रेगुलर डिग्री के लिए बारा में आज तक नहीं खुला कोई शिक्षण संस्थान।

 इंटर पास करने के बाद छात्र-छात्राएं प्राइवेट ग्रेजुएशन करने को मजबूर।

रेगुलर डिग्री के लिए बारा में आज तक नहीं खुला कोई शिक्षण संस्थान।

स्वतंत्र प्रभात 
बारा (प्रयागराज)।
 
 प्रयागराज जनपद के बारा तहसील में आज भी इंटर के बाद जब छात्र एवं छात्राएं परीक्षा पास कर लेते हैं तो उनके लिए सबसे बड़ा धर्म संकट उत्पन्न होता है कि आगे की शिक्षा कैसे जारी रखी जाए। राज्य में कई सरकार आई, शिक्षा विभाग के नियम बदले यहां तक की कई विधायकों और लोकल नेताओं ने हवा भरी की छात्राओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए डिग्री कॉलेज जिससे यहां पर निवास करने वाले छात्र एवं छात्राओं को ग्रेजुएशन करने के लिए रेगुलर क्लास चलने वाले कॉलेज का निर्माण करवाया जाएगा
 
लेकिन विद्यार्थियों के किस्मत में केवल झूठे हवा हवाई वादे ही आए। आज आधुनिकता के युग में शंकरगढ़ क्षेत्र उस जगह पर पहुंच चुका है जहां छात्रों को उच्च शिक्षा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए कोई डिग्री कॉलेज महाविद्यालय आज तक नहीं बन पाया है। मजबूरन छात्र एवं छात्राएं ग्रेजुएशन करने के लिए प्राइवेट दूर दराज के डिग्री कॉलेज से फॉर्म भरकर 3 साल की डिग्री प्राप्त कर रहे हैं।
 
छात्रों की मजबूरी है की कक्षाएं ना चलने के कारण जब सेमेस्टर एग्जाम आते हैं तो प्राइवेट डिग्री कॉलेज द्वारा गरीब एवं मजबूर छात्रों से प्राइवेट संस्थानों द्वारा नकल कराने और डिग्री देने के नाम पर भारी भरकम वसूली की जाती है। और शैक्षणिक ज्ञान के नाम पर उन्हें कुछ नहीं प्राप्त होता है। नेताओं की फौज इतनी है कि चुनाव के वक्त और सोशल मीडिया में बारा विधानसभा को लगता है सब कुछ न्योछावर कर देंगे।
 
लेकिन जब विधानसभा और शंकरगढ़ क्षेत्र की शिक्षा पर सवाल आता है तो विधायक से लेकर सांसद तक नतमस्तक होते हुए दिखाई पड़ते हैं। आखिर क्या वजह है कि आज तक शंकरगढ़ क्षेत्र के गरीब छात्र-छात्राओं को जिनके पास आर्थिक समस्या है उनके लिए सुचारू रूप से कक्षाएं चलने वाला डिग्री कॉलेज आज तक नहीं खोला गया।
 
सबसे बड़ी समस्या छात्राओं को हो रही है जिनके माता-पिता चाह कर भी अपनी लड़कियों को बाहर नहीं भेज पा रहे हैं। यही कारण है कि छात्राएं मजबूरन प्राइवेट ग्रेजुएशन करने के लिए बाध्य हो रही है। लेकिन कई दशक बीत जाने के बाद भी आधुनिकता के जमाने की बात करने वाले नेताओं के मन में एक बार भी यह ख्याल नहीं आया कि क्षेत्रीय बच्चों की शिक्षा के लिए क्या व्यवस्था की जाए यह सवाल आज भी लोगों के मन में पीड़ा बनकर उभर रहा है।

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