आचार सहिंता के उल्लंघन पर सख्त हो चुनाव आयोग 

आचार सहिंता के उल्लंघन पर सख्त हो चुनाव आयोग 

स्वतंत्र प्रभात 
चुनाव घोषित हो चुके हैं। सभी दल अपने अपने उम्मीदवार घोषित कर रहे हैं। पूरा देश धीरे धीरे चुनावी माहौल में रंगता जा रहा है। भारतीय मतदाता हर पांच साल बाद आने वाले लोकतंत्र के त्योहार को मनाने की तैयारियां कर रहा है।
हर बार की तरह गली-नुक्कड पर खड़े लोग राजनीतिक चर्चा में मशगूल हैं। आज चर्चा का सब से बड़ा विषय हैं ऐसे काम जो आजतक चुनावों में आदर्श आचार सहिंता लगने के बाद पहले कभी नही हुए। ऐसा भारत के इतिहास में यह पहला मौका है जब देश में आचार संहिता लगी हो और किसी राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री व एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष की गिरफ्तारी की गई हो। इस बार यह पहला मौका है जब आचार संहिता लागू होने के बाद प्रधानमंत्री ने कोई विदेशी दौरा किया हो।
 
इस बार के चुनावों से पहले यह पहली बार हुआ जब किसी राज्य में मंत्रीमंडल का विस्तार हुआ हो। इनके अलावा और भी बहुत से कार्य हैं जो आदर्श आचार सहिंता लागू होने के बाद होने नियमों विरूद्ध थे पर हुए। चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान कर दिया है। कुल 7 चरणों में वोट डाले जाएंगे। पहले चरण में 19 अप्रैल को 102 सीटों पर, दूसरे चरण में 26 अप्रैल को 89 सीटों पर, तीसरे चरण में 7 मई को 94 सीटों पर, चौथे चरण में 13 मई को 96 सीटों पर, पांचवें चरण में 20 मई को 49 सीटों पर, छठे चरण में 25 मई को 57 सीटों पर और सातवें यानी आखिरी चरण में 1 जून को 57 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। नतीजे 4 जून को घोषित होंगे। भारत निर्वाचन आयोग के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करते ही आदर्श आचार संहिता लागू हो गई।
 
इस दौरान सरकारी मशीनरी एक तरह से चुनाव आयोग के नियंत्रण में रहेगी। मतदान और मतगणना के बाद नतीजों की आधिकारिक घोषणा के साथ ही आचार संहिता हट जाती है। यहां बताते चले कि देश में किसी भी चुनाव को निष्पक्ष और स्वतंत्र ढंग से सम्पन्न करने के लिए चुनाव आयोग ने कुछ नियम-शर्तें तय किए हैं। इन्हीं नियमों को आचार संहिता कहते है। आदर्श आचार संहिता कानून के द्वारा लाया गया कोई प्रावधान नहीं है। यह सभी राजनीतिक दलों की सर्वसहमति से लागू व्यवस्था है, जिसका सभी को पालन करना होता है। आदर्श आचार संहिता की शुरुआत सबसे पहले साल 1960 में केरल विधानसभा चुनाव से हुई थी, जिसमें इसके तहत चुनावी नियमों में बताया गया कि उम्मीदवार क्या कर सकता है और क्या नहीं।
 
इसके बाद वर्ष 1962 में हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने इस संहिता के बारे में सभी राजनीतिक पार्टियों को अवगत करवाया था। 1967 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में चुनाव आयोग ने सभी सरकारों से इसे लागू करने को कहा और यह सिलसिला आज भी जारी है। वैसे समय-समय पर चुनाव आयोग इसके दिशा-निर्देशों में बदलाव करता रहता है। चुनाव की तारीखें के ऐलान के साथ ही आचार संहिता लागू हो जाती है, जो चुनाव परिणाम घोषित होने तक लागू रहती है। चुनाव में हिस्सा लेने वाले राजनीतिक दल, उम्मीदवार, सरकार और प्रशासन समेत चुनाव से जुड़े सभी लोगों पर इन नियमों का पालन करने की जिम्मेदारी होती है।
 
