सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी से कहा कमाकर खाओ।

आईपीएस पत्नी से कहा माफ़ी मांगो, दहेज प्रताड़ना पर दिशा निर्देश ।

सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी से कहा कमाकर खाओ।

ब्यूरो चीफ प्रयागराज।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में  वैवाहिक विवाद के दो मामलों में जहाँ अप्रत्याशित देखने सुनने को मिला वहीं दहेज प्रताड़ना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उठाया बड़ा कदम, देशभर में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा पारित  गाइडलाइन लागू करने का आदेश दिया।एनडीटीवी के अनुसार पहले मामले में मुंबई में घर, बीएमडब्ल्यू और 12 करोड़ ऐलेमनी की मांग पर सीजेआई  ने महिला को जमकर सुनाया और कमाकर खाने की सलाह दी वहीं दुसरे मामले में आईपीएस पत्नी को बिना शर्त सार्वजनिक माफी मांगने का आदेश दिया । तीसरे मामले में  दहेज प्रताड़ना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2022 के दिशानिर्देशों को पूरे देश में लागू करने के आदेश दिए गए हैं । 
 
पहला मामला-कमाकर खाओ।
18 महीने की शादी, 12 करोड़ रुपये गुजारा भत्‍ता, मुंबई का घर और एक बीएमडब्‍लू गाड़ी, यह हकीकत है उस शादी की जो अग्नि को साक्षी मानकर और सात फेरों के साथ पूरी हुई थी । मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में वैवाहिक विवाद से जुड़े एक मामले पर सुनवाई हुई । मुख्‍य न्‍यायधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने स्‍पष्‍ट शब्‍दों में महिला से कहा, 'आपको कमाकर खाना चाहिए न कि मांगना चाहिए' और अब उनकी यह टिप्‍पणी उन तमाम लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गई है जो इसी तरह के मसलों से उलझ रहे हैं । मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. ।
 
सीजेआई के सामने यह एक हाई-प्रोफाइल मामला था और इस पर जो भी बहस हुई, वह भी काफी दिलचस्‍प थी । सीजेआई गवई ने महिला को समझाने वाले लहजे में कहा कि उसे गुजारा भत्‍ता के भरोसे नहीं रहना चाहिए बल्कि जब वह पढ़ी-लिखी है तो खुद कमाकर अपना गुजारा कर सकती है । अपने केस की पैरवी महिला खुद कर रही थी. सीजेआई और उस महिला के बीच बहस कुछ इस तरह से थी-।
 
 
सीजेआई गवई: 'आपकी मांग क्‍या है?'
महिला: 'बस मुंबई वाला घर और 12 करोड़ रुपये का गुजारा भत्ता। ' 
सीजेआई गवई: 'लेकिन वह घर तो कल्पतरु में है और यह अच्छे बिल्डर्स में से एक हैं । आप आईटी एक्सपर्ट हैं और एमबीए  भी किया है और यह आपकी डिमांड है!' बेंगलुरु, हैदराबाद में कहीं भी,  आप नौकरी क्यों नहीं करती? आपकी शादी सिर्फ 18 महीने चली और अब आपको एक बीएमडब्ल्यू भी चाहिए? 18 महीने की शादी और आप हर महीने एक करोड़ चाहती हैं। ' 
महिला- 'लेकिन वो बहुत अमीर हैं।उसने मुझे सिजोफ्रेनिया का शिकार बताकर शादी रद्द करने की मांग की।
इसके बाद इस बहस में पति की पैरवी कर रही सीनियर लॉयर माधवी दीवान की एंट्री होती है । माधवी ने कोर्ट के सामने कहा, 'उसे भी काम करना पड़ता है। हर चीज की मांग ऐसे नहीं की जा सकती। '  इस पर महिला ने पलट कर सवाल किया, 'क्या मैं आपको सिजोफ्रेनिया से पीड़ित दिखती हूं ?' इसके बाद सीजेआई ने पति की वकील से कहा, 'आयकर रिटर्न दाखिल करें । लेकिन समझ लीजिए कि आप उसके पिता की संपत्ति पर भी दावा नहीं कर सकते। ' 
लंच के बाद इस मामले की सुनवाई फिर शुरू हुई । सिजेआई गवई की बेंच ने पति का आयकर रिटर्न देखा। 
 
