मथुरा में स्पेशल डीजीसी श्रीमती अलका उपमन्यु ने रचा सजा कराने का इतिहास

-चार फांसी, 50 से अधिक आजीवन कारावास, तीन सौ से अधिक केसों में त्वरित कराए निर्णय 

 मथुरा में स्पेशल डीजीसी श्रीमती अलका उपमन्यु ने रचा सजा कराने का इतिहास

-देश की नंबर वन सरकारी अधिवक्ता बनी अलका उपमन्यु, कैदी ही नहीं ब्रजबासी बोलते हैं फांसी बाली मैडम 

मथुरा। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार की संतुति पर उत्तर प्रदेश शासन की राज्यपाल आनंदीबेन द्वारा नियुक्त मथुरा में पॉक्सो न्यायालय में स्पेशल डीजीसी अलका उपमन्यु एडवोकेट द्वारा अपने सवा चार साल के कार्यकाल में ऐतिहासिक निर्णय कराकर देश की पहली सरकारी अधिवक्ता के वन गयी है, जेल के कैदी ही नहीं अब तो बृजवासी भी उन्हें फांसी वाली मैडम बोलने लगे हैं श्रीमती उपमन्यु ने अपने सवा चार साल के कार्यकाल के अंदर ऐतिहासिक निर्णय कराए है, इसके लिए उन्हें उत्तर प्रदेश शासन के प्रमुख गृह सचिव एवं डीजीपी द्वारा पुलिस मेडल एवं प्रशस्ति पत्र तथा अभियोजन विभाग के डीजीपी, एवं कमिश्नर अपर पुलिस महानिदेशक डीआईजी डी एम द्वारा प्रशस्ति पत्र भी देकर उनके कार्य की भूरि भूरि प्रशंसा भी की है, यही नहीं उन्हें लगातार दो बार से गणतंत्र दिवस की परेड में सरकार के कैबिनेट मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण सिंह द्वारा प्रशस्ति पत्र देकर के सम्मानित किया गया है वहीं जिले की सांसद हेमा मालिनी द्वारा भी प्रशस्ति पत्र देकर उनके कार्य की प्रशंसा की गई है।
 
प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पॉक्सो न्यायालय में स्पेशल डीजीसी पद पर तैनात अलका उपमन्यु एडवोकेट ने एक फांसी की सजा घटित घटना के कोर्ट के 22 वे वर्किंग डे में दूसरी फांसी की सजा 35 दिन में और तीसरी फांसी की सजा 42 दिन में और चौथी फांसी की सजा 14 महीने में कराई है जो देशभर में अभियोजन विभाग में एक इतिहास है यही नहीं 50 से अधिक घटनाओं में अपराधियों को आजीवन की सजा अंतिम सांस तक जेल में रहने की सजा कराई तथा जो लोग पहले रिपोर्ट दर्ज करा देते हैं और फिर समझौता कर लेते हैं और कोर्ट में आकर अपने बयान से मुकर जाते हैं ऐसे ढाई सौ से अधिक केसों में 22 पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत जुर्माना आदि की सजा करा कर सरकार को लाखों का राजस्व जमा कराया है।
 
कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन मैंने हार नहीं मानी ! 
मथुरा के पॉक्सो न्यायालय में स्पेशल डीजीसी पद पर तैनात श्रीमती अलका उपमन्यु ने अपने सवा चार साल के कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसले दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने चार मामली में दोषियों को फांसी की सजा दिलवाई, जिनमें से एक फैसले को जहां उन्होंने मात्र 22 कार्य दिवसों में सुनिश्चित किया, वहीं 32 दिन में दूसरी 42 दिन में तीसरी और 14 महीने में चौथी फांसी की सजा दिलाई।
 
इसके अलावा उन्होंने 50 से अधिक मामलों में दोषियों को आजीवन कारावास की सजा दिलवाई, जिसमें यह सुनिश्चित किया गया कि वे अपनी अंतिम सास तक जेल में ही रहे। उन्होंने 250 से अधिक मामलों में, जहां पीड़ित पक्ष पहले रिपोर्ट दर्ज करवाकर समाहौता करने की कोशिश पर 22 पॉक्सो एक्ट के तहत सजा और जुर्माने को सुनिश्चित किया, जिससे सरकार को लाखों रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ। इस इंटरव्यू में उन्होंने अपने करियर, चुनौतियों और न्याय व्यवस्था से जुड़े अपने अनुभव साझा किए। 
 
