मैं तो बचपन से संघी था, फिर आरएसएस में लौटने को तैयारः जस्टिस दाश।
मुझ पर इस संगठन का बहुत एहसान है। मैं बचपन से लेकर जवानी तक वहां रहा।
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मैंने साहसी, ईमानदार होना, दूसरों के लिए समान नजरिया रखना सबसे ऊपर, सीखा है-।
क्या हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का कोई माननीय जज अगर कल यह स्वीकार कर ले कि वो मदरसे से पढ़ा है और मुस्लिम लीगी रहा है या जन्मजात कांग्रेसी रहा है या नक्सली रहा है और सेवानिवृत्ति के बाद पुन: अपने मूल संगठन में लौटने के लिए तैयार है तो देश में क्या तूफान नहीं आ जाएगा?कलकत्ता हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस चित्त रंजन दाश ने सोमवार को कहा कि उनके व्यक्तित्व को निखारने, साहस और देशभक्ति पैदा करने का श्रेय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को जाता है। क्या जस्टिस चित्त रंजन दाश द्वारा अपने कार्यकाल में राजनितिक रूप से संवेदनशील फैसलों की न्यायपालिका द्वारा समीक्षा की जाएगी?
जस्टिस चित्त रंजन दाश ने कहा कि वह तो बचपन से ही आरएसएस से जुड़ गए थे। जज साहब ने फरमाया कि आज, मुझे सच्चाई बतानी चाहिए।
काम करते हैं वहां देशभक्ति की भावना और काम के प्रति प्रतिबद्धता होनी चाहिए। मैं यह स्वीकार करता हूं कि मैं आरएसएस का सदस्य था और हूं। हालांकि जस्टिस दाश ने यह भी कहा कि जज बनने के बाद उन्होंने खुद को आरएसएस से अलग कर लिया और सभी मामलों और मुकदमों को निष्पक्षता से निपटाया, चाहे वे किसी भी पार्टी से जुड़े रहे हों।
जस्टिस दाश ने विस्तार से संघ से अपने रिश्तों के बारे में कहा- "न्यायिक सेवा में आने के बाद लगभग 37 वर्षों तक संगठन (आरएसएस) से दूरी बना ली। मैंने कभी भी अपने करियर में तरक्की पाने के लिए अपने संगठन की सदस्यता का इस्तेमाल नहीं किया, क्योंकि यह हमारे सिद्धांत के खिलाफ है। मैंने सभी के साथ समान व्यवहार किया है चाहे वह कम्युनिस्ट शख्स रहा हो, चाहे वह भाजपा या कांग्रेस या यहां तक कि टीएमसी का शख्स हो। मेरे मन में किसी के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं था। मेरे सामने दो सिद्धांत थे: एक था सहानुभूति और दूसरा था इंसाफ के लिए कानून को झुकाया जा सकता है, लेकिन इंसाफ को कानून के हिसाब से नहीं बनाया जा सकता है।"
जस्टिस दाश तब भी विवाद के केंद्र में थे, जब वह उस पीठ का हिस्सा थे, जिसने किशोर लड़कियों के लिए 'अपनी यौन इच्छाओं को नियंत्रित करने' के लिए कुछ आचार संहिता वाले फैसले दिए। इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने विचार किया, जिसने टिप्पणियों पर गंभीर आपत्ति जताई। ओडिशा के सोनेपुर में 1962 में पैदा हुए जस्टिस दाश 1986 में वकील बने। 1999 में, उन्होंने ओडिशा जूडिशल सर्विसेज में प्रवेश किया और राज्य के विभिन्न हिस्सों में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में कार्य किया। फिर उन्हें उड़ीसा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (प्रशासन) के रूप में नियुक्त किया गया। 10 अक्टूबर, 2009 को उन्हें उड़ीसा हाईकोर्ट के अतिरिक्त जज के रूप में प्रमोट किया गया और 20 जून, 2022 को कलकत्ता हाईकोर्ट में नियुक्त कर दिया गया जस्टिस दाश ने कहा कि "मैंने दो सिद्धांतों का जीवन में हमेशा पालन किया है।
अगर वे मुझे किसी भी मदद के लिए बुलाते हैं, या किसी भी काम के लिए बुलाते हैं। वो काम मैं करने में सक्षम हूं तो मदद करूंगा। चूँकि मैंने अपने जीवन में कुछ भी गलत नहीं किया है, इसलिए मुझमें यह कहने का साहस है कि मैं संगठन से हूँ, क्योंकि गलत नहीं है अगर मैं एक अच्छा इंसान हूं, तो मैं किसी बुरे संगठन से नहीं जुड़ सकता।''
जस्टिस दाश से पहले एक और जज साहब ने अपनी प्रतिबद्धता भाजपा से जताई थी। हाल ही में कलकत्ता हाईकोर्ट के एक अन्य जज, जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने भाजपा में शामिल होने के लिए पद से इस्तीफा दे दिया था। वो पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिले के तमलुक लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव भी लड़ रहे हैं। यह जज तो सेवा में रहते हुए ही भाजपाई बन बैठे और फिर इस्तीफा दिया। इनके तमाम फैसलों पर पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी सवाल उठाती रही है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे रंजन गोगोई को भी रिटायरमेंट के बाद भाजपा ने राज्यसभा का सांसद पद एक तरह से नवाजा था। ये वही जस्टिस गोगोई हैं जिनकी अगुआई वाली बेंच ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनाने के लिए जमीन सरकार को सौंपी थी। यानी आरएसएस और भाजपा का राम मंदिर का सपना जस्टिस गोगोई की वजह से पूरा हुआ था। हालांकि अपने फैसले में जस्टिस गोगोई की बेंच ने लिखा था कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गलत गिराया गया। लेकिन चूंकि करोड़ों लोगों की आस्था का सवाल है तो मस्जिद की जगह मंदिर बनाने के लिए जमीन सरकार को सौंपी जाती है।
सरकार एक ट्रस्ट बनाकर मंदिर बनाने की जिम्मेदारी ट्रस्ट को सौंपे। उसके बाद जो हुआ वो सभी के सामने है।
कुल मिलाकर न्यायपालिका पूरी तरह पाक साफ होने का दावा नहीं कर सकती। लेकिन अगर कल को कोई जज यह स्वीकार कर ले कि वो मदरसे से पढ़ा है और मुस्लिम लीगी रहा है या नाक्सली रहा है तो देश में तूफान आ जाएगा। यही चित्तरंजन दाश अगर मुसलमान नाम वाले होते और अपनी प्रतिबद्धता मुस्लिम लीग से बताते तो उनके खिलाफ कई राष्ट्रवादी एफआईआर करा देते और कोई ताज्जुब नहीं कि पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेती।
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