पाकिस्तान ने धर्मध्वजा का विरोध कर भारत पर  लगाए आरोप, पहले अपने गिरेबान में झाँके पाकिस्तान

पाकिस्तान ने धर्मध्वजा का विरोध कर भारत पर  लगाए आरोप, पहले अपने गिरेबान में झाँके पाकिस्तान

भारत की धार्मिक-सांस्कृतिक परंपराएँ सदियों पुरानी हैं। यहां विविधता, सहिष्णुता और संविधानिक सुरक्षा ने हर धर्म, हर संप्रदाय को फलने-फूलने का अवसर दिया है। इसके उलट, पाकिस्तान की राजनीति अक्सर धार्मिक ध्रुवीकरण,अल्पसंख्यकों के दमन और भारत-विरोध पर आधारित रही है। हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत में मुस्लिम विरासत मिटाने और बाबरी मस्जिद की जगह मंदिर निर्माण के नाम पर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को घेरने का प्रयास किया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में दखल की धमकी भी दे दी।
 
परंतु, क्या पाकिस्तान अपनी दायर की गई इस शिकायत में नैतिक रूप से खड़ा हो सकता है? क्या वह स्वयं अपने देश में हुए अल्पसंख्यक उत्पीड़न की भयावह सच्चाई से आँख मिला सकता है?  भारत की वास्तविक स्थिति के साथ-साथ पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों की बदहाली का यथार्थ सामने है।भारत में मुस्लिम सुरक्षित है। पाकिस्तान का भ्रमजाल यही दर्शाता है।
 
भारत आज दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश है। 20 करोड़ से अधिक मुसलमान भारत के हर क्षेत्र, हर संस्था, शिक्षा, राजनीति, न्यायपालिका, सैन्य सेवाओं और उद्यमिता में गर्व से योगदान दे रहे हैं।भारत में मुस्लिम नागरिक संविधान द्वारा पूर्ण सुरक्षा, धार्मिक स्वतंत्रता, शिक्षा के अधिकार और सरकारी कल्याण योजनाओं में बराबर की भागीदारी प्राप्त करते हैं।
 
इसके विपरीत, पाकिस्तान में शिया, अहमदी, हिन्दू, सिख और ईसाई हर समुदाय निरंतर धार्मिक कट्टरवाद और हिंसा का शिकार होता है। यह विडंबना है कि जो देश अपने यहाँ अल्पसंख्यकों को न्याय दिलाने में असफल रहा, वह भारत को मानवाधिकार पढ़ाने की कोशिश कर रहा है।बाबरी मस्जिद विवाद न्यायिक समाधान, राजनीतिक शोर  है।शहबाज शरीफ ने बाबरी मस्जिद की जगह मंदिर निर्माण पर ऐतराज जताया।लेकिन पाकिस्तान यह बताना भूल गया कि भारत में सुप्रीम कोर्ट ने विस्तृत सुनवाई के बाद सर्वसम्मति से निर्णय दिया।
 
यह फैसला इतिहास, पुरातत्व, कानून और साक्ष्यों पर आधारित था।भारत ने इस निर्णय के बाद देशभर में शांति बनाए रखी, क्योंकि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान था।पाकिस्तान को यह समझना चाहिए कि भारत में न्यायपालिका पूर्ण रूप से स्वतंत्र है, और किसी भी धार्मिक विवाद का समाधान संविधानिक प्रक्रिया से ही होता है। परंतु पाकिस्तान में न्यायालय अक्सर आतंकियों, कट्टरपंथियों और  अल्पसंख्यक-विरोधी तत्वों के दबाव में झुकते रहे हैं। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का गायब होना भारत के लिए चिंता का विषय है। 22 प्रतिशत से 2 प्रतिशत कैसे हुए?कहा गए इतनी आबादी के लोग?
 
विभाजन के समय पाकिस्तान में 22 प्रतिशत हिंदू, सिख और अन्य अल्पसंख्यक रहते थे। आज यह आँकड़ा घटकर सिर्फ 1.6-2प्रतिशत रह गया है। सवाल है किवे 22 प्रतिशत लोग कहाँ गए?न तो वे अचानक हवा में गायब हुए, न ही स्वेच्छा से पलायन किया। असल कारण थे  जबरन धर्मांतरण,कट्टरपंथी हिंसा सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार संस्थागत भेदभाव और पुलिस और न्यायिक संरक्षण की कमी ही हालात के मुख्य कारण है।मंदिरों का विध्वंस, व्यापार और संपत्ति पर कब्ज़ा, हिंदू महिलाओं का उत्पीड़न और भारत के खिलाफ बयानबाजी करने से पहले पाकिस्तान को इस ऐतिहासिक अपराध का जवाब देना चाहिए।
 
हिंदू बेटियों की जबरन शादी और धर्मपरिवर्तन एक कड़वी सच्चाई है।पाकिस्तान में हर वर्ष सैकड़ों नहीं, हजारों हिंदू और सिख लड़कियों का अपहरण, जबरन शादी और जबरन धर्मांतरण दर्ज किया जाता है।सिंध, बलूचिस्तान और पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में12 से16 वर्ष की लड़कियाँ निशाना बनती हैं।शिकायत दर्ज नहीं होती है।
 
