धर्मेन्द्र: पर्दे का हीरो नहीं, दिलों का बादशाह

धर्मेन्द्र: नायक नहीं, नज़रिया थे

धर्मेन्द्र: पर्दे का हीरो नहीं, दिलों का बादशाह

धर्मेन्द्र: ही-मैन नहीं, ह्यूमन हीरो थे

फ़िल्मी आसमान में कुछ सितारे ऐसे जन्म लेते हैंजिनकी चमक समय की सीमाओं को लांघ जाती है। धर्मेन्द्र — वह नाम जिसने भारतीय सिनेमा को सिर्फ़ वीरता नहींसंवेदना भी दी। वह अभिनेता नहींभावनाओं का एक संस्थान थे। उनकी आँखों में ग़ज़ब की सच्चाई थीआवाज़ में गूँजता अपनापन और मुस्कान में वो गर्मजोशी जो किसी गाँव की धूप जैसी लगती थी — कोमलसच्ची और आत्मीय। धर्मेन्द्र वो इंसान थे जो परदे पर जितने बड़े हीरो दिखेअसल ज़िंदगी में उससे कहीं बड़े इंसान निकले। उनकी शख़्सियत किसी पुराने बरगद की तरह थी — जो हर पीढ़ी को छाँव देता रहास्थिरता देता रहा। सूरज भले हर दिन उगता होपर कुछ रोशनियाँ ऐसी होती हैं जो एक बार जाती हैं तो युग को अँधेरा दे जाती हैं। 24 नवंबर को ऐसी ही एक रौशनी बुझी — धर्मेन्द्र की। यह सिर्फ़ एक व्यक्ति का जाना नहीं थायह अभिनय के एक युग का अवसान था। वह युगजब पर्दे पर मांसपेशियों से नहींदिल से नायक गढ़े जाते थे। धर्मेन्द्र सिर्फ़ फ़िल्मों के हीरो नहीं थेवे उस मिट्टी की आत्मा थे जिसमें भारतीय सिनेमा की जड़ें बसी हैं।

जिस आवाज़ ने कभी सिनेमा हॉलों को हिला दिया था — कुत्तेमैं तेरा ख़ून पी जाऊँगा!  आज वह ख़ामोश है।पर यह ख़ामोशी भी उनकी गूँज को मिटा नहीं सकती। वह मुस्कानजो पीढ़ियों की थकान मिटा देती थीआज भी स्मृतियों में धूप की तरह चमक रही है। धर्मेन्द्र गए नहींवे बस पर्दे के उस पार चले गए हैं — जहाँ से वे अब भी अपनी आँखों की चमक और दिल के स्नेह से हम सबको देखते रहेंगे। उनके साथ भारतीय सिनेमा का वह स्वर्ण अध्याय बंद हुआ जिसमें सादगीशौर्य और संवेदना साथ-साथ चलते थे। धर्मेन्द्र के जाने से परदे ने अपना हीरो खो दियापर दिलों ने अपना बादशाह पा लिया — हमेशा के लिए।

1960 में दिल भी तेरा हम भी तेरे से उनके सफ़र की शुरुआत हुई  एक ऐसा सफ़र जो अगले छह दशकों तक भारतीय सिनेमा के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में  दर्ज हुआ। धर्मेन्द्र ने एक-एक किरदार से साबित किया कि अभिनय सिर्फ़ संवाद बोलने की कला नहींबल्कि भावनाओं को जीने का नाम है। एक तरफ़ शोले का वीरूजो दोस्ती का प्रतीक बन गयातो दूसरी ओर सत्यकाम का ईमानदार अभियंताजो आदर्शवाद की मूर्ति बना। उनके किरदारों में देहात की मिट्टी की ख़ुशबू थीऔर शहर की समझदारी का संतुलन। वह फ़िल्मी परदे पर रोमांस के राजा भी बने और एक्शन के सम्राट भी। उनकी मुस्कान जितनी प्यारी थीउनकी मर्दानगी उतनी ही दमदार — इसलिए उन्हें कहा गया, “ही-मैन ऑफ बॉलीवुड पर धर्मेन्द्र का आकर्षण सिर्फ़ ताक़त में नहीं था — वह अपनी नज़रों की गहराई मेंभावनाओं के कोमलपन में भी बसते थे। वे सिनेमा के वह नायक थे जिनकी आँखें बोलती थीं और मुस्कान सुनाई देती थी।

धर्मेन्द्र कोई साधारण अभिनेता नहीं थे। वे हिंदुस्तान की मिट्टी के बेटे थे — पंजाब के लुधियाना ज़िले के सहनेवाल गाँव में दिसंबर 1935 को जन्मे धर्म सिंह देओल। खेतों की खुशबूमाँ की रसोई की महक और गाँव की सादगी उनके व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा रही। यही ज़मीन उनकी आत्मा बनी — वही ज़मीन जिसने उन्हें गढ़ा और वही ज़मीन जिसने उन्हें धरती का हीरो बनाया। अगर अमिताभ एंग्री यंग मैन थेतो धर्मेन्द्र ह्यूमन हीरो थे — जो गुस्से से नहींअपनापन से जीतते थे। उनके हर संवाद में मिट्टी की सोंधी गंध थीहर हावभाव में सहजता। उनकी जोड़ी हेमामालिनी के साथ किसी कविता से कम नहीं थी — जहाँ प्रेम अभिनय में नहींएहसास में झलकता था। दोनों की मुस्कानें मिलकर मानो एक चित्रकला बन जाती थीं — रंगों से नहींभावनाओं से रची हुई।

