अभी राजनीति से दूर रहना था पहलवानों को

अभी राजनीति से दूर रहना था पहलवानों को

देश के शीर्ष पहलवान विनेश फोगाट और बजरंग पूनियां ने राजनीति में उतरने का फैसला शायद सही समय पर नहीं किया। ये दोनों राजनीति के दलदल में भावनात्मक रूप से उतर गए। अभी तक वे पूरे देश के खिलाड़ी थे, लेकिन अब वे एक दल के मोहरे बन गए हैं। इन दोनों की विचारधारा में कल तक राजनीति थी ही नही।  ये दोनों खेल के लिए बने थे ,राजनीति के लिए नहीं। पूरे देश को पता है कि  विनेश फोगाट हों या बजरंग पूनियां हाल के दिनों में केंद्र में सत्तारूढ़ दल की ज्यादतियों के शिकार बनाये गए।  इन दोनों ने ही नहीं बल्कि खिलाड़ियों की पूरी बिरादरी ने पिछले कुछ वर्षों में बहुत कुछ सहन किया है।

दस साल में  खिलाड़ी जितने सम्मानित हुए हैं उससे कहीं ज्यादा अपमानित हुए है।  उनका मानसिक और शारीरिक  शोषण भी खूब हुआ । इस सबके खिलाफ आवाज बुलंद करने पर इन्हें सड़कों पर आना पड़ा, अनशन करने पड़े ,पुलिस की लाठियां खाना पड़ीं और तो और ओलम्पिक खेलों में स्वर्ण पदकों से भी हाथ धोना पड़ा। इस सबके बावजूद मेरा मानना है कि विनेश और बजरंग का रास्ता ठीक नहीं है ,क्योंकि गोस्वामी तुलसीदास जी कह गए हैं कि- छूटइ मल कि मलहि के धोएँ। घृत कि पाव कोइ बारि बिलोएँ॥
अर्थात कपड़ों पर लगा मल छुड़ाने कि लिए मल से नहीं धोया जा सकता ,ठीक उसी तरह जैसे की दही को बिलोये बिना घृत नहीं मिलता।

विनेश और बजरंग   खिलाड़ी हैं और खिलाड़ी राजनीति कि खिलाड़ियों से एकदम अलग। राजनीति कि खिलाड़ियों में खेल भावना नहीं होती।  वे अदावत से खेलते हैं ,जबकि असली और विनेश -बजरंग जैसे खिलाड़ी केवल खेल भावना से खेलते हैं। राजनीति कि खेल में खेलना आसान नहीं होता ,हालाँकि विनेश और बजरंग के राजनीति में आने से पहले भी उनके जैसे अनेक खिलाड़ी अपना खेल छोड़कर राजनीति के दलदल में उतर चुके है।  संसद में हैं ,मंत्रिमंडल में हैं और उस खेल में शामिल हैं जो देश की समरसता को लगातार नुक्सान पहुंचा रहा है। खिलाड़ी किसी भी दल में रहें वे खिलाड़ी नहीं रह जाते।  वे देश कि प्रति नहीं अपने दल कि प्रति निष्ठावान हो जाते हैं। उन्हें होना पड़ता है। विनेश और बजरंग को भी यही सब करना पडेगा।

लगता है विनेश और बजरंग  राजनीति में अपने साथ हुई ज्यादतियों का बदला लेने कि लिए उतरे हैं। उन्होंने कांग्रेस को इसलिए चुना क्योंकि उनके ऊपर जो भी ज्यादतियां  हुई  हैं उनके लिए भाजपा और उसकी सरकार जिम्मेदार है।कांग्रेस ने उस बुरे समय में खिलाडियों का साथ दिया था।  मुमकिन है कि वे सही हों। मुमकिन है कि  वे सही न भी हों। लेकिन निजी तौर पर मै विनेश और बजरंग कि इस फैसले कि साथ नहीं हूँ। इन दोनों ने राजनीति में कूंदकर वही गलती की है जो इस देश कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश ,पूर्व सेनाध्यक्ष और अनेक पूर्व नौकरशाह कर चुके हैं। राजनीति में आने से पहले हर प्रोफेशनल को एक ' कूलिंग पीरियड' से गुजरना चाहिए ,ताकि उनके योगदान की शुचिता बनी रहे। राजनीति  वैसे भी पिछले एक दशक  से अदावत का ही औजार बनी हुई है। अब यदि विनेश और बजरंग भी इसमें शामिल हो जायेंगे तो उनकी पहचान क्या रहेगी?