वरिष्ठ वकील दीवान ने कहा, 'कृपया पूरी कॉपी दें। 2015-16 में आय ज्‍यादा है क्योंकि उस समय वो नौकरी करते थे । 2 करोड़ 50 लाख और 1 करोड़ का बोनस, प्रॉक्सी बिजनेस के भी आरोप हैं। चलिए इसे भी उदाहरण के तौर पर लेते हैं । वो बैलेंस शीट भी है । जिस फ्लैट में वह रह रही हैं, उसके अलावा. दो कार पार्किंग भी हैं और वह उससे कमाई कर सकती है। ' उनकी इस बात से सीजेआई भी सहमत नजर आए. उन्‍होंने तुरंत कहा, 'हां मुंबई में सभी जगहों से पैसा कमाया  जा सकता है।' दीवान ने आगे कहा, 'जिस बीएमडब्ल्यूका वह सपना देख रही हैं, वह 10 साल पुरानी है और बहुत पहले ही खटारा हो चुकी है। 
यहां से बहस और भी ज्‍यादा दिलचस्‍प हो गई और महिला की मांग पर सीजेआई का रुख काफी कड़ा था । उनके और महिला के बीच फिर से बहस शुरू हुई जो इस तरह से थी। 
 
सीजेआई गवई: ' या तो आपको बिना किसी बोझ के फ्लैट मिलेगा या कुछ भी नहीं, जब आप उच्च शिक्षित हों और जब अपनी इच्छा से काम न करने का फैसला किया हो । या तो आप वो 4 करोड़ रुपये ले लें और फिर पुणे/हैदराबाद/बेंगलुरु में कोई अच्छी नौकरी ढूंढ लें । आईटी केंद्रों में मांग है । '
महिल (शिकायत के लहजे में)- 'मेरी नौकरी भी इन्हीं ने छुड़वा दी । मुझ पर एफआईआर  भी दर्ज करा दी । ' 
सीजेआई गवई: 'आप एफआईआर दे दीजिए हम वो भी रद्द कर देंगे । हम निर्देश देंगे कि कोई भी पक्ष एक-दूसरे के खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं करेगा । ' 
 
पति की वकील: 'यह तो समझौते में पहले से ही है । '  
सिजेआई गवई: 'आपको खुद मांगना नहीं चाहिए बल्कि  खुद कमाकर खाना चाहिए । '
दूसरा मामला- आईपीएस पत्नी माफ़ी मांगो 
सुप्रीम कोर्ट  ने असाधारण कदम उठाते हुए  आईपीएस  पत्नी को बिना शर्त सार्वजनिक माफी मांगने का आदेश दिया ।कोर्ट ने कहा कि महिला और उसके माता-पिता अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों से बिना शर्त माफी मांगेंगे, जिसे एक प्रसिद्ध अंग्रेजी और एक हिन्दी समाचार पत्र के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित किया जाएगा । यह माफीनामा फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और इसी तरह के अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी प्रकाशित और प्रसारित किया जाएगा ।
वैवाहिक विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने असाधारण कदम उठाया है । आईपीएस पत्नी को वैवाहिक विवाद के दौरान पूर्व पति और ससुरालवालों के खिलाफ दर्ज कई आपराधिक मामलों से हुई 'शारीरिक और मानसिक पीड़ा' के लिए बिना शर्त सार्वजनिक रूप से माफी मांगने के आदेश दिया है । सुप्रीम कोर्ट ने पति-पत्नी के बीच चल रहे सारे मामलों को रद्द कर दिया । साथ ही संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए अक्टूबर 2018 से पति-पत्नी के अलग रहने के कारण शादी को भंग भी कर दिया ।
 
सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने ये फैसला सुनाया है । फैसले में कोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा IPc की धारा 498A, 307 और 376 के तहत गंभीर आरोपों सहित दर्ज आपराधिक मामलों के चलते पति को 109 दिन और उसके पिता को 103 दिन जेल में बिताने पड़े । पीठ ने कहा कि उन्होंने जो कुछ सहा है, उसकी भरपाई  किसी भी तरह से नहीं की जा सकती । अदालत ने सार्वजनिक माफी को नैतिक क्षतिपूर्ति के रूप में उचित ठहराया । पत्नी ने पति और उसके परिवार के खिलाफ अलग-अलग आपराधिक मामले दर्ज कराए थे। पत्नी ने तलाक, भरण-पोषण आदि के लिए फैमिली कोर्ट में भी मामला दायर किया । पति ने भी पत्नी और परिवारवालों के खिलाफ मुकदमे दर्ज कराए थे । इसके अलावा तीसरे पक्ष ने भी मामले दर्ज कराए थे ।
पति ने तलाक के लिए अर्जी दी थी. पति और पत्नी दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ दायर मामलों को अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में ट्रांसफर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी । मामले का फैसला सुनाते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने कहा कि महिला और उसके माता-पिता अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों से बिना शर्त माफी मांगेंगे, जिसे एक प्रसिद्ध अंग्रेजी और एक हिन्दी समाचार पत्र के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित किया जाएगा. यह माफीनामा फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और इसी तरह के अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी प्रकाशित और प्रसारित किया जाएगा । यहां माफी मांगने को दायित्व स्वीकार करने के रूप में नहीं समझा जाएगा और इसका कानूनी अधिकारों, दायित्वों या कानून के तहत उत्पन्न होने वाले परिणामों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. यह माफीनामा इस आदेश की तारीख से 3 दिनों के भीतर प्रकाशित किया जाएगा । 
 
