धर्म की “कट्टरता” के आगे “देशहित” गौण क्यों ।

धर्म की “कट्टरता” के आगे “देशहित” गौण क्यों ।

धर्म की “कट्टरता” के आगे “देशहित” गौण क्यों । संतोष तिवारी( रिपोर्टर ) सरकार कोरोना को लेकर जिस तरह संजीदा है उससे चिंता साफ झलक रही है। और देश का हर नागरिक इस महामारी से बचने के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है। और कोरोना का संक्रमण देश में न फैले इसी को ध्यान

धर्म की “कट्टरता” के आगे “देशहित” गौण क्यों ।

संतोष तिवारी( रिपोर्टर )

सरकार कोरोना को लेकर जिस तरह संजीदा है उससे चिंता साफ झलक रही है। और देश का हर नागरिक इस महामारी से बचने के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है। और कोरोना का संक्रमण देश में न फैले इसी को ध्यान में रखकर सरकार ने जनता कर्फ्यू और लाॅक डाऊन का कडा फैसला लिया जो कही न कही देश के लिए आर्थिक नुकसान का प्रमुख कारण होगा। लेकिन सरकार ने सभी घाटा और फायदा को नजरअंदाज करके केवल लोगों को कोरोना से बचाये रखना ही पहली प्राथमिकता में रखना पडा। और इसे लागू कराने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें अपने अपने स्तर से बेहतर कार्य कर रही है। और देश में कोरोना के संक्रमण को रोकने में प्रयासरत है।
लेकिन इसी बीच देश में ऐसी भी घटनाएं सामने आई जो पुरे देश को चिंता में डाल दिया और लोग इसको लेकर परेशान हो गये है। यह चिंता है दिल्ली के निजामुद्दीन में आयोजित तबलीगी जमात मरकज जिसमें देश के अलावा विदेशों से काफी संख्या में लोग सम्मिलित हुए। और इस मरकज में आये लोगों में कई लोगो को कोरोना पाजिटिव पाया गया और कई की मौते भी हो गई है। लेकिन इस धार्मिक आयोजन के आयोजक इसमे अपनी लापरवाही को मानने को तैयार नही है। और पुरे देश को कोरोना के संक्रमण से भयभीत किये हुए है। अब यहां सवाल पैदा होता है कि आखिर आयोजकों को जब पता था कि देश में कोरोना का संक्रमण फैल रहा है तो इस तरह का धार्मिक आयोजन करने का क्या औचित्य था? या आयोजक जानबूझकर लोगों को इकट्ठा रखे रहे जिससे लोगों में संक्रमण फैल जाये और इसका प्रभाव अन्य राज्यों से आये सदस्यों पर पडे? दिल्ली सरकार ने 13 मार्च को ही घोषणा कर दी थी 50 से अधिक लोग एक जगह न रहे तो आयोजको ने सैकडों लोगो को मरकज में क्यों रखा? आखिर सरकार को इस जमात को हटाने के लिए क्यों नही कहा? भारत के साथ साथ इस जमात में विदेश से भी लोग आये रहे। आखिर इस धार्मिक समारोह में क्यों बुलाया या क्यों आने दिया क्योकि देश में पिछले दो माह से कोरोना को लेकर चर्चा है? इस तरह के न जाने कितने सवाल है जो तबलीगी जमात के आयोजको को देना जरूरी है। विश्व भर से मुस्लिम धर्म के प्रचार प्रसार के लिए लोग इस जमात में शामिल होते है और यहां पर दस हजार से अधिक लोगों के रहने की क्षमता है। धार्मिक समारोह के आयोजक या मुखिया ने कोरोना वायरस के चेतावनी के बावजूद भी धर्म के प्रचार के नाम पर सैकडों लोगों को मौत के मुंह में ले जाने का यह कुकृत्य कितना सही है। क्या धर्म की