथ बजे से रात करीब दस बजे तक चलता था, दूसरा रिक्शा, आटो, टैम्पो, जीप आदि पर लगा लाउडस्पीकर पूरे शहर और गांव में घूम घूम कर चिल्लाकर चुनाव प्रचार होता था। लेकिन समय के साथ बदलाव हुआ उपरोक्त सभी चुनाव संसाधनों पर चुनाव आयोग ने वैन लगा दिया। अब बचा अखबार, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया , सोशल मीडिया के भी दो प्रकार हैं एक किसी समाचार संस्था के द्वारा और एक स्वयं पार्टी के द्वारा। मीडिया संस्था के द्वारा ज्यादा भ्रामक प्रचार और ज्यादा कटाक्ष नहीं हो सकती इसके लिए सभी पार्टियों ने अपने वार रुम तैयार कर लिए हैं।
 
अपने वार रूम में किसी राजनितिक दल पर कोई भी आरोप लगाया जा सकता है और उसको अपशब्दों से भी नवाजा जा सकता है। आज कल पार्टियों द्वारा स्वयं जनता के पास फ्रेंड रिक्वेस्ट पहुंच रही है ताकि उनकी बात अधिक से अधिक जनता तक पहुंच सके। यदि आप फेसबुक, व्हाट्स एप, ट्विटर और इंस्टाग्राम खोलें तो सबसे ज्यादा पार्टियों के वार रुम से भेजे गए स्टेटस ही दिखाई देंगे जिसमें जनता भी शामिल हो जाती है और फिर चलता है आरोप और प्रत्यारोप का दौर, कभी कभी दूसरी पार्टी वालों को अपशब्दों से भी नवाजा जाता है। शायद यह सब जो अपशब्द सोशल मीडिया पर चलते हैं वह चुनाव आयोग के संज्ञान में न हों। एक कारण और है कि इनमें से ज्यादातर लोग जो अपशब्दों का प्रयोग करते हैं वह फेक आई डी वाले सिम से बने एकाउंट से ही करते हैं।
 
चुनाव बाद सब शांत हो जाता है, लेकिन चुनाव तक तो यह इतना अधिक बढ़ जाता है कि शायद यदि आमने-सामने हो तो मारपीट भी शुरू हो जाए। ऐसा नहीं होना चाहिए। कार्यकर्ताओं को संयमित होना चाहिए किसी को अपशब्द कहने से क्या फायदा। यदि आपके प्रत्याशी में काबिलियत होगी तो जनता स्वयं उसे चुनेगी। लेकिन कहीं कहीं स्वयं पार्टियां ऐसा करवातीं हैं। हर मुहल्ले में एक सोशल मीडिया कार्यकर्ता बैठा है। और ऊपर से जो स्टेटस उसे भेजे जाते हैं वह उनको फारवर्ड या पोस्ट करता रहता है। इनमें वैतनिक और अवैतनिक दोनों तरह के लोग हो सकते हैं। क्यों कि इनकी सोशल मीडिया टीम बहुत ही तगड़ी होती है विरोधी की हर बात का जबाब इनके पास होता है। यदि देखा जाए तो पहले भले ही लाउडस्पीकर से कान फूटने लगते थे लेकिन इतनी कटुता नहीं थी। लेकिन समय है वो दिन नहीं रहे तो यह दिन भी नहीं रहेंगे।
आज हमने जब फेसबुक खोला तो ऐसा ही कुछ नजारा देखा तो उस पर लिखने का कुछ मन कर आया। वैसे तो सभी लोग इससे परिचित होंगे क्योंकि अब तो हर हाथों में दो-दो मोबाइल रहते हैं और आज के दौर में प्रचार का इससे अच्छा माध्यम कोई है भी नहीं। क्यों कि बैनर, पोस्टर बिल्ले पेम्प्लेट्स लाउडस्पीकर सभी बैन हैं। और सोशल मीडिया ही सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभर कर सामने आया है। सभी अखबार भी अपना सोशल मीडिया चैनल चला रहे हैं
 
और पल पल की अपडेट अपने पाठकों और श्रोताओं को देते रहते हैं क्योंकि अखबार दूसरे दिन छपकर मिलता है तब तक सारी खबरें सोशल मीडिया के माध्यम से पाठकों तक पहुंच चुकी होती हैं। नेता जी ने अभी-अभी इस मोहल्ले में जनसंपर्क किया तुरंत उसकी खबर सोशल मीडिया पर आ जाती है। बड़े बड़े नेताओं की फ्रेंड रिक्वेस्ट आ रही है और वह आम जन को फालो कर रहे हैं। इससे आप खुश न हों, इस तरह से आपकी जासूसी हो रही है कि आप क्या पोस्ट कर रहे हैं और आपकी विचारधारा किस तरफ बह रही है। इन सब पर भी ध्यान रखा जाता है।
 
सोशल मीडिया का वार रुम मतदान वाले दिन तक आपको जागरूक करता रहता है कि कौन सा प्रत्याशी और कौन सी सरकार आपके लिए फायदेमंद है। भले ही चुनाव बाद फायदा हो या न हो आपको पूरी तरह से कनवेंश किया जाता है। सारे चुनावी घोषणा पत्र भी सोशल मीडिया पर आ जाते हैं। सभी पार्टियों की तुलना भी आपके सामने रख दी जाती है। जिससे कि आपको वोट देने में आसानी हो आप आराम से समझ सकें कि वोट किसे देना है।
 
यहां बात कि एक पार्टी की नहीं हो रही, इस अभियान में सभी दल एक दूसरे को पछाड़ने में लगे हैं। और आज के दौर में जहां व्यक्ति के 24 घंटों में से 16 घंटे मोबाइल पर गुज़रते हो तो प्रचार का इससे अच्छा माध्यम कोई हो भी नहीं सकता। लेकिन इसमें तमाम फेक बातें भी सामने आती हैं। जिनका कोई पता ठिकाना नहीं होता वह बातें भी जनता के सामने परोसीं जातीं हैं। अभी तक इस पर कोई ठोस नियम नहीं बना है। प्रशासन यह नजर रखता है कि किसी तरह की अफवाहों को न प्रसारित किया जाए। जिससे कि माहौल बिगाड़ने की संभावना बन सकती हो। ऐसे संदिग्ध व्यक्तियों पर प्रशासन की नजर रहती है।
 
यूट्यूब, ट्विटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक, टेलीग्राम, और व्हाट्स एप आज प्रचार के प्रमुख हथियार बन गये हैं। सभी राजनैतिक दलों को इसका एहसास है और वह इसके लिए अच्छा खासा नेटवर्क तैयार करती हैं और ऐसा नेटवर्क जो अनुभवी भी हो और विपक्षी कार्यकर्ताओं का जबाब भी ठीक ढंग से दे सके। कभी कभी तो सोशल मीडिया पर बहस काफी तीखी हो जाती है और उस पोस्ट पर जिस पार्टी के समर्थक कम पड़ जाते हैं उस पार्टी के कार्यकर्ता को मोबाइल बंद करना पड़ता है क्योंकि कि उसको काफी कुछ खरी खोटी सुनने को मिल जाती हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या ऐसा करना जरूरी है। क्या हम अपनी उपलब्धियों को गिनवाकर चुनाव नहीं लड़ सकते।
 
क्यों हम अपने ही साथियों से उलझ जाते हैं। जब कि हमें उससे कुछ भी लेना देना नहीं होता है। हम क्यों नहीं एक अच्छे नागरिक की तरह केवल दूसरे की पोस्ट को पढ़ नहीं पाते। क्यों हम उसका हाजिर जवाब देने लगते हैं। आपस में यह कटुता की भी रुप में सही नहीं रहती। हम किसी के भी सपोर्टर हों लेकिन आलोचक होने से बचना चाहिए क्योंकि इससे संबंधों का ह्रास होता है। हम सबको इसी संसार में एक साथ रहना है। सभी के सुख दुःख का भागीदार बनना है। इसलिए हमें अति कटुता से बचना चाहिए।
 
जितेन्द्र सिंह पत्रकार 
 
 
 
 
 

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