संजीव-नी। 

संजीव-नी। 

कविता,
 
जरा आंखों से मुस्कुरा देना तुम। 
 
एहसास दिल में न दबा देना तुम,
होठों से जरा सा मुस्कुरा देना तुमl 
 
ये  दिल की लगी है न घबराना,
जरा आंखों से मुस्कुरा देना तुम। 
 
नया रूप है तुम्हारे यौवन का,
एहसासो से महक जाना तुम। 
 
जरा आओ सूरज की रोशनी में,
रातों में चांदनी सा बन जाना तुम, 
 
रातों के टिमटिमाते जुगनू हैं हम,
आंखों का सितारा बन जाना तुम। 
 
हमसे छुपने की अदा बड़ी प्यारी,
सामने तो पलकें झुका देना तुम। 
 
दिलों के एहसास खास हैं हमारे,
सामने सब के मासूम बन जाना तुम। 
 
बड़ी सौगात है दीदार ये तेरा संजीव,
कली से अब गुलाब बन जाना तुम। 
 
संजीव ठाकुर 

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