असली चैम्पियंस का सुयश यानि जय हो
एक लम्बे अरसे से न क्रिकेट का खेल देखा और न क्रिकेट पर कुछ लिखा ही ,गन्दी राजनीति से ही फुरसत नहीं मिल रही थी ,लेकिन रविवार की रात आम हिन्दुस्तानियों की तरह मेरे लिए भी क्रिकेट की रात थी। मुझे ख़ुशी है कि भारतीय क्रिकेट टीम ने चैम्पियंस ट्राफी जीतकर भारत का सयुश एक बार फिर बढ़ाया। ये जीत भारतीयता की जीत है। क्योंकि इस टीम में केंद्रीय मंत्रिमंडल की तरह खिलाडियों का चयन नहीं किया गया था।
बहरहाल आज मै रविवार के मैच का विश्लेषण नहीं कर रहा । इसके बारे में तो विशेषज्ञ अपना काम कर चुके है। मै तो ये रेखांकित करने की कोशिश कर रहा हूँ कि जिस तरह से भारतीय टीम में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब हैं उसकी वजह से हमें यानि भारतीय टीम को ये सयुश हासिल हुआ। हमारी भारतीय टीम में फिलहाल हमारी सरकार हिन्दू-मुसलमान चाहकर भी नहीं कर पायी। हमारी टीम में हिंदू ज्यादा हैं लेकिन एक मुसलमान भी है। हमारी टीम केंद्रीय मंत्रिमंडल की तरह केवल हिन्दुओं की टीम नहीं है ,जिसमें एक भी मुसलमान नहीं है।
आप कहेंगे कि खेल में कहाँ हिन्दू-मुसलमान ले आये ? तो जान लीजिये की खेल में ही नहीं भारतीय समाज के हर हलके में हिन्दू-मुसलमान शुरू से रहे हैं और आगे भी रहेंगे। हालाँकि आज की सरकार ये नहीं चाहती। आज की सत्ता जिन दलों के हाथों में है वे मुसलमानों को हिन्दुओं से अलग कर देने पर आमादा है। उन्हें होली से दूर करना चाहते हैं,दीवाली से दूर करना चाहते हैं। एक हद तक इस अभियान में सत्ता प्रतिष्ठान को इस दिशा में कामयाबी भी मिली है किन्तु ये कामयाबी भारतीय क्रिकेट टीम की कामयाबी जैसी सतरंगी नहीं है।
चैम्पिनस ट्राफी जीतने वाली भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रोहित शर्मा हैं तो , शुभमन गिल उप-कप्तान हैं विराट कोहली, श्रेयस अय्यर, केएल राहुल (विकेटकीपर), ऋषभ पंत (विकेटकीपर), हार्दिक पंड्या, यशस्वी जायसवाल, रवींद्र जडेजा, अक्षर पटेल, कुलदीप यादव, जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी, अर्शदीप सिंह, वॉशिंगटन सुंदर भी। ये एक खूबसूरत टीम है। आदर्श टीम है और ये संकेत देती है कि हर दिशा में हमारी टीम ऐसी ही होना चाहिए। किसी धर्म या जाति के लिए जैसे क्रिकेट प्रतिबंधित नहीं है वैसे ही राजनीति भी प्रतिबंधित नहीं होना चाहिए। अर्थात चाहे केंद्र की सरकार हो या राज्यों की सरकारें यदि उनमें कोई मोहम्मद शमी नहीं होगा तो टीम को पूरा नहीं कहा जा सकता। दुर्भाग्य से राजीनीति की टीम में मोहम्मद शमी को जान-बूझकर दूर रखा जा रहा है।
पिछले दिनों देश में जिस तरह से गड़े मुर्दे उखाड़कर राजनीति की जा रही है उसे भारतीय क्रिकेट टीम की टीम भावना से कुछ सीखना चाहिए । औरंगजेब और तुगलक के नाम और उनकी बिरादरी से घिन करने वाले नेताओं को देखना चाहिए कि जैसे हम सब स्वतंत्रता आंदोलन में साथ-साथ थे ,जैसे हम खेल के मैदान में साथ-साथ हैं वैसे ही हम राजनीति के मैदान में साथ-साथ रहेंगे तो हमारा सुयश बढ़ेगा,घटेगा नहीं भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तानों की फेहरिश्त पर यदि नजर डालें तो आप पाएंगे की अब तक हुए 33 कप्तानों में से भारतीय टीम की कप्तानी इफितखार अली खान पटौदी ,गुलाम अहमद ,मंसूर अली खान पटौदी और मोहम्मद अजहरुद्दीन के हाथों में भी सौंपी गयी ।
आज ये विश्वास किसी मुसलमान खिलाड़ी पर हमारे चयनकर्ता यदि करते हैं तो उसे ही असली खेल भावना माना जाता है।राजनेताओं को भी इसी तरह से राजनीति में टीमें बनाना चाहिए। उन्हें मान लेना चाहिए कि मुसलमान अस्पृश्य [अछूत ] नहीं हैं। उनका साथ रखना भी उतना ही जरूरी है जितना की आटे में नमक।
मुझे पता है कि इस आलेख पर भी मेरे अनेक परिचित-अपरिचित पाठक नाराज होंगे ,लेकिन मै तो जो सोचता हूं आपसे छिपाता नहीं ,क्योंकि मेरा कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है ।
मै किसी दल विशेष के लिए नहीं लिखता। मै आम भारतीय लेखक हूँ। एक नामालूम लेखक । नक्क्कार खाने में तूती की आवाज जैसा लेखक। मुझे जितना पढ़ा या सुना जा रहा है मेरे लिए वही बहुत है । एक बार फिर सभी देशवासियों को खेल में मिले सुयश की बधाई और खिलाडियों को शुभकामनाएं।

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