इतना ही नहीं, पीठ ने पत्नी से बिना किसी बदलाव के एक प्रारूप में ही माफ़ी मांगने को भी कहा-
“मैं .., पुत्री ___, निवासी ....., अपनी और अपने माता-पिता की ओर से अपने किसी भी शब्द, कार्य या कहानी के लिए ईमानदारी से माफ़ी मांगती हूं जिससे ___ परिवार के सदस्यों, अर्थात् ____ की भावनाओं को ठेस पहुंची हो या उन्हें परेशानी हुई हो । मैं समझती हूं कि विभिन्न आरोपों और कानूनी लड़ाइयों ने दुश्मनी का माहौल पैदा कर दिया है और आपकी भलाई पर गहरा असर डाला है, हालांकि कानूनी कार्यवाही अब हमारे विवाह के भंग होने और पक्षों के बीच लंबित मुकदमों के रद्द करने के साथ समाप्त हो गई है ।. मैं समझती हूं कि भावनात्मक जख्मों को भरने में समय लग सकता है । मुझे पूरी उम्मीद है कि यह माफी हम सभी के लिए शांति और समाधान पाने की दिशा में एक कदम साबित होगी. मुझे खेद है और मैं दोनों परिवारों के लिए शांति और सौहार्दपूर्ण भविष्य की कामना करती हूं । दोनों परिवारों की शांति, अच्छे स्वास्थ्य, समृद्धि और खुशहाली के लिए, मुझे पूरी उम्मीद है कि ___ परिवार मेरी इस बिना शर्त माफ़ी को स्वीकार करेगा. अतीत चाहे कितना भी अंधकारमय क्यों न हो, वह भविष्य को बंदी नहीं बना सकता ।. मैं इस अवसर पर___परिवार के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना चाहती हूं कि उनके साथ अपने जीवन के अनुभवों से मैं एक अधिक आध्यात्मिक व्यक्ति बन गई हूं । एक बौद्ध धर्मावलंबी होने के नाते, मैं सच्चे मन से ___परिवार के प्रत्येक सदस्य की शांति, सुरक्षा और खुशी की कामना करती हूं ।. यहां, मैं दोहराती हूं कि ___परिवार का विवाह से जन्मी उस बालिका से मिलने और उसके बारे जानने के लिए हार्दिक स्वागत है, जिसका कोई दोष नहीं है । आदर और सम्मान सहित । ”
 
पीठ  ने पत्नी को यह भी निर्देश दिया कि वह एक IPS अधिकारी के रूप में अपने पद और शक्ति का, या भविष्य में अपने किसी अन्य पद का, देश में कहीं भी अपने सहकर्मियों/वरिष्ठों या अन्य परिचितों के पद और शक्ति का, पति, उसके परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों के विरुद्ध किसी भी प्राधिकरण या मंच के समक्ष किसी तीसरे पक्ष/अधिकारी के माध्यम से कोई कार्यवाही शुरू करने या पति और उसके परिवार को किसी भी तरह से शारीरिक या मानसिक क्षति पहुंचाने के लिए उपयोग न करें । हालांकि, पीठ  ने पति और उसके परिवार को आगाह किया कि वे याचिकाकर्ता-पत्नी और उसके परिवार द्वारा किसी भी अदालत, प्रशासनिक/नियामक/अर्ध-न्यायिक निकाय/ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रस्तुत क्षमा याचना का उपयोग वर्तमान या भविष्य में उसके हितों के विरुद्ध न करें, अन्यथा इसे अदालत की अवमानना माना जाएगा जिसके लिए पति और उसके परिवार को उत्तरदायी ठहराया जाएगा । पक्षों के बीच सभी लंबित आपराधिक और दीवानी मुकदमों को रद्द/वापस लेने का आदेश दिया गया । अदालत ने ये भी आदेश दिया कि उनकी बेटी मां के साथ ही रहेगी और पति व परिजनों को मिलने का समय दिया जाएगा । साथ ही साफ किया कि पत्नी तय समझौते के मुताबिक पति से कोई गुजारा भत्ता नहीं लेगी ।
 
तीसरा मामला- दहेज प्रताड़ना पर दिशा निर्देश 
वैवाहिक विवादों में IPC की धारा 498 A यानी दहेज प्रताड़ना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाया है.  दहेज प्रताड़ना के दुरुपयोग को रोकने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2022 के दिशानिर्देशों को पूरे देश में लागू करने के आदेश दिए गए हैं । 498A मामलो में  दो महीने तक गिरफ्तारी ना करने और परिवार कल्याण समितियों के गठन के हाईकोर्ट दिशानिर्देशों का समर्थन किया है । सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने फैसले में कहा कि हाईकोर्ट द्वारा तैयार किए गए दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और प्राधिकारियों द्वारा उनका क्रियान्वयन किया जाना चाहिए ।
पीठ ने कहा  कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 13जून 2022 के फैसले में पैरा 32 से 38 के अनुसार, 'भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के दुरुपयोग से संबंधित सुरक्षा उपायों के लिए परिवार कल्याण समितियों के गठन' के संबंध में तैयार किए गए दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और उपयुक्त प्राधिकारियों द्वारा उनका क्रियान्वयन किया जाएगा । दरअसल इस फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि 2018 में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए दिशानिर्देश जारी कर रहा है । इसका उद्देश्य वादियों में पति और उसके पूरे परिवार को व्यापक आरोपों के माध्यम से फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना है ।
 