मानव अधिकार दिवस : सभ्यता के नैतिक विवेक का दर्पण Read More मानव अधिकार दिवस : सभ्यता के नैतिक विवेक का दर्पण

लोकतंत्र में राजनीति में आने का अधिकार अनपढ़ों से लेकर पढ़े-लिखों को भी है। संभ्रांत और आपराधिक प्रवृत्ति कि लोगों को भी है ।  खिलाडियों को भी इससे नहीं रोका जा सकता । लेकिन इतना तय है कि  अब उन्हें भी आम राजनीतिज्ञों की तरह आरोपों -प्रत्यारोपण ,ईडी ,सीबीआई, गाली और गोली का सामना करना पडेगा। अब पूरा देश उनके साथ शायद ही खड़ा हो ,क्योंकि अब वे एक दल विशेष के कार्यकर्ता हैं। विनेश और बजरंग को राजनीती से लाभ होगा  या नहीं लेकिन ये तय है कि कांग्रेस को इसका फायदा जरूर होगा। कांग्रेस यदि इन दोनों खिलाडियों का इस्तेमाल चुनाव  बाद करती तो भी समझ आता ,लेकिन सबके अपने-अपने गणित हैं। महाबली खली से लेकर राजबर्द्धन सिंह तक राजनीति के दलदल में धंसे हुए हैं ,लेकिन कुछ ही लोगों को इसका लाभ मिला बाकी तो सिर्फ राजनीति कि लिए इस्तेमाल किये गए हैं।

वंदे मातरम्: अतीत की शक्ति, वर्तमान का आधार, भविष्य की प्रेरणा Read More वंदे मातरम्: अतीत की शक्ति, वर्तमान का आधार, भविष्य की प्रेरणा

खेल में खिलाड़ी अपने सतत अभ्यास से निखरता है जबकि राजनीती में निखार दूसरे रास्तों  से आता है।  विनेश और बजरंग को राजनीति में आने से पहले थोड़ी रिसर्च करना था । राजनीति  में  उतरे  तमाम  खिलाडियों  के  नाम  तो  मुझे  भी  याद  हैं। दीपा   मलिक हों या कृष्णा पुनियाँ,विजेंद्र  सिंह  हों या परगट    सिंह ,मोहम्मद  कैफ  हों या चेतन  चौहान ,कीर्ति  आजाद  हों या नवजोत  सिंह  सिद्धू ,ज्योतिर्मय  सिकदर   हों या मोहम्मद  अजहरुद्दीन ,गौतम  गंभीर हों या  असलम   शेर  खान ,सबके सब राजनीति में हासिये पर हैं। उनका जितना योगदान  खेल  के लिए  था  उतना  राजनीतi के लिए  नहीं  है।  खिलाडी   का  राजनीति  में सिर्फ  इस्तेमाल  किया  जाता  है।  या  तो  उनके  ग्लैंमर  की  वजह  से  या उनकी  जातिगत  प्रतिष्ठा  की  वजह  से। राजनीति में उतरा  एक भी खिलाड़ी नंबर एक या नंबर दो  का राजनेता  नहीं बन  पाया। जबकि खेल में सारे    नंबर खिलाड़ी खुद  हासिल  करता   आया   है।

देश के कर्मचारियों को मानसिक तनाव से मुक्त करेगा ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल’ Read More देश के कर्मचारियों को मानसिक तनाव से मुक्त करेगा ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल’

 विनेश को फ़िल्मी क्षेत्र से राजनीती में आयी कंगना रनौत के  बारे में पढ़ना चाहिए था। अपने जमाने के पहलवान और अभिनेता द्वारा सिंह के  बेटे विन्दु कि बारे में पढ़ना चाहिए था। लेकिन अब कुछ हो नहीं सकता। देर हो चुकी है।राजनीती किसी की सगी नहीं होती। न खिलाडियों की ,न संतों-महंतों की ,न आचार्यों की ,न शंकराचार्यों की। फिर भी राजनीति अस्पृश्य नहीं है ।  राजनीति में अच्छे और ईमानदार लोगों को आना चाहिए तभी राजनीति से चोरों,उच्चक्कों,डाकुओं,से बचाया जा सकता है। अच्छे लोग ही देश को बिकने से ,देश को साम्प्रदायिक और तालिबानी संहिताओं कि रस्ते पर जाने  से रोक सकते हैं। कुल मिलाकर राजनीति कि नए खिलाड़ियों कि उज्जव्वल भविष्य की शुभकामनायें।  
राकेश अचल  

About The Author

स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel