बेबसी, मुफसिली में सेकडौ किलोमीटर चल आ रहे मजदूर

बेबसी, मुफसिली में सेकडौ किलोमीटर चल आ रहे मजदूर

ट्रकों व अन्य वाहनों में भूसे की तरह आ रहे मजबूर मजदूर तालबेहट दिल्ली, जम्मू, गाजियाबाद, मुंबई, इन्दौर, भोपाल समेत देश के विभिन्न उधोग शहरों से ढेड माह बीतने के बाद भी मजदूरों के आने का सिलसिला थमा नहीं है। जेठ की आग उगलती धूप, तपती सडक़ों पर भूख प्यास से ब्याकुल सेकडौ मजदूर


ट्रकों व अन्य वाहनों में भूसे की तरह आ रहे मजबूर मजदूर  

तालबेहट

दिल्ली, जम्मू, गाजियाबाद, मुंबई, इन्दौर, भोपाल समेत देश के विभिन्न उधोग शहरों से ढेड माह बीतने के बाद भी मजदूरों के आने का सिलसिला थमा नहीं है। जेठ की आग उगलती धूप, तपती सडक़ों पर भूख प्यास से ब्याकुल सेकडौ मजदूर प्रतिदिन राष्ट्रीय राजमार्ग पर पैदल, ट्रक व अन्य वाहनों से किसी तरह अपने गांव वापिसी आ रहे है।
झांसी ललितपुर राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पर पूरे दिन ट्रकों सहित विभिन्न मालवाहक वाहनों में भूसे की तरह बैठकर जिदंगी की आस में मजबूर मजदूर के परिवार घरों को लौट रहे है। बूढे, बुर्जग, गर्भवती महिलाओं से लेकर मासूम बच्चे भी अपने परिजनों के साथ जिन्दगी की उतर चुकी पटरी को बसाने की आस में गांव वापिसी कर रहे।

आग बरसती तपती गर्मी में मजूदरों के पैदल चलते, ट्रकों में बैठे जत्थे लगातार दिख रहे है। इन घर वापिसी कर रहे मजूदरों के लिए कई किलोमीटर तक पानी तक नसीब नही हो रहा। तेज गर्मी मेें जहां प्यास से ब्याकुल शरीर बेहाल हो रहा वहीं सेकडौ किलीमीटर के सफर में पांव के जूते व चप्पल टूट चुके है और सडक़ की तपन से बचते हुए नंगे पांव ही सडक़ किनारे की मिटटी से निकलना पड़ रहा है।

एक बार भोजन पानी के बाद कई किलोमीटर तक उन्हे पानी भी नसीब नही हो रहा। पैरों की सूजन और छाले मजदूर की व्यथा की दर्दभरी कहानी बंया कर रहे है। पैदल चलते और वाहनों में बैठे मजदूरों के लिए कहीं कहीं समाजसेवी देवदूत बन कर उन्हे भोजन, पानी उपलब्ध करा रहे है।

सीमा पर चैकिंग..बेबस चेहरे
जिले की सीमा झरर घाट पर चैकिंग के दौरान खड़े दर्जनों ट्रक, वाहनों में बैठे मजदूरों के चेहरे भूख प्यास से बेहाल दिख रहे है। रास्ते में उन्हे मिले विस्कुट व बे्रेड तथा पूडी के पैकेट ही रात्रि के भोजन का सहारा है। वाहनों में जगह कम और मजदूर ज्यादा बैठे है जिससे आग बरसाती गर्मी में उन्हे बैचेनी की शिकायत हो रही है मगर आखिर क्या करें..
 
मजदूरों की व्यथा…
दिल्ली से ट्रक में बैठकर ललितपुर तक पहुंचने बाले महरौनी के निवासी कमलेश कुशवाहा बताते है कि लॉक डाउन के बाद इस उम्मीद में रूके रहे कि शायद लॉक डाउन के बाद उन्हे काम मिल जाऐगा। मगर लॉक डाउन बढता गया और उनकी जमापूंजी खत्म हो गई। भूखों मरने से अच्छा था कि गांव वापिसी पहुंच जाए। दिल्ली से झांसी का किराया 2000 रूपए देकर आए है।
तालबेहट के ग्राम ककड़ारी लौटे मजदूरों ने बताया कि कानपुर में काम करते थे। एक महीने से भी ज्यादा समय किराए के मकान में जमा पूंजी खर्च हो गई थी। जो बची थी उसमें तीन बच्चों के साथ गांव लौटना था।
ग्राम कड़ेसराकलां, पवा, शाहपुर में इन्दौर से लौटे मजदूरों, कामगारों ने बताया कि वह फेक्ट्री में काम बंद हो गया। आधी अधूरी बेतन देकर भगा दिया गया। कई दिनों तक लॉक डाउन खुलने का इंतजार किया। इसके बाद दस दिनों का रूक रूक सफर करने के बाद गांव वापिस पहुंच गए। अब जिन्दगी
ग्राम पवा निवासी सनमत जैन भोपाल में प्राइवेट कंपनी में नौकरी से करते बाद एक माह तक इंतजार करने के बाद किसी तरह अपने गांव लौटे। उनका कहना है कि अब यहीं अपना धंधा पानी जमा कर दे।

सरकार की मनाही के वावजूद ट्रकों में भर कर आ रहे मजदूर
प्रदेश की योगी सरकार ने सडक़ों पर होती मजदूरों की मौत के बाद सख्त कदम बढाते हुए जिलाधिकारियेां व पुलिस कप्तानों को निर्देश दिए थे कि ट्रकों व अन्य वाहनों में मजदूर न जा पाए। उन्हें रोके और उनके भोजन पानी की व्यवस्था कर उन्हे घर पहुंचाए। मगर सरकार के निर्देश के दूसरे दिन भी राजमार्ग में ट्रकों व अन्य वाहनों में भूसे की तरह भरकर मजदूर अपने घरों को लौटते रहे। झरर सीमा में दिनभर में करीब सौ वाहन मजदूरों को भर कर निकले।


व्यवस्था के नाम पर सिर्फ पानी के टैंकर
मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद जिले की सीमा झररघाट पर रश्म अदायगी के लिए पानी के टैंकर रखबा दिए गए है। बाकी भोजन केे कोई इंतजाम नही है। पूरे दिन घंटों वाहनों की चैकिंग में रूके वाहनों के लिए इस गर्मी में ग्राम पंचायतों से पुलिस ने रखबाए टेंकर ही जीवनदायक बने है।
इस संदर्भ में उपजिलाधिकारी मुहम्मद कमर का कहना है कि झरर सीमा पर व्यवस्थाए अभी नही हुई है। अमरझरा सीमा पर भोजन, पानी से लेकर वाहनों की व्यवस्थाए  है।

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