दमघोंटू हवा पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती- अब  नियमित सुनवाई से जुड़ेगी दिल्ली की सांसों की लड़ाई Read More दमघोंटू हवा पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती- अब  नियमित सुनवाई से जुड़ेगी दिल्ली की सांसों की लड़ाई

धर्मेन्द्र का जीवन संघर्ष से भरा थापर उन्होंने कभी शिकायत नहीं की। लुधियाना के छोटे से गाँव साहनेवाल से निकलकर उन्होंने फ़िल्मी दुनिया का शिखर छू लिया — लेकिन उस ऊँचाई पर पहुँचकर भी ज़मीन नहीं छोड़ी। वह हमेशा कहते थे — मैं आज भी वही गाँव का लड़का हूँजो अपनी माँ की रसोई की खुशबू नहीं भूला। उनकी यह विनम्रता ही उन्हें ‘लिजेंड’ बनाती है। आज जब ग्लैमर की चकाचौंध में सादगी खो रही हैधर्मेन्द्र उस दौर के प्रतीक हैं जहाँ इंसानियतइज़्ज़त और इमोशन का मेल होता था।

इंसानियत गुम, व्यवस्था मौन — फिर हुआ एक कैदी फरार Read More इंसानियत गुम, व्यवस्था मौन — फिर हुआ एक कैदी फरार

वह हिंदी सिनेमा के सिंहासन के शेर थेजिनकी दहाड़ पर सिनेमाघरों में सीटियाँ बजती थीं। वह रोमांस के संगीतकार थेजो बिना शब्दों के प्रेम गा जाते थे। वह एक्शन के आंधी थेऔर करुणा के समुद्र। अगर दिलीप कुमार अभिनय के विद्यालय थेतो धर्मेन्द्र उसकी सजीव पाठशाला। उनकी उपस्थिति वैसी थी जैसे सूरज की — जिसके बिना रोशनी अधूरी लगती है। धर्मेन्द्र सिर्फ़ देखे नहीं जाते थेमहसूस किए जाते थे। आज की पीढ़ी अगर सनी देओल या बॉबी देओल को देखती हैतो उनमें धर्मेन्द्र की परछाईं झलकती है। उनका असर सिनेमा की रगों में दौड़ता है — हर उस अभिनेता में जो अभिनय को भावनाओं की भाषा मानता है। वह हमारे सिनेमा के ध्रुवतारा हैं — जो दिशा दिखाता हैमार्ग रोशन करता है। धर्मेन्द्र सिर्फ़ फ़िल्मों का नाम नहींएक संवेदना हैंजो भारतीय दिलों में हमेशा जीवित रहेगी।

बहुपत्नीत्व अब इतिहास—असम ने बदल दी सदियों की परंपरा Read More बहुपत्नीत्व अब इतिहास—असम ने बदल दी सदियों की परंपरा

समय चाहे आगे बढ़ जाएतकनीक बदल जाएपर एक बात सदा रहेगी — जब भी यमला पगला दीवाना गूँजेगा, जब भी शोले का वीरू स्क्रीन पर हँसेगाहर दिल में धर्मेन्द्र मुस्कुराएँगे। ह सिर्फ़ अभिनेता नहींवह भारतीय सिनेमा का दिल हैं — जो हर पीढ़ी की धड़कनों में बसता रहेगा। कुछ लोग जीकर नहींदिलों में बसकर अमर होते हैं — धर्मेन्द्र उन्हीं में से एक हैं। आज जब वे हमारे बीच नहीं हैंतो लगता है जैसे सूरज ढल गया होलेकिन सच में सूरज ढलता नहीं — वह सिर्फ़ दूसरी दुनिया को रोशन करने जाता है। धर्मेन्द्र भी चले गए हैंपर वे हर उस खेत में हैं जहाँ कोई नौजवान ट्रैक्टर चला रहा हैहर उस बच्चे की आँखों में हैं जो शोले देखकर वीरू बनना चाहता हैहर उस प्रेम गीत में हैं जो आज भी गूँजता है — मैं जट यमला पगला दीवाना...

धर्मेन्द्र सिर्फ़ अभिनेता नहीं थेवे भारतीय सिनेमा की आत्मा थे। वे एक पीढ़ी नहींकई पीढ़ियों के हीरो रहे — जो पर्दे पर गरजते थे और असल ज़िंदगी में झुकते थे। वे बरगद के उस पेड़ की तरह थे जिसकी छाँव में पूरा बॉलीवुड पला-बढ़ा। उनके बेटे और पोते उसी वटवृक्ष की शाखाएँ हैं। धर्मेन्द्र हमें यह सिखा गए कि असली नायक वह नहीं जो युद्ध जीतता हैबल्कि वह है जो दिल जीतता है। उन्होंने भारतीय सिनेमा को वीरता दीसंवेदना दीऔर सबसे बढ़कर — इंसानियत दी।

About The Author

स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel