चावल माफिया ने अचल ताल पर मंदिर और मस्जिद को भी बनाया कालाबाजारी का गोदाम

चावल माफिया ने अचल ताल पर मंदिर और मस्जिद को भी बनाया कालाबाजारी का गोदाम

राशन कार्ड से चावल व गेहूं लाकर प्रतिमाह 500 से लेकर 1000 रुपये तक का मुनाफा धर्मेन्द्र राघव अलीगढ़। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भ्रष्टाचार को दूर करने की सरकारी कवायदें दम तोड़ रहीं हैं। खुलेआम सरकारी खाद्यान्न की कालाबाजारी हो रही है और सरकारी तंत्र चुप्पी साधे हुआ है। सरकारी चावल की खरीद-बिक्री पूरे जनपद

राशन कार्ड से चावल व गेहूं लाकर प्रतिमाह 500 से लेकर 1000 रुपये तक का मुनाफा

धर्मेन्द्र राघव


अलीगढ़। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भ्रष्टाचार को दूर करने की सरकारी कवायदें दम तोड़ रहीं हैं। खुलेआम सरकारी खाद्यान्न की कालाबाजारी हो रही है और सरकारी तंत्र चुप्पी साधे हुआ है।


सरकारी चावल की खरीद-बिक्री पूरे जनपद में बाजार के छोटे-बड़े व्यापारी करते हैं। लेकिन खुदरा बाजार में इतने बड़े पैमाने पर सरकारी चावल और गेहूं की खुलेआम हो रही कालाबाजारी की जानकारी के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।

वहीं अचल ताल स्थित विष्णु आटा चक्की पर खुलेआम चावल की खरीददारी की जा रही है और इतना ही नहीं गेंहू के आटे में भी चावल पीसकर लोगों को चूना लगाया जा रहा है। मजे की बात तो यह है कि चावल माफिया विष्णु ने हनुमान मंदिर और मस्जिद के अंदर अपना चावल एकत्रित करने का अड्डा बना रखा है।


इस संबंध में फड़ी व छोटे व्यवसायियों का कहना है कि वे लोग ग्रामीणों और राशन डीलरों से सरकारी चावल 13- 14 रुपये के हिसाब से खरीदते हैं। इसके अलावा गेहूं 14 रुपये की दर से खरीदा जाता है।

गरीब के चावल पर दलालों की नजर


खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत गरीब परिवारों को मिलने वाला चावल राशन की दुकानों से दिया जा रहा है परंतु इस चावल पर दलालों की नजर पड़ गई है इन दिनों गली गली में आढ़तियों के दलाल ठेलों के माध्यम से इस चावल को खरीद रहे हैं और मंडियों के माध्यम से बिहार व पश्चिम बंगाल को भेज रहे हैं।


योजना में जिला पूर्ति विभाग द्वारा इस समय दो तरीके से राशन का वितरण किया जा रहा है। पात्र व्यक्तियों को एक यूनिट पर दो किलो चावल व अंत्योदय योजना के तहत 15 किलो चावल दिया जा रहा है। राशन की दुकानों पर यह चावल कुटा हुआ आता है जिसे अरबा बोला जाता है।

मोटा चावल होने के कारण सामान्यतरू लोग इसे पसंद नहीं करते हैं। चावल तीन रुपये किलो के हिसाब से दिया जाता है जबकि बिहार, बंगाल व असोम को भेजे जाने वाले चावल की दर 25 से 30 रुपये प्रति किलो बतायी गयी है। इन राज्यों में इस चावल की मांग अधिक होने पर मंडी के दलालों ने अब नया तरीका ईजाद किया है।


सरकारी चावल को गली-गली में ठेले वालों के माध्यम से इकट्ठा कराया जा रहा है। यह चावल लोग तीन रुपये प्रति किलो की दर से कंट्रोल से खरीद कर बाजार में 12 से 14 रुपया प्रतिकिलो के भाव से बेंच रहे हैं। एक घर में प्रतिमाह लगभग 15 किलो चावल पहुंच रहा है। इस पर लोग सीधा-सीध मुनाफा कमा रहे हैं।

ठेले वाले इस चावल को मंडियों में 18-20 रुपये तक में बेच रहे हैं। महानगर के पला साहिबाबाद,जीवनगढ़,डोरी नगर,पला फाटक, सहित अन्य इलाकों में हर महीने की 10 से 20 तारीख तक ठेले वाले सक्रिय हो जाते हैं और गरीबों का राशन बटोर कर मंडियों में पहुंचा देते हैं।

कालाबजारी में नहीं लगी लगाम


प्रदेश में खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू हुए लगभग सात माह हो गये परंतु राशन की कालाबाजारी रोकने में प्रशासन नाकाम रहा है। हैरानी की बात यह है कि गली गली में इस तरीके से सरकारी राशन बिक रहा है। जनपद में लगभग प्रतिमाह राशन डीलर खाद्यान्न उठाते हैं। यह खाद्यान्न प्रतिमाह 5 से 12 तारीख तक कार्ड धारकों को वितरित किया जाता है।

राशन कार्डों पर उठे सवाल


नये खाद्य सुरक्षा अधिनियम में बनाये गये राशन कार्डों पर सवाल खड़े हो गये हैं। बताया गया है कि ऐसे राशन कार्ड बना दिये गये जिन्हें इस योजना की कोई जरूरत नहीं थी। वह लोग इस योजना के अंतर्गत आने वाले गेहूं व चावल का प्रयोग घर में नहीं करते हैं। परंतु राशन कार्ड से चावल व गेहूं लाकर वे प्रतिमाह 500 से लेकर 1000 रुपये तक का मुनाफा जरूर कमा रहे हैं। ऐसा इस योजना में बेहद सस्ते दरों पर मिलने वाले राशन को लेकर हो रहा है।

जानकारी मिलने पर कार्रवाई होगी


जिला पूर्ति अधिकारी चमन शर्मा का कहना है कि योजना के तहत चावल जरूरतमंद लोगों को दिया जा रहा है। अगर कोई इससे मुनाफा कमा रहा है तो यह नियमतःगलत है ऐसे लोगों के राशन कार्ड निरस्त कर दिये जायेंगे। राशन की बिक्री बाजार में कतई नहीं होनी चाहिए।

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