आखिर क्यों चर्चा में रहते हैं सुधीर
विज्ञान वर्ग की अनियमित पदोन्नति में भी हो चुकी है कार्यवाई की सिफारिश विभाग ने दबा रखा है मामला बीएसए के साए के रूप में काम करते है सुधीर अम्बेडकर नगर मसि कागद छूयो नही,कलम गह्यो नहि हाथ। प्रसिद्ध कवि कबीर दास की यह पंक्तियां आज के परिवेश में बेसिक शिक्षा विभाग के कुछ शिक्षकों
विज्ञान वर्ग की अनियमित पदोन्नति में भी हो चुकी है कार्यवाई की सिफारिश
विभाग ने दबा रखा है मामला
बीएसए के साए के रूप में काम करते है सुधीर
अम्बेडकर नगर
मसि कागद छूयो नही,कलम गह्यो नहि हाथ। प्रसिद्ध कवि कबीर दास की यह पंक्तियां आज के परिवेश में बेसिक शिक्षा विभाग के कुछ शिक्षकों पर बिलकुल सटीक बैठती हैं। विभाग में कुछ ऐसे शिक्षक हैं जो विभाग के आला हाकिम की गणेश परिक्रमा को ही अपनी सेवा का प्रमुख अंग समझते हैं। इन शिक्षकों ने अपने सेवा काल में शायद ही कभी चाक व डस्टर को हाथ लगाया हो। उन्ही में से एक शिक्षक है सुधीर श्रीवास्तव। विभाग के विज्ञानं शिक्षक व वर्तमान में एआरपी सुधीर को बीएसए का पर्याय कहने में भी कोई संकोच नही होना चाहिए।यह वही सुधीर हैं
जिन्हें विज्ञान वर्ग की पदोंन्नति का लाभ बिना पूरी सेवा के ही प्रदान कर दिया गया था। नियमतः 5 साल की सेवा पूरी होने के बाद ही पदोंन्नति का लाभ दिया जाना था लेकिन तत्कालीन बीएसए व मौजूदा सहायक बेसिक शिक्षा निदेशक रविंद्र सिंह की कृपा के चलते सुधीर को सेवा पूरी होने के छः माह पूर्व ही विज्ञान वर्ग के शिक्षक के रूप में पदोंन्नति का लाभ प्रदान हो गया था। हैरत यह है कि इस प्रकरण की अपर जिलाधिकारी न्यायिक के स्तर से जांच भी हो चुकी है जिसमे इस पदोंन्नति को ही नियम विरुद्ध बताते हुए निरस्त करने की सिफारिश की जा चुकी है लेकिन यह मामला आज भी फाइलों में ही कैद होकर रह गया है।
इस जाँच में सुधीर के विरुद्ध कार्यवाई की भी अनुशंसा की गयी थी लेकिन वह भी आज तक नही हो सका है। सुधीर द्वारा अर्जित की गयी सम्पत्ति की चर्चा भी जोरों पर है । 3 वर्ष पूर्व सुधीर को टाण्डा में एनपीआरसी बना दिया गया था लेकिन अपने पूरे कार्यकाल के दौरान वह शायद ही कभी टाण्डा के बीआरसी केंद्र पर दिखाई पड़े हों। एक बार फिर इनका चयन एआरपी के तौर पर करते हुए टाण्डा में ही तैनात किया गया है। सुधीर वह सख्सियत हैं जो बीएसए के आगे पीछे साये की तरह रहते हैं इससे उनके हर गलत काम पर पर्दा डाल दिया जाता है।
सुधीर को कथित रूप से विधिक सलाहकार के रूप में रखा गया है जो उच्च न्यायालय में वादों की पैरवी करते हैं जबकि इसी काम के लिए विभाग द्वारा विभागीय अधिवक्ता को भी अच्छी खासी फीस अदा की जाती है। विभाग पर मुकदमो का बोझ लादने के लिए भी सुधीर को ही जिम्मेदार माना जाता है। अकबरपुर शिक्षा क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय सीहमयी का निर्माण भी सुधीर की लचर पैरवी के कारण अधर में पड़ा हुआ था
जिससे आज भी इस गाँव में एक अदद स्कूल नही है जबकि यंहा का विद्यालय एक किराए के मकान में संचालित किया जा रहा है। एक शिक्षिका द्वारा लगाए गए आरोप के बाद चर्चा में आये सुधीर पर कोई कार्यवाई होगी,इसकी संभावना न के बराबर है लेकिन विभाग के कोढ़ रूपी इस व्यक्ति से शिक्षा महकमे को कब मुक्ति मिल सकेगी, इस पर सबकी नजर लगी हुई है।
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