सरकारी वकील अलका उपमन्यु से विशेष बातचीत, आपने वकालत के क्षेत्र में आने का फैसला कब और क्यों लिया?
जब मैंने वकालत को अपने करियर के रूप में चुनने का फैसला किया, उस समय समाज में वकालत की तुलना में बीएड (शिक्षण) की पढ़ाई को अधिक प्राथमिकता दी जाती थी। लोग सरकारी अध्यापक बनने को ज्यादा बेहतर मानते थे लेकिन मेरी रुचि हमेशा कुछ अलग और चुनौतीपूर्ण करने की रही। में समाज में न्याय दिलाने की प्रक्रिया का हिस्सा बनना चाहती थी इसलिए मैंने कानून की पढ़ाई करने का निर्णय लिया। 
 
एक महिला वकील के रूप में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा? 
वकालत का क्षेत्र पुरुष प्रधान माना जाता है और एक महिला के रूप में यहां अपनी जगह बनाना आसान नहीं था। जब मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा, तब महिलाओं को ज्यादा मौके नहीं मिलते थे। समाज में यह धारणा थी कि कठिन और गंभीर आपराधिक मामलों को पुरुष वकील ही बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं। शुरुआत में मुझे भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। 
 
आपके सबसे याददाश्त केस कौन-कौन से रहे? 
मेरे करियर के कई ऐसे केस हैं, जो बेहद चुनौतीपूर्ण और यादगार रहे। सबसे महत्वपूर्ण मामलों में चार फांसी की सजा वाले केस शामिल हैं। एक तो सबसे तेज फांसी की सजा, इस मामले में मैंने महज कोर्ट के,22 कार्य दिवस के भीतर अपराधी को फांसी की सजा दिलाई। यह मेरी अब तक की सबसे तेज और महत्वपूर्ण जीत रही, जिसके लिए मुझे डीजीपी और गृहसचिव से पुलिस मेडल प्रशस्ति पत्र और सम्मान मिला 
 
आज की न्याय व्यवस्था में सबसे बड़ी खामी क्या है और इसमें क्या सुधार होने चाहिए? 
न्याय व्यवस्था में सबसे बड़ी समस्या यह है कि कई फरियादी दबाव या लालच में आकर अपने बयान से पलट जाते हैं। जब ऐसा होता है तो अभियोजन पक्ष की पूरी मेहनत पर पानी फिर जाता है। अपराधी बच निकलते है और समाज में अपराध बढ़ता है। मैंने ऐसे 250 से अधिक मामलों में जहां फरियादी अपने बयान से पलट गए, उनके खिलाफ कार्रवाई सहित 22 पॉक्सो एक्ट के तहत सजा और आर्थिक दंड की कार्रवाई कराई है 
 
आम जनता के लिए कोई संदेश 
मैं लोगों से यही कहना चाहूंगी कि अगर कोई अपराध आपके साथ या आपके परिवार के साथ होता है तो ढरिये मत डटकर मुकदमा लड़िए। रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद किसी के दबाव में आकर अपने बयान से पीछे न हटे। न्याय पाने के लिए संघर्ष करना जरूरी है, क्योंकि अपराधी को सजा तभी मिलेगी जब पीडित मजबूती से खड़ा रहेगा। 
 
आप भविष्य में किन कानूनी लड़ाइयों पर काम करना चाहती है?
मेरा लक्ष्य यह है कि जरूरतमंदों को मुफ्त कानूनी सहायता दी जाए। मैं चाहती हूं कि गरीब और वंचित वर्ग के लोग भी कानूनी लड़ाई लड़ सकें। समाज में न्याय को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए सामाजिक कानूनी जागरुकता कार्यक्रम चलाने पर ध्यान दूंगी।
 

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