दिल्ली अस्पताल अग्निकांड जिम्मेदार कौन
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अक्सर हमारी नींद जब टूटती है जब हदसा हो जाता है। उससे पहले जिम्मेदार आराम फरमाते रहते हैं। दिल्ली के एक अस्पताल में सात नवजात जिंदा जल गए। हंगामा काटा गया और अस्पताल मालिक को हिरासत में ले लिया गया। यहां पर प्रशासन और सरकार की इतिश्री हो गई। हमारा प्रशासन किस लिए है। मोटी-मोटी तनख्वाह पाने वाले अधिकारी क्या करते रहते हैं। क्या हादसा होने के बाद ही इनकी नींद खुलती है। हम पहले से ही मानक के अनुसार कार्य क्यों नहीं करते क्यों हम केवल कागजी कार्रवाई करते रहते हैं। इन अस्पतालों की मोनीटरिंग क्यों नहीं की जाती। प्राइवेट अस्पताल बिना मकान के इतनी संख्या में खुल गये हैं जैसे परचून की दुकानें। आखिर मानक विहीन इन अस्पतालों को लाइसेंस कैसे हासिल हो जाता है।
और हादसे के बाद किस तरह इन अस्पतालों की सील टूट जाती है किसी से छिपा नहीं है। इसमें अस्पताल मालिक ही नहीं उनके ऊपर बैठे अफसर भी जिम्मेदार हैं जो कि नाममात्र को जांच की खानापूर्ति करके अपनी जेब गर्म करके चले आते हैं। ऐसे ऐसे नर्सिंग होम चल रहे हैं जिनमें मानक के अनुसार कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है बस उनको मरीजों का इंतजार रहता है। अस्पताल के असली मालिकों के पास कोई स्वस्थ्य की डिग्री नहीं होती डाक्टर सभी केस के अनुसार बाहर से बुलाए जाते हैं। अन्य समय में पूरा अस्पताल अप्रशिक्षित लोगों की देखरेख में रहता है। एक स्वीपर भी इंजेक्शन लगाना, ग्लूकोज चढ़ाना अन्य तमाम काम कर लेता है। क्यों नहीं इनकी जांच होती है। जब कोई बड़ा केस हो जाता है तो अस्पताल मालिक को हिरासत में ले लिया जाता है लेकिन उन लोगों का क्या कुसूर जिन्होंने अपने परिवारजनों को खो दिया है। आज की सरकारी व्यवस्था पर यह बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है।
हम बात कर रहे हैं दिल्ली के शाहदरा जिले के विवेक विहार स्थित बेबी केयर अस्पताल की जहां शनिवार को भीषण आग लग गई थी इस हादसे में सात नवजात शिशुओं की दर्दनाक मौत हो गई थी इस घटना में पांच अन्य घायल हुए शिशुओं का इलाज दूसरे अस्पताल में चल रहा है। पुलिस ने अस्पताल के मालिक को गिरफ्तार कर लिया है, उसके खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है। घटनाक्रम की बात करें तो चाइल्ड केयर सेंटर पहली मंजिल पर चल रहा था। शुरुआती जांच के अनुसार वहीं अस्पताल के भूतल पर अवैध तरीके से आक्सीजन के सिलेंडरों की रिफिलिंग का काम होता था। यहीं सिलेंडर में विस्फोट हुआ और आग फैल गई। एक के बाद एक करीब आठ सिलेंडर फटे। इसमें आग आसपास की दो अन्य इमारतों में भी फैल गई। यह एक बहुत बड़ी दुर्घटना है जिससे सबक लेकर हमें मंथन करना होगा। जिम्मेदार विभाग को भी इसके दायरे में लाया जाना चाहिए। जब हम एक छोटा सा काम शुरू करते हैं तो उसके लिए तमाम मानक होते हैं। हम उन मानकों को पूरा कर भी लें तो बिना लिए दिए हमें परमीशन नहीं मिलती। यहां पर जो भ्रष्टाचार होता है वही मानवता की जान से खिलवाड़ करता है।
दिल्ली हो या उत्तर प्रदेश हर रोड पर नर्सिंग होम, अस्पताल की लाइन लगी है लेकिन यहां सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। अस्पतालों की स्थिति ऐसी है यदि वहां कोई हादसा होता है तो फिर निकल कर बचना मुश्किल है। दिल्ली का यह हादसा हम सभी के लिए एक सबक है। और हमें इस पर सख्ताई करनी होगी। 100-100 गज में नर्सिंग होम चल रहे हैं। यह किस तरह मानक को पूरा करेंगे। इन नर्सिंग होम के एजेंट गांव और कस्बों में फैले रहते हैं जो यहां तक मरीजों को भेजते हैं जिनका कमीशन सैट होता है। आज हमारे देश में स्वास्थ्य व्यवस्था का मजाक बना रखा है। स्वस्थ्य विभाग में हर तरफ घोटाला ही घोटाला नजर आता है। एक डाक्टर की लिखी दवा या तो उसके बगल के मेडीकल पर मिलेगी या फिर उनके नर्सिंग होम में। वह दवा पास के किसी दूसरे मेडिकल स्टोर पर नहीं मिल सकती क्योंकि इसके लिए उन्हें मोटा कमीशन मिलता है। सरकारी अस्पतालों में भी आपरेशन बिना पैसा दिये नहीं हो रहे हैं।
आपरेशन की मेडिसिन तो स्वयं मरीज़ को लानी ही है इसके अतिरिक्त भी सर्जन को हमें अलग से पैसा देना पड़ता है। यहां तक कि भारत सरकार की एक बड़ी योजना आयुष्मान कार्ड धारकों को भी इलाज कराने से पहले कई अन्य मदों के लिए पैसा देना होता है। यह भ्रष्टाचार नहीं तो क्या है। बिना बीफार्मा, डीफार्मा किये लोग मेडिकल स्टोर चला रहे हैं। बस किसी बीफार्मा, डीफार्मा वालों से किराए पर उनकी डिग्री डिप्लोमा ले लिया और उनको चलाने का काम शुरू हो गया। यदि जांच की जाए तो 75 फीसदी ऐसे मेडीकल स्टोर निकलेंगे जहां कोई फार्मेसिस्ट नहीं मिलेगा। जिनके नाम से मेडीकल स्टोर चल रहे हैं वह कुछ अन्य काम कर रहे हैं और अपना डिप्लोमा या डिग्री किराए पर उठाए हुए हैं। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं है। यह सभी लाइसेंस सीएमओ आफिस से बनते हैं जिसमें लंबी घूस चलती है। लेकिन हमारा स्वास्थ्य मंत्रालय सब कुछ जानते हुए भी खामोश है।
बीएएमएस की डिग्री हासिल किए हुए आयुर्वेद के डाक्टर भी धड़ल्ले से नर्सिंग होम चला रहे हैं और उनके यहां ओपीडी, आप्रेशन, एनआईसीयू, तथा आईसीयू की सारी व्यवस्थाएं उपलब्ध हैं। कभी कभी सर्जन के न होने पर नान सर्जन डाक्टर भी सर्जरी कर देते हैं। मामला जब फंसता है जब किसी मरीज की हालत बिगड़ती है या उसकी मृत्यु हो जाती है। तब डाक्टर को हिरासत में लिया जाता है और अस्पताल सील कर दिया जाता है लेकिन कुछ समय बाद उसी अस्पताल की सील खुल जाती है और फिर पहले की तरह ही वह चलने लगते हैं। हमारे देश की बहुत सी आबादी अभी भी ऐसी है कि वह यह नहीं समझती कि हम जिस डाक्टर से इलाज करा रहे हैं क्या यह इस मर्ज के लिए उपर्युक्त है।
स्वास्थ्य विभाग एक बहुत ही महत्वपूर्ण विभाग है यहां पर लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जा सकती है। एक सीएमओ के अंडर में जिले की सारी चिकित्सा व्यवस्थाएं आती हैं। लेकिन यदि पैसा खर्च कर दिया जाए तो आपको किसी चीज की अनुमति बिना मानक के ही मिल जाती है। क्या सरकार और जिला प्रशासन इस पर ध्यान देगा। या जनता इसी तरह इन हादसों का शिकार होती रहेगी। किसी भी देश की सबसे बड़ी आवश्यकताएं स्वास्थ्य, शिक्षा और और रोजगार होती हैं। और सबसे ज्यादा कमियां स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग में ही देखने को मिलती हैं। इन पर सरकार भी कोई अंकुश लगाने में लाचार नजर आती है।
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