भदोही में सूदखोरों के 'तांडव' से त्रस्त गरीब, प्रशासन बेखबर

भदोही में सूदखोरों के 'तांडव' से त्रस्त गरीब, प्रशासन बेखबर

सूदखोर गरीबों से 5% मासिक ब्याज की दर से करते है वसूली


स्वतंत्र प्रभात-

सरकार भले ही भ्रष्टाचार को समाप्त करने की बात करती है लेकिन स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार का खुला खेल देखने को मिलता है। जहां विभिन्न विभागों में बिना सुविधा  शुल्क लिए कोई काम नही होता है वही इससे भी ज्यादा आतंक जनपद में सूदखोरों का है। जहां सूदखोरों के तांडव से एक गरीब और लाचार व्यक्ति विवशता के वजह से मनमाना ब्याज देने पर विवश है। लेकिन इस कुकृत्य पर प्रशासन के लोग मौन साधे हुए है ऐसा लगता है कि जैसे प्रशासन के लोगों को सूदखोरों के बारे में पता ही नही है। और पुलिस और प्रशासन के लोग इन सूदखोरों के कार्यों से बेखबर है। सूदखोर एक गरीब और लाचार आदमी के गरीबी और लाचारी का खूब फायदा उठाता है। और जनपद में इस समय सूदखोर 5% मासिक के दर से ब्याज वसूलते है। कुछ मामले में सूदखोर तो आभूषण और खेत को गिरवी रखने के बाद भी गरीब और लाचार व्यक्ति से मनमानी ब्याज वसूलते है।

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सूदखोरों का आतंक इतना है कि मूलधन के अलावा ब्याज पर ज्यादा ध्यान देते है। यदि गरीब एक वर्ष तक पैसा न चुका सका तो एक वर्ष में मूलधन का 60% ब्याज ही दे देता है। जनपद में यदि सूदखोरों की बात की जाये तो एक सामान्यतः हर गांव में एक दो सूदखोर सक्रिय है और अपने अवैध ढंग के कार्य से गरीबों से ब्याज के रूप में मनमानी वसूली करते है। जो भी सूदखोर ब्याज पर रूपया देते है और मनमानी वसूली करते है। उनके बारे में स्थानीय पुलिस प्रशासन के लोग अनभिज्ञ बने है। जबकि असलियत यही है कि ब्याज पर पैसा उधार देने वाला कही न कही सम्पन्न या पूंजीपति ही होता है। किसी के जरूरत के समय पैसा दे देना सही कार्य है लेकिन उसके मजबूरी का फायदा उठाकर मनमानी ब्याज के रूप में वसूली करना कितना उचित है? आखिर इस तरह के मनमानी वाले कार्यों पर स्थानीय पुलिस प्रशासन क्यों ध्यान नही देता है। हो सकता है कि जनपद में कुछ ऐसे लोग हो जो ब्याज पर जरूरत मंचों को पैसा देने के लिए पंजीकृत हों लेकिन इसके अलावा लगभग सभी गांवों

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और कस्बों में सूदखोरों का आतंक देखने को मिलता है। लेकिन एक गरीब व मजबूर व्यक्ति इसलिए नही विरोध करता है कि वह जानता है कि जो आज ब्याज पर ही सही उससे पैसा उधार ले पा रहे हूं शिकायत करने पर भविष्य में उससे पैसा नही ले पाऊंगा। अब यहां सवाल उठता है कि आखिर सदकार के तरफ से संचालित विभिन्न योजनाओं और बैंक के तरफ से विभिन्न ऋण सुविधाओं के बावजूद भी लोग सूदखोरों के चंगुल में क्यों फंस जाते है? इसकी वजह भी जाकर भ्रष्टाचार पर ही समाप्त होती है। क्योकि सरकार भले ही लोगों को विभिन्न तरह की योजनाओं के अन्तर्गत ऋण उपलब्ध कराती है जो कही न कही सूदखोरों के ब्याज दर से बहुत कम दर पर मिलता है लेकिन फिर भी एक गरीब व सामान्य आदमी को बैंक से ऋण लेना लोहे के चना चबाने के बराबर है। इसकी मुख्य वजह यही है

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कि बैंक के तरफ से इतनी कागजी कार्यवाही और फिर परोक्ष रूप से सुविधा शुल्क की वजह से ज्यादतर गरीब आदमी को सरकार के तरफ से ऋण की योजना का लाभ नही मिल पाता जबकि सूदखोर तुरंत ही मोटी रकम के लालच में एक गरीब को ब्याज पर पैसे देने पर राजी हो जाते है। और फिर गरीब ब्याज चुकाते चुकाते खून के आंसू रोने लगता है लेकिन स्थानीय प्रशासन इससे बेखबर है। प्रशासन को चाहिए कि जनपद में सूदखोरों के खिलाफ कार्यवाही करें जिससे सूदखोर के आतंक से गरीबों को बचाया जा सके। जबतक स्थानीय प्रशासन सूदखोरों को चिन्हित करके कार्यवाही नही करेगा तब तक सूदखोर गरीबों के खून को ब्याज के रूप में चुसते रहेंगे। इसलिए जनपद में सूदखोरों के खिलाफ सख्त कार्यवाही जरूरी है।

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