कट्टरता के आगे देशहित तुच्छ हो गया है जो लोग अपने धर्म के आड में सब कुछ करने पर उतारू रहते है। आखिर केवल ‘एक’ धर्म’ के लोग ही क्यों अक्सर सरकार की बातों और आदेश को मानने में ‘नौटंकी’ करता है? क्या सरकार के आदेश की अवहेलना करके विश्व समुदाय में अपने को मजबूत सिद्ध करना चाहता है? देश को कोरोना की संक्रमण में फंसाने के लिए आखिर यह कौन सी चाल है? सरकार इस तरह के कुकृत्यों को बढावा देने वालों पर कार्यवाही करने पर रोना रोकर विश्व समुदाय का ध्यान आकृष्ट कराना है? जब पूरा देश कोरोना जैसे महामारी से निपटने के लिए एकजुट है तो कुछ लोग धर्म के नाम अपनी दुकान चलाने से बाज नही आ रहे है। आखिर इस तरह की मानसिकता वालों को क्या कहा जाये कि आये दिन सरकार द्वारा लिये गये फैसले के खिलाफ ही अपना कार्य करते है। सरकार को चाहिए कि इस तरह के कुकृत्यों में लिप्त पाये जाने वालों के खिलाफ कार्यवाही हो। और धर्म का कानून पूर्णतः समाप्त करके देश का कानून को सर्वोपरि घोषित किया जाये। मानते है कि देश में धार्मिक स्वतन्त्रता है लेकिन देश को दांव पर लगाकर धर्मान्धता और कट्टरता का कोई स्थान नही होना चाहिए। और जो लोग धर्म का रोना रोकर देश के कानून को तोडने की हिम्मत करे उनके खिलाफ त्वरित कार्यवाही हो। धर्म के आस्था का विषय है और किसी भी किमत पर धर्म के नाम पर देश को खतरे में नही डाला जाना चाहिए। जिनको देशहित से ज्यादा अपने धर्म की कट्टरता जरूरी है वे चाहे तो अपना देश बदल लें जो उनके धार्मिक उन्नति में सहायक साबित हो। धर्म के नाम पर बरगलाकर देशहित की चिन्ता को नजरअंदाज करना न्यायोचित नही है। जब देश सुरक्षित रहेगा तभी हमारा धर्म भी सुरक्षित रहेगा। इसीलिए धर्म के नाम पर देश को कोई तकलीफ हो यह सही नही है। और जो लोग केवल यह मंशा पालकर अपने कट्टरता को मजबूत कर रहे है कि सरकार या कानून क्या करेगा मै तो अपने धर्म को ही देशहित से भी आगे रखूंगा तो इस तरह की मानसिकता वालों की भूल है। क्योकि यदि कानून किसी को धार्मिक स्वतन्त्रता की आजादी देता है तो सरकारों को भी बहुत तरह की शक्तियां प्रदान है जो किसी को मनमानी करने पर काफी सहायक हो सकती है। दिल्ली में आयोजित तबलीगी जमात मरकज के आयोजक और सम्मिलित लोगों को अपनी गलतियों से मुंह नही मोड़ना चाहिए। बल्कि अपनी गलती को मानते हुए भविष्य में इस तरह की गलती न करने का वादा करना चाहिए। क्योकि देश का हित किसी भी एक व्यक्ति या एक धर्म से काफी जरूरी है। इसीलिए देश को धार्मिक कट्टरता या धर्मान्धता के नाम पर आग में झोंकना है। और इसमें सभी धर्म और समुदाय के लोगों की सहभागिता और सहयोग से ही संभव है। सभी धर्मगुरूओ को भी चाहिए कि देशहित के आगे कभी भी अपने धर्म को न आने दें और न ही ऐसा करने वालों को प्रोत्साहित करें। क्योकि जब तक देश का हर नागरिक देशहित को सोचकर कार्य नही करेगा तब तक देश को समस्याओं से दो चार होना ही पडेगा। इसलिए सभी के लिए देशहित ही हो पहली प्राथमिकता।

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