अदभुत,अकल्पनीय,देवगवां (द्रोणाचार्य) पड़ाव की पौराणिक मान्यता

अदभुत,अकल्पनीय,देवगवां (द्रोणाचार्य) पड़ाव की पौराणिक मान्यता

गोंदलामऊ (सीतापुर) उत्तर भारत का ख्यातिलब्ध चौरासी कोसी परिक्रमा का छठा पड़ाव स्थल देवगवां रविवार को ब्रह्म मुहूर्त की बेला में अदभुत और अकल्पनीय नजर आया। मोक्ष की कामना को लेकर रामादल में शामिल सभी साधु-संतों व गृहस्थों में अपने अगले पड़ाव पर शीघ्र पहुंचने की व्यग्रता नजर आई।सुबह पौ फटने से पहले ही परिक्रमार्थियों

 गोंदलामऊ (सीतापुर) उत्तर भारत का ख्यातिलब्ध चौरासी कोसी परिक्रमा का छठा पड़ाव स्थल देवगवां रविवार को ब्रह्म मुहूर्त की बेला में अदभुत और अकल्पनीय नजर आया। मोक्ष की कामना को लेकर रामादल में शामिल सभी साधु-संतों व गृहस्थों में अपने अगले पड़ाव पर शीघ्र पहुंचने की व्यग्रता नजर आई।सुबह पौ फटने से पहले ही परिक्रमार्थियों ने परमात्मा का ध्यान कर अपने पहले पड़ाव के लिए कूच कर गए। एक साथ एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं के जमावड़े से पूरी पड़ाव स्थल आभा मंडित हो गया।परिक्रमा मार्ग पर संतों-महंतों द्वारा सस्वर उच्चारित किए गए भजन, प्रवचन और मंत्रों की सुर लहरियों से उपजे अछ्वुत वातावरण में सभी परिक्रमार्थियों ने जी भर कर डुबकियां लगाई। साधु-संतों और गृहस्थों के साथ चल रहे बच्चे व नंगे पैर चलने वाले परिक्रमार्थियों की आस्था ने हर किसी के हृदय पर एक अमिट छाप छोड़ी। यह परिक्रमा अपने पूरे चरम पर है। जय श्रीराम, हर-हर गंगे और बम-बम भोले के जयकारों के बीच रविवार की सुबह परिक्रमार्थी देवगवां पड़ाव से अपने अगले पड़ाव के लिए कूच किया।

आधुनिकता के युग मे अधिकतर परिक्रमार्थी दोहपिया व चौपहिया वाहनों से कर रहे परिक्रमा
विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ आधुनिकता ने भी जब अपने पंख पसारे तो भौतिकता ने भी अंगड़ाई ली।जिसे गृहस्थ आश्रम में रह रहे आम व्यक्ति के साथ साधु-संतों ने भी महसूस किया। भौतिकता का असर इस परिक्रमा मेले में भी देखने को मिला।भारी संख्या में संत महात्मा चौपहिया वाहन पर सवार होकर परिक्रमा करते देखे गए।आस्था, विश्वास और मोक्ष प्राप्ति की कामना के चलते इस चौरासी कोसी परिक्रमा में श्रद्धा और आस्था अपने संपूर्ण प्रभाव से वेगवान है, शायद यही वह प्रमुख वजह है कि श्रद्धालुओं को न तो प्रशासनिक अव्यवस्थाओं की फिक्र है और न ही सुबह-शाम चलने वाली सर्द हवाओं की परवाह है।यदि कोई चिन्ता है तो ईश-स्तुति करने और अपने देव को पाने की, जिसने सम्पूर्ण क्षेत्र को जयकारों के गगनभेदी उद्घोष से राममय कर दिया है।परिक्रमा में शामिल देश के कोने-कोने से आए पीठाधीश्वरों, मठाधीश्वरों, मंहतों और साधु-संतों के पंडालों में धार्मिक लोगों की उमड़ी भीड़ से समूचा पड़ाव स्थल भक्तिमय हो गया है। पड़ाव स्थल पर श्रद्धालुओं द्वारा भजनों का सस्वर पाठ और रह-रहकर उठने वाले गगनभेदी जयघोष से संपूर्ण वातावरण पावन हो उठता है। परिक्रमा पड़ाव स्थल पर गृहपयोगी वस्तुओं और खेल-खिलौने की दुकानों पर दिन भर लोगों की भीड़ एकत्र रहती है। मेले में मिश्रिख, बर्मी, रामकोट आदि क्षेत्रों के दुकानदारों ने अपनी दुकानें लगा रखी हैं। सामाजिक समरसता का ऐसा संगम शायद ही दुनिया के किसी कोने में देखने को मिले।
देवगवाँ पड़ाव की पौराणिक मान्यता

