नारी सिक्षा और साक्षरता से प्रस्फुटित भविष्य के नए आयाम ,स्त्रियों को मुक्त आकाश में उड़ने दीजिये

नारी सिक्षा और साक्षरता से प्रस्फुटित भविष्य के नए आयाम ,स्त्रियों को मुक्त आकाश में उड़ने दीजिये

भारत एक विशाल लोकतांत्रिक राष्ट्र है जिसकी जनसंख्या में स्त्रियों और बच्चों की संख्या भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी पुरुषों की, किंतु सामाजिक ढांचे में स्त्री-शोषण, धार्मिक कट्टरता, रूढ़िवादिता, असमानताओं और अवसरों की कमी ने आज भी महिलाओं को उनके मूल अधिकारों विशेषतः शिक्षा और सुरक्षा से वंचित कर रखा है, यही कारण है कि आधुनिक भारत में स्त्री शिक्षा और साक्षरता को केवल सामाजिक आवश्यकता न मानकर सामाजिक क्रांति का आधार माना जाने लगा है, क्योंकि स्त्री केवल परिवार की संरक्षिका नहीं बल्कि भविष्य की जननी, समाज की प्रथम मार्गदर्शक और संस्कारों की आधारशिला है, और जब स्त्री शिक्षित होती है तो वह अपने परिवार और बच्चों को अच्छे-बुरे, सुरक्षित-असुरक्षित, सामाजिक-असामाजिक के अंतर को समझाती है।

यही चेतना आगे चलकर एक सामाजिक परिवर्तन और व्यापक आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार करती है, आज भारत में कोरोना संक्रमण से लेकर स्वास्थ्य, आर्थिक विवेक, स्वच्छता, तकनीकी विकास, मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों तक हर मुद्दे पर शिक्षा और साक्षरता की महती आवश्यकता महसूस की जा रही है, जिस प्रकार जल के बिना जीवन असंभव है उसी प्रकार शिक्षा के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा और निरर्थक है, किंतु यहाँ आवश्यक है कि शिक्षा और साक्षरता के अंतर को समझा जाए, क्योंकि साक्षरता केवल पढ़ने-लिखने, रोजगार पाने या तकनीकी दक्षताओं तक सीमित है जबकि शिक्षा व्यक्ति का समग्र विकास करती है जिसमें बौद्धिक, नैतिक, आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक परिपक्वता शामिल है।

शिक्षा व्यक्ति को सभ्य और विवेकी बनाती है, उसके भीतर संतुलन, सद्बुद्धि और मानवीय संवेदनाएँ विकसित करती है, जबकि साक्षरता केवल वेतन, पद, और व्यावसायिक लाभ से जुड़कर रह जाती है, यही कारण है कि आज उच्च शिक्षित लेकिन व्यवहारिक रूप से अज्ञानी लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो समाज के लिए चुनौती बनते दिखाई देते हैं, इतिहास में रावण प्रकांड विद्वान था पर स्त्री-अपहरण जैसी कृत्य ने उसकी विद्वता को व्यर्थ कर दिया, आधुनिक समाज में केतन पारेख और हर्षद मेहता जैसे घोटालेबाज तथा ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादी साक्षर तो थे पर शिक्षित नहीं थे।

इससे स्पष्ट है कि शिक्षा का संबंध चरित्र-निर्माण से है मात्र रोजगार से नहीं, शिक्षा घर से शुरू होती है जहाँ मां प्रथम गुरु होती है और गर्भकाल से ही संस्कारों का प्रभाव पड़ता है, अभिमन्यु इसका सर्वोत्तम उदाहरण है, महात्मा गांधी और अब्राहम लिंकन दोनों ने स्वीकार किया कि बच्चे के चरित्र-निर्माण में माताओं की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, इसके बाद विद्यालय, शिक्षक और खेल-कूद जीवन में अनुशासन, नेतृत्व, सहभागीभाव और ईमानदारी जैसे गुणों का विकास करते हैं, इसीलिए कहा जाता है “गुरु बिन ज्ञान नहीं”,
वहीं सुकरात का यह कथन—“मैं इसलिए ज्ञानी हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं कुछ नहीं जानता।

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शिक्षा की विनम्रता और मूल्यों को सर्वोच्च स्थान देता है, परंतु आज प्रतिस्पर्धा के युग में समाज ने साक्षरता को शिक्षा का स्थान दे दिया है, नौकरी, वेतन, पद और आर्थिक चमक के कारण नैतिक मूल्य, सांस्कृतिक विरासत और चरित्र निर्माण पीछे छूट गए हैं, इसी वजह से शिक्षा में नकल, फर्जीवाड़ा, धन देकर नौकरी पाना और भ्रष्टाचार जैसी प्रवृत्तियाँ बढ़ी हैं जिससे सामाजिक मूल्य संकट में पड़ने लगे हैं, ऐसे समय में आवश्यकता है नैतिक साक्षरता की—ऐसी शिक्षा की जो ज्ञान के साथ-साथ संवेदना, जिम्मेदारी और सांस्कृतिक चेतना को विकसित करे, विशेष रूप से महिलाओं में यह शिक्षा एक सामाजिक बदलाव की सबसे मजबूत कड़ी बन सकती है, क्योंकि शिक्षित स्त्री शोषण से लड़ना जानती है।

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अपने अधिकार पहचानती है, परिवार को सही दिशा देती है और आने वाली पीढ़ियों को सुसंस्कृत बनाती है, वास्तव में स्त्री का शिक्षित होना सिर्फ उसके परिवार का उत्थान नहीं बल्कि पूरे समाज की प्रगति की कुंजी है, इसलिए आज भारत को केवल साक्षर नागरिक नहीं बल्कि शिक्षित, संवेदनशील, मूल्य-सम्पन्न और संस्कारित नागरिकों की आवश्यकता है, विशेषतः शिक्षित स्त्रियाँ ही समाज में वास्तविक जागरूकता, समानता और नैतिकता की नींव मजबूत कर सकती हैं, क्योंकि साक्षरता हमें पेशा दे सकती है पर शिक्षा हमें इंसान बनाती है, और जब समाज मनुष्यता, संवेदना, समानता और न्याय की राह पर चलेगा तभी भारत एक सशक्त, सुरक्षित और संस्कारित राष्ट्र बन सकेगा, इसलिए स्त्री पढ़ेगी तो इतिहास रचेगी और नारी जागेगी तो समाज आगे बढ़ेगा।

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