आचार संहिता लगने के बाद किसी भी तरह की सरकारी घोषणाएं, योजनाओं की घोषणा, परियोजनाओं का लोकार्पण, शिलान्यास या भूमिपूजन के कार्यक्रम नहीं किया जा सकता। सरकारी गाड़ी, सरकारी विमान या सरकारी बंगले का इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जा सकता है। किसी भी पार्टी, प्रत्याशी या समर्थकों को रैली या जुलूस निकालने या चुनावी सभा करने से पहले पुलिस से अनुमति लेनी होगी। कोई भी राजनीतिक दल जाति या धर्म के आधार पर मतदाताओं से वोट नहीं मांग सकता न ही वह ऐसी किसी गतिविधि में शामिल हो सकता है जिससे धर्म या जाति के आधार पर मतभेद या तनाव पैदा हो।राजनीतिक दलों की आलोचना के दौरान उनकी नीतियों, कार्यक्रम, पूर्व रिकार्ड और कार्य तक ही सीमित होनी चाहिए। अनुमति के बिना किसी की ज़मीन, घर, परिसर की दीवारों पर पार्टी के झंडे, बैनर आदि नहीं लगाए जा सकते।
 
मतदान के दिन शराब की दुकानें बंद रहती हैं। वोटरों को शराब या पैसे बाँटने पर भी मनाही होती है। मतदान के दौरान ये सुनिश्चित करना होता है कि मतदान बूथों के पास राजनीतिक दल और उम्मीदवारों के शिविर में भीड़ इकट्ठा न हों। शिविर साधारण हों और वहां किसी भी तरह की प्रचार सामग्री मौजूद न हो. कोई भी खाद्य सामग्री नहीं परोसी जाए। सभी दल और उम्मीदवार ऐसी सभी गतिविधियों से परहेज करें जो चुनावी आचार संहिता के तहत 'भ्रष्ट आचरण' और अपराध की श्रेणी में आते हैं जैसे मतदाताओं को पैसे देना, मतदाताओं को डराना-धमकाना, फर्जी वोट डलवाना, मतदान केंद्रों से 100 मीटर के दायरे में प्रचार करना, मतदान से पहले प्रचार बंद हो जाने के बाद भी प्रचार करना और मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक ले जाने और वापस लाने के लिए वाहन उपलब्ध कराना।
 
राजनीतिक कार्यक्रमों पर नजर रखने के लिए चुनाव आयोग पर्यवेक्षक या ऑब्जर्वर नियुक्त किया जाता है। आचार संहिता लागू होने के बाद किसी भी मंत्री मंडल में फेर बदल आचार सहिंता का उल्लंघन है।चुनाव आयोग की अनुमति के बिना किसी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी का तबादला नहीं किया जा सकता है। इनके अलावा और बहुत से प्रतिबंध है जो आचार सहिंता के दौरान चुनाव लड़ने वालों, चुनाव करवाने वालों और आम जनता पर लागू होते हैं।
 
इन सभी नियमों के उल्लंघन पर सजा का प्रावधान है परन्तु इसके बावजूद भी हर छोटे बड़े चुनाव में हर दल, हर नेता और उनके समर्थक इन चुनावी नियमों की जम कर धज्जियां उड़ाते है। इन नियमों की अनदेखी करने वालों को सजा होते बहुत कम देखा गया है। आमतौर पर नियमों का उल्लंघन करने वालों को चेतावनी देकर छोड़ दिया जाता। अब चेतावनी का क्या है चेतावनी तो सिगरेट-शराब पर लिखी होती है। भारतीय चुनाव आयोग का यह फर्ज है कि अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर इन नियमों का पालन पूरी सख्ती से करवाए। जिससे कि देश में चुनाव ज्यादा निष्पक्ष और सुचारू रूप से हो सके। 
 
(नीरज शर्मा'भरथल') 
 
 
 
 

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