इस पड़ाव को द्रोणाचार्य के नाम से भी जाना जाता है।देवगवां पड़ाव पर स्थित ब्रह्म स्थान व पौराणिक कूप का पूजन किया। किसी जमाने में यह देवताओं का गांव था। पड़ाव स्थल पर मौजूद साधु व संत लोगों को इस स्थान का महत्व बता रहे थे। देर शाम तक इस पड़ाव स्थल पर श्रद्धालुओं का आना जारी था।
कैसे होगा बेड़ा पार,सिर्फ एक स्टीमर और दो नावे तैयार
गोमती नदी के द्रोणाचार्य घाट पर विगत वर्ष हुई घटना से प्रशासन ने कोई सबक नही लिया।बताते चले पिछले वर्ष द्रोणाचार्य घाट पर नाव पलट जाने से कई साधू सन्त नदी में डूबने से बच गए थे।अबकी बार प्रशासन द्वारा गोमती नदी के द्रोणाचार्य घाट पर दो नावों की ब्यवस्था की गई।लाखो की संख्या में परिक्रमार्थीयो का कारवां आज देवगवाँ में रात्रि विश्राम करेगा।घाट के महन्त ने बताया कि हम लोगो ने इस घाट पर लकड़ी के पुल बनाया था लेकिन क्षमता से अधिक लोगो के निकलने से पुल टूट गया था।अगर  पुल बन जाये तो परिक्रमार्थियों को आसानी हो जाएगी।परिक्रमार्थी गोमती नदी के द्रोणाचार्य घाट के समीप बूढ़नपुर गांव के आसपास श्रंगी ऋषि आश्रम, अन्नापूर्णा माता है। रामनगर में भागीरथ कुंड है। इसी कुंड पर भागीरथ व मगरमच्छ पर सवार मां गंगा की मूर्ति है। देवगवां गांव में हनुमान मंदिर, गुलवरी बाबा, माधव बल बाबा, काशीनाथ बाबा, प्राचीन कच्चा चक्रतीर्थ व देव प्रयाग कुंड के दर्शन करते है
ये हैं दर्शनीय स्थल
देवगवां से मड़रूवा पड़ाव के बीच कई दर्शनीय स्थल हैं। वाल्मीकि जी के कूप पर लोटा डोर के दान की मान्यता है। इसे मांडव ऋषि का स्थान भी माना जाता है। यहीं पर चंद्रावल में चंद्र-चंदनी और चंद्रावल देवी का भव्य मंदिर है। पास में मड़रूवा गांव में परिक्रमा रात्रि विश्राम करता है। मंडरीक तालाब, राम जानकी मंदिर, राम तालाब, लक्कड़ बाबा मंदिर, ठाकुर राम-जानकी मंदिर स्थित है। श्रद्धालु रामताल तीर्थ में जल से आचमन करते हैं। श्रद्धालु गुड़ कटोरा दान करते है।
विशेष आकर्षण का केंद्र रहा सुंदर रथ
विश्व प्रसिद्ध धार्मिक नगरी नैमिषारण्य से प्रारम्भ हुई 84 कोसीय परिक्रमा डंके के आवाहन पर अगले दिन भोर होते ही अगले पड़ाव स्थल की ओर राम नाम का उदघोष करते हुए कूच करते है।इस परिक्रमा में एक रथ शामिल है जो लोगो के आकर्षण का केंद्र बन हुआ है।इस रथ को एसडीएम मिश्रिख़ राजीव पांडेय ने पहल करते हुए परिक्रमा में शामिल कराया था। उन्होंने बताया कि अश्वमेघ यज्ञ की तर्ज पर इस रथ को शामिल किया गया है. यह आकर्षक रथ परिक्रमा सम्पन्न होने तक मौजूद रहेगा. इस रथ की सुंदरता देखते ही बनती है. परिक्रमार्थी इस रथ को देखकर काफी उत्साहित है।इस रथ पर पहला आश्रम के महंत व परिक्रमा समिति के अध्यक्ष सवार है।
आज मडरूवा ठहरेगा रामादल
श्रद्धालु परिक्रमा पड़ाव देवगवाँ से मड़रूवा पड़ाव के बीच अनेक दर्शनीय स्थल पड़ते है. जैसे शिवगंगा तीर्थ, प्रमोदव आदि स्थानों को होते हुए वाल्मीकि जी के कूप पर आ जाते है. यहाँ लोटा डोर का दान दिया जाता है. इसे माण्डम मुनि का स्थान भी माना जाता है. यहीं पर चन्द्रचंदनी और चन्द्रावलदेवी का भव्य मंदिर है. यहीं पास में मड़रूवा ग्राम में परिक्रमा रात्रि विश्राम करता है

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