हाईकोर्ट के दिशानिर्देश थे 
(1) FIR या शिकायत दर्ज होने के बाद, "कूलिंग पीरियड" (जो FIR या शिकायत दर्ज होने के दो महीने बाद है) समाप्त हुए बिना, नामित अभियुक्तों की गिरफ्तारी या उन्हें पकड़ने के लिए पुलिस कार्रवाई नहीं की जाएगी ।.इस "कूलिंग पीरियड" के दौरान, मामला प्रत्येक जिले में तुरंत परिवार कल्याण समिति को भेजा जाएगा।
(2) केवल वे मामले परिवार कल्याण समिति को भेजे जाएंगे जिनमें धारा 498-ए, अन्य धाराओं के साथ-साथ कारावास की सजा 10 साल से कम हो ।
(3) शिकायत या FIR दर्ज होने के बाद दो महीने का "कूलिंग पीरियड" समाप्त हुए बिना कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए. इस "कूलिंग पीरियड" के दौरान, मामले को प्रत्येक जिले में परिवार कल्याण समिति को भेजा जा सकता है ।
(4) प्रत्येक जिले में कम से कम एक या एक से अधिक परिवार कल्याण समिति (जिला विधिक सहायता सेवा प्राधिकरण के अंतर्गत गठित उस जिले के भौगोलिक आकार और जनसंख्या के आधार पर) होगी, जिसमें कम से कम तीन सदस्य होंगे ।  इसके गठन और कार्यों की समीक्षा  उस जिले के जिला एवं सत्र न्यायाधीश/प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट द्वारा समय-समय पर की जाएगी, जो विधिक सेवा प्राधिकरण में उस जिले के अध्यक्ष या सह-अध्यक्ष होंगे ।
(5) उक्त परिवार कल्याण समिति में निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे:-
(ए ) जिले के मध्यस्थता केंद्र से एक युवा मध्यस्थ या पांच वर्ष तक का अनुभव रखने वाला युवा वकील या राजकीय विधि महाविद्यालय या राज्य विश्वविद्यालय या राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय का पाँचवें वर्ष का वरिष्ठतम छात्र.. अच्छा शैक्षणिक रिकॉर्ड रखने वाला और लोक-हितैषी युवक, या
(बी) उस जिले का सुप्रसिद्ध और मान्यता प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता, जिसका पूर्व-पारिवारिक इतिहास साफ़-सुथरा हो, या;
(सी)  जिले में या उसके आस-पास रहने वाले सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी, जो कार्यवाही के उद्देश्य के लिए समय दे सकें, या;
 (डी) जिले के वरिष्ठ न्यायिक या प्रशासनिक अधिकारियों की शिक्षित पत्नियां ।
(6) परिवार कल्याण समिति के सदस्य को कभी भी गवाह के रूप में नहीं बुलाया जाएगा ।
(7) भारतीय दंड संहिता की धारा 498A और ऊपर उल्लिखित अन्य संबद्ध धाराओं के अंतर्गत प्रत्येक शिकायत या आवेदन, संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा तुरंत परिवार कल्याण समिति को भेजा जाएगा..  उक्त शिकायत या FIR प्राप्त होने के बाद, समिति प्रतिवादी पक्षों को उनके चार वरिष्ठ व्यक्तियों के साथ व्यक्तिगत बातचीत के लिए बुलाएगी और दर्ज होने के दो महीने के भीतर उनके बीच के विवाद/शंकाओं को सुलझाने का प्रयास करेगी.  प्रतिवादी पक्षों को समिति के सदस्यों की सहायता से अपने बीच गंभीर विचार-विमर्श के लिए अपने चार वरिष्ठ व्यक्तियों (अधिकतम) के साथ समिति के समक्ष उपस्थित होना अनिवार्य है ।
(8) समिति उचित विचार-विमर्श के बाद, एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी और मामले से संबंधित सभी तथ्यात्मक पहलुओं और अपनी राय को शामिल करते हुए, दो महीने की अवधि समाप्त होने के बाद, संबंधित मजिस्ट्रेट/पुलिस अधिकारियों को, जिनके समक्ष ऐसी शिकायतें दर्ज की जा रही हैं, भेजेगी ।
(9) पुलिस अधिकारी, नामित अभियुक्तों के विरुद्ध आवेदनों या शिकायतों के आधार पर किसी भी गिरफ्तारी या किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से बचने के लिए, समिति के समक्ष विचार-विमर्श जारी रखेंगे.  हालांकि, जांच अधिकारी मामले की परिधीय जाँच जारी रखेंगे, जैसे कि मेडिकल रिपोर्ट, चोट रिपोर्ट और गवाहों के बयान तैयार करना ।
(10) समिति द्वारा दी गई उक्त रिपोर्ट, गुण-दोष के आधार पर, जांच अधिकारी या मजिस्ट्रेट के विचाराधीन होगी और उसके बाद दो महीने की " कूलिंग अवधि" समाप्त होने के बाद, दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अनुसार उनके द्वारा उचित कार्रवाई की जाएगी । 
(11) विधिक सेवा सहायता समिति, परिवार कल्याण समिति के सदस्यों को समय-समय पर आवश्यक समझे जाने वाले बुनियादी प्रशिक्षण प्रदान करेगी । 
(12) चूंकि,यह समाज में व्याप्त उन कटुताओं को दूर करने का एक नेक कार्य है जहां प्रतिवादी पक्षों की भावनाएं बहुत तीव्र होती हैं ताकि वे अपने बीच की गर्माहट को कम कर सकें और उनके बीच की गलतफहमियों  को दूर करने का प्रयास कर सकें चूंकि यह कार्य व्यापक रूप से जनता के लिए है, सामाजिक कार्य है, इसलिए वे प्रत्येक जिले के जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा निर्धारित न्यूनतम मानदेय या निशुल्क आधार पर कार्य कर रहे हैं ।
(13) भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए और अन्य संबद्ध धाराओं से संबंधित ऐसी FIR या शिकायतों की जांच, गतिशील जांच अधिकारियों द्वारा की जाएगी, जिनकी निष्ठा, ऐसे वैवाहिक मामलों को पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ संभालने और जांच करने के लिए कम से कम एक सप्ताह के विशेष प्रशिक्षण के बाद प्रमाणित हो ।
(14) जब पक्षों के बीच समझौता हो जाता है तो जिला एवं सत्र न्यायाधीश और उनके द्वारा जिले में नामित अन्य वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी आपराधिक मामले को बंद करने सहित कार्यवाही का निपटारा करने के लिए स्वतंत्र होंगे । दरअसल मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने उस वैवाहिक मामले में फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट  के सुरक्षा उपायों का समर्थन किया है, जिसमें पत्नी और उसके परिवार ने पति और उसके परिवार के खिलाफ झूठे मामले दर्ज कराए थे, जिसके कारण पति और उसके पिता को जेल की सजा हुई थी ।

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