सही नीति की सराहना और ग़लत का विरोध करना सीखे विपक्ष

सही नीति की सराहना और ग़लत का विरोध करना सीखे विपक्ष

स्वतंत्र प्रभात 

विपक्ष का मजबूत होना हर सरकार के लिए जरूरी है। लेकिन यदि आप केवल विरोध पर ही तुले रहेंगे तो जनता में इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ना तय है। देश चलाने के लिए सरकार बहुत सी नीतियां बनाती है कुछ जनता की भलाई के लिए होती हैं और कुछ नीतियां सरकार को कहां कहां से अधिक राजस्व की प्राप्ति हो सकती है इसको ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं। जरुरी नहीं है कि सरकार की हर नीति गलत ही हो और यह भी जरूरी नहीं कि हर नति सही ही हो। क्यों कि गलतियां किसी से भी हो सकती हैं और उनका सुधार भी किया जाता है। लेकिन यदि विपक्ष केवल आलोचना में लग जायेगा तो उसकी सही आलोचना भी जनता के सामने ग़लत ही सिद्ध होगी और देश में यही हो रहा है।
 
देश में कई पार्टियों की सरकारों ने कार्य किया है सभी ने अपने अपने तरीके से सरकार चलाई है लेकिन एक ग़लत नीति उसे हमेशा के लिए परेशान कर देती है। ग़लत नीतियों के कारण हमने सरकारों को गिरते भी देखा है। और अच्छी नीतियों की सराहना भी लोगों द्वारा की जाती रही है। कहने का मतलब कोई भी नीति तैयार करने से पहले हमें उसके सभी पहलुओं पर विचार करना चाहिए। अब तो यह प्रथा लगभग समाप्त ही हो चुकी है कि जब सरकारें कुछ नया लागू करने की सोचतीं थीं तो विपक्ष से भी राय ली जाएगी थी। और फिर जब उसको लागू किया जाता था तब उसका विरोध नहीं होता था। क्यों कि उसमें विपक्ष की राय भी शामिल होती थी। लेकिन अब ऐसा बहुत ही कम होता है और उसका एक कारण यह भी है कि विपक्षी दल हर नीति का विरोध करने लगे हैं।
 
अभी एक समाचार ऐसा सामने आया कि उस पर चर्चा की जा सकती है। जो कि नई शराब पालिसी का समाचार एक हिंदी दैनिक में छपा है उसमें ऐसा कहा गया है कि अब रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डों पर भी बिकेगी शराब, हालांकि यह स्टेटमेंट जिला आबकारी अधिकारी के द्वारा दिया गया बताया जा रहा है। लेकिन यदि ऐसा सच है तो इससे राजस्व की बढ़ोतरी तो संभव है लेकिन कई अन्य अव्यवस्थाएं भी फैल सकती हैं।
 
जहां एक तरफ सरकार सार्वजनिक स्थानों पर शराब की के सेवन पर प्रतिबंध लगाती है वहीं दूसरी तरफ रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डों पर शराब परोसने को कैसे लागू कर सकती है। रेलवे स्टेशन भी एक सार्वजनिक स्थान है। और जब शराब पीकर व्यक्ति यात्रा करेगा इससे तमाम व्यवस्था गड़बड़ा सकती हैं। एक शराब पिये व्यक्ति को यह होश नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है तो वह ट्रेन के अंदर कैसे सभी यात्रियों के साथ आसानी से यात्रा कर सकता है। यह एक विचारणीय प्रश्न है।
 
यह नीति कब बनी किस समय बनी इस पर कोई शक नहीं है जब सरकार का जिम्मेदार अफसर जिला आबकारी अधिकारी इस बात की खबर दे रहा है। विपक्ष इस पर बोल सकता है कि सरकार को इस पर पुनः विचार करना चाहिए। लेकिन विपक्ष के अत्यधिक विरोध के कारण जो नियम विरोध करने वाले होते हैं वह भी दब कर रह जाते हैं। हरियाणा और बिहार में पूर्णतया शराब बंदी है। जब यहां की सरकारों ने शराब बंदी की घोषणा की थी तब वहां विशेष कर महिलाओं ने बहुत खुशी जाहिर की थी क्यों कि शराब के कारण सबसे अधिक शोषण महिलाओं का ही होता है और रेलवे स्टेशन पर तो यह स्थिति और गंभीर हो सकती है। लेकिन विपक्ष कभी कभी सही मुद्दों को उठाने में नाकामयाब रहता है।
 
रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट का विकास बहुत ही सराहनीय कदम है है। सरकार देश के रेलवे स्टेशनों को विश्वसनीय बनाना चाहती है, जैसे कि एयरपोर्ट होते हैं। रेलवे परिसर में माल, रेस्टोरेंट आदि सभी व्यवस्थाएं करना चाहती है लेकिन बियर बार खोलना कितना उचित है इस बात पर सोचने की आवश्यकता है।
 
देश में कई सराहनीय कार्य हुए हैं और हो रहे हैं। लेकिन कभी कभी राजस्व की प्राप्ति के लिए सरकारें कुछ ग़लत नीति भी बना लेती हैं। रेलगाड़ियों और बसों में छेड़खानी के समाचार आये दिन मिलते रहते हैं। और यदि शारब पीकर सफ़र करने की इजाजत दे दी गई तो इसमें और इजाफा होने की संभावना हो सकती है। और सरकार को यह कदम वापस भी लेना पड़ सकता है।
 
आवासीय क्षेत्रों से शराब की दुकानें हटाने की मांग होती है। सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के लिए सरकार ने सभी हाइवे से शराब की दुकानों पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया था। और यह जरूरी भी है। अब बात आती है राजस्व की तो हरियाणा और बिहार जैसे राज्यों में शराब बंदी काफी समय से है और वहां की सरकारें चल रही हैं। क्या देश में एक नीति नहीं बन सकती। क्या राज्य सरकारें अपने अपने तरीके से ही नीति तैयार कर सकती हैं।
 
शराब से जो राजस्व प्राप्त होता है उसमें केन्द्र और राज्य दोनों सरकारों का हिस्सा होता है। दोनों को ही उससे धन की प्राप्ति होती है। सरकार जब एक देश एक नीति को लागू करना चाहती है तो यह अलग अलग नीतियों पर रोक क्यों नहीं। पिछले कुछ समय में देश में काफी विकास हुआ है इसमें कोई दो राय नहीं है। और तमाम विकास की परियोजनाओं पर काम भी चल रहा है। लेकिन हमें उनकी अच्छाई और बुराई दोनों पर सोचना होगा तभी हम जनता का कल्याण कर सकते हैं।
 
 जितेन्द्र सिंह पत्रकार 

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