देश के मौजूदा नागरिकों से संबंधित नहीं है सीएए

देश के मौजूदा नागरिकों से संबंधित नहीं है सीएए

(नीरज शर्मा'भरथल') 
 
11 मार्च 2024 के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने संसद में पारित होने के पांच साल बाद सोमवार को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को अधिसूचित कर दिया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सोमवार को देशभर में सीएए लागू होने का ऐलान किया। इस कानून की तुलना इजराइल के उस कानून से की जा रही है जिसके तहत इजराइल दुनिया भर के यहूदियों को अपने देश की नागरिकता देता है। बेशक भारत के इस कानून का दायरा पूरा विश्व तो नही है परन्तु धर्मों के दायरे में इजराइली कानून से भारतीय कानून ज्यादा व्यापक है।
 
भारतीय नागरिकता संशोधन कानून के अंतर्गत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिमों या यूं कहें की भारत उपरोक्त लिखे देशो के अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को नागरिकता प्रदान करेगा। सीएए के तहत इन देशों से आए हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता दिए जाने का प्रावधान शामिल है। यह बात किसी से छुपी नही है की इन तीनों देशों में अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति वहां की सरकार और नागरिको का व्यवहार निंदनीय है। इन देशों में अल्पसंख्यकों डराया-धमकाया जाता, जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाया जाता है। अल्पसंख्यकों का इन देशो में रहना एक श्राप की तरह हैं।
 
गैर मुस्लिम का इन देशों में अपने धर्म के अनुसार पूजा पाठ करना एक चुनौती है। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का उद्देश्य धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत में शरण लेने वाले व्यक्तियों की रक्षा करना है। यह उन्हें अवैध माइग्रेशन की कार्रवाई के खिलाफ एक ढाल प्रदान करता है। सीएए में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया है। पहले के कानून में किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना अनिवार्य था।
 
इस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर 6 साल किया गया है। आसान शब्दों में कहा जाए तो भारत के तीन पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने के नियम को आसान बनाया गया है। सीएए कानून में गैर-मुल्क मुसलमानों को शामिल करने का कोई औचित्य ही नही बनता। उन के पास अपने देश में सभी धार्मिक और कानूनी अधिकार हैं। संसद के दोनों सदनों से सीएए 11 दिसंबर, 2019 में पारित किया गया था। इसके एक दिन बाद राष्ट्रपति की ओर से इसे मंजूरी दे दी गई थी। यह कानून उन लोगों पर लागू होगा जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए थे और जिनके पास भारत की नागरिकता नही है।
 
पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए वहां के अल्पसंख्यकों को इस कानून के जरिए यहां भारत की नागरिकता प्रदान की जाएगी। ऐसी स्थिति में आवेदनकर्ता को साबित करना होगा कि वो कितने दिनों से भारत में रह रहे हैं। उन्हें नागरिकता कानून 1955 की तीसरी सूची की अनिवार्यताओं को भी पूरा करना होगा। सीएए के तहत मुस्लिम समुदाय को छोड़कर तीन मुस्लिम बहुल पड़ोसी मुल्कों से आने वाले बाकी धर्मों के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है। केंद्र सरकार ने सीएए से संबंधित एक वेब पोर्टल तैयार किया है।
 
तीन मुस्लिम बहुल पड़ोसी मुल्कों से आने वाले वहां के अल्पसंख्यकों को इस पोर्टल पर अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा और सरकारी जांच पड़ताल के बाद उन्हें कानून के तहत नागरिकता दी जाएगी। हालांकि यह नया कानून देश के पूर्वोत्तर राज्यों के अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में लागू नहीं किया जाएगा। इनमें संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष दर्जा प्राप्त क्षेत्र भी शामिल हैं। नए कानून के मुताबिक सीएए को उन सभी पूर्वोत्तर राज्यों में लागू नहीं किया जाएगा, जहां देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले लोगों को यात्रा के लिए इनर लाइन परमिट (आईएलपी) की जरूरत होती है।
 
आईएलपी अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम और मणिपुर में लागू हैव अधिकारियों ने नियमों के हवाले से कहा कि जिन जनजातीय क्षेत्रों में संविधान की छठी अनुसूची के तहत स्वायत्त परिषदें बनाई गई हैं उन्हें भी सीएए के दायरे से बाहर रखा गया है। असम, मेघालय और त्रिपुरा में ऐसी स्वायत्त परिषदें हैं। बेशक इस कानून से भारतीय मुसलमानों का कुछ लेना-देना नही हैं परन्तु सरकार द्वारा देश के अलग-अलग हिस्सों सहित दिल्ली में अतिरिक्त फोर्स, स्पेशल और पैरामिलिट्री फोर्स की तैनाती कर देश को यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि यह बहुत बड़ा कानून सरकार ले आई है जबकि देश की आम जनता को इससे कुछ फायदा नही है।
 
बस इसमें मुसलमानों को ना शामिल करना ही मात्र सरकार के समर्थकों को भा रहा है। सरकार चुनावों से पहले हिन्दू बनाम मुस्लिम का माहौल बनाना चाहती है ताकि धार्मिक ध्रुवीकरण आसन हो सके। सीएए के नियमों को लेकर देश के प्रमुख विपक्षी दल भी सवाल खड़े कर रहे हैं।  विपक्ष ने इस कानून को भेदभावपूर्ण बताया। विपक्ष का कहना है यह मुसलमानों को टारगेट करता है, जो देश की आबादी का लगभग 15 फीसदी हैं।
 
हालांकि सरकार बताती है कि चूंकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश मुस्लिम बहुल इस्लामी गणराज्य हैं, इसलिए वहां के मुसलमानों को उत्पीड़ित अल्पसंख्यक नहीं माना जा सकता है। हालांकि सरकार ये आश्वस्त करती है कि अन्य समुदायों के आवेदन की समीक्षा केस-दर-केस के आधार पर की जाएगी। भाजपा अपने तुनीर के सभी तीर इन चुनावों से पहले चलना चाहती। अब देखना यह होगा जनता कहां तक इन कानूनों से खुद को जोड़ पाती है।
 
 
 
 
 

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