अदालतें दोषियों के साथ खड़ी दिखती हैं।पुलिस संरक्षण देने के बजाय दबाव का हथियार बन जाती है।कई मानवाधिकार संगठनों के अनुमान के अनुसार, पाकिस्तान में हर वर्ष लगभग 1,000 से अधिक हिंदू लड़कियाँ गायब होती हैं, जिनमें से बहुत-सी का कोई रिकॉर्ड नहीं मिलता है।क्या पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इन पीड़ित बेटियों के आँसू भी यूएन तक लेकर जाएंगे?हिंदू मंदिरों पर हमले  सांस्कृतिक विनाश का अभियान चालू है।पाकिस्तान में दशकों से हिंदू मंदिरों पर हमले एक नियमित घटना बन चुके हैं।
 
सौ-सौ साल पुराने मंदिरों को जलाया जाता है।मूर्तियाँ तोड़ी जाती हैं।जमीनों पर कब्जे किए जाते हैं।पूजा-अर्चना रोक दी जाती है।हैदराबाद, कराची, थरपारकर, रहीमयार खान जैसे क्षेत्रों में दर्जनों मंदिरों को जमींदोज़ किया जा चुका है। इतिहास बताता है कि किसी देश की सभ्यता उसके अल्पसंख्यकों के सम्मान से पहचानी जाती है। यदि पाकिस्तान में मंदिर सुरक्षित नहीं, तो अपने उदाहरण से वह किस नैतिक आधार पर भारत को उपदेश दे सकता है?
 
पाकिस्तान में कानून और व्यवस्था अल्पसंख्यकों को न्याय नहीं दे पाती है।भारत पर आरोप लगाने वाला पाकिस्तान खुद निम्न घटनाओं का गवाह है। हिंदू लड़कियों का अपहरणकर्ताओं को पुलिस संरक्षण,स्कूलों में हिंदू बच्चों को मजबूरन इस्लामी शिक्षाऔर पाठ्यपुस्तकों में हिंदुओं के खिलाफ नफरत फैलाने वाली भाषा आज भी बरकरार है।संसद में अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व नगण्य है।अहमदियों को गैर-मुस्लिम  घोषित कर उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाता है।अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने पाकिस्तान को अल्पसंख्यकों के लिए सबसे असुरक्षित देशों  में शामिल किया है।भारत का समाज  विविधता में एकता का संदेश देता है।
 
भारत और पाकिस्तान की तुलना किसी भी मंच पर रख दें। भारत मुस्लिम उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्री हज़ारों मदरसे, लाखों मस्जिदें वक्फ बोर्ड, मुस्लिम पर्सनल लॉ उच्च शिक्षा में महत्वपूर्ण भागीदारी औरधार्मिक स्वतंत्रता को संविधानिक संरक्षण भारत की महिमा अपरंपार है।पाकिस्तान हिंदू मंदिरों का विध्वंस,जबरन धर्मांतरण, अल्पसंख्यकों की हत्या,सेना और राजनीति में लगभग शून्य प्रतिनिधित्व जैसे हरकत किये हुए है।अल्पसंख्यकों के खिलाफ संस्थागत भेदभाव है।फिर भी पाकिस्तान दावा करता है कि वह मानवाधिकारों का रक्षक है।
 
पाकिस्तान का राजनीतिक एजेंडा भारत पर आरोप, अपने असफलताओं पर पर्दाडालना रोजमर्रा बन चुका है। क्योकि पाकिस्तान की राजनीति विफलताओं से घिरी है। अर्थव्यवस्था दिवालिया,सेना की हुकूमत,आंतरिक आतंकवाद, महंगाई औऱ बेरोजगारी,राजनीतिक अस्थिरता ऐसे में जनता का ध्यान भटकाने के लिए भारत को कोसना आसान है।भारतीय अल्पसंख्यक की सुरक्षा की चिंता जताकर वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सहानुभूति जुटाना चाहता है, जबकि अपने ही घर में आग लगी है।
 
पाकिस्तान पहले खुद सुधरे, फिर भारत पर टिप्पणी करे। भारत शांति, सहिष्णुता और बहुलतावाद का प्रतीक है। भारतीय संविधान हर नागरिक को समान अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता देता है।यहाँ किसी के विरुद्ध राज्य-प्रायोजित धार्मिक दमन नहीं होता।इसके मुकाबले पाकिस्तान मेंअल्पसंख्यक तेजी से घट रहे है।उनकी बेटियाँ गायब हो रही है। मंदिर नष्ट हो रहे है। न्यायपालिका कमजोर है और कट्टरपंथियों का दबदबा बढ़ रहा है।इसलिए पाकिस्तान को चाहिए कि वह संयुक्त राष्ट्र की धमकी देने से पहले अपने घर की सफाई करे, अपनी धरती पर हो रहे अत्याचारों पर रोक लगाए और विभाजन के समय से लेकर आज तक गायब हुए अल्पसंख्यकों का जवाब दे। भारत पर आरोप लगाने से पहले उसे खुद अपने गिरेबान में झाँकने की आवश्यकता है।।   

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