परमात्मा की प्राप्ति मात्र प्रेम से सम्भव है आडम्बर से नही
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गोलाबाज़ार गोरखपुर ।
नगर पंचायत गोला के राम जानकी मंदिर के राम लीला मैदान में सप्त दिवसीय लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के दौरान चल रही श्री राम कथा में तीसरे दिन कथा का रसपान कराते हुए श्री मती गायत्री देवी मां ने कहा कि पारस लोहे को सोना बना देता है, संत अपने संपर्क में आने वाले लोगों को संत बना देते हैं । परमात्मा को केवल प्रेम से पाया जा सकता है। बाहरी आडम्बर से नहीं। भगवान ने राजा दशरथ के घर मात्र प्रेम के वशीभूत होकर ही जन्म लिया।
आगे उन्होंने कहा कि कामी का प्रेम क्षणिक होता है। लोभी का प्रेम लाभ मिलने के साथ बढता जाता है। हमें भगवान से लोभी की तरह प्रेम करना चाहिए तब कहीं परमात्मा मिलते हैं। प्रेम संसार को ना दो परमात्मा को दो। जगदीश नहीं हैं तो जगत नहीं है।जो सारे जगत को विश्राम देता है वही राम है।
आगे उन्होंने कहा कि संसार में लोग दिन रात सोए रहते हैं। जागने का प्रयास नहीं करते । सोए हैं तो किस नशा में मोह की नशा में सोए हैं । मोह की नशा एसी होती है के व्यक्ति को जीव को जागने नहीं देती है।इस मोह की नशा व मोह की दशा को तोड़ना होगा। आप के आगे दो रास्ता जाता है एक संसार की ओर जाता है। दूसरा भगवान की ओर जाता है। आप किस रास्ते जाना चाहते हैं। वह रास्ता आप को चुनना होगा। आगे उन्होंने कहा कि एक बार भगवान शंकर जी सती को कथा सुना रहे थे। सती का मन कथा में नहीं लग रहा था। वह इधर उधर देख रही थी ।
जब इनकी नजर आकाश की तरफ गई तो देखती कि सारे देवता अपनी पत्नियों के साथ सज धज कर कहीं जा रहे हैं। तब सती ने भोले से पूछा कि यह लोग कहां जा रहे हैं । भोले शंकर जी ने कहा कि तुम्हारे पिता के यज्ञ में जा रहे हैं। उस यज्ञ में शंकर जी को आमंत्रित नहीं किया गया था। सती भी पिता के यहां जाने की जिद करने लगी। तब महादेव जी ने कहा कि विना बुलाए मायके नहीं जाना चाहिए।लेकिन सती पिता के यहां जाने की जिद करने लगी। तब महादेव ने कहा कि जाने कि इच्छा है तो बिलंब किस बात की जाओ।
महादेव ने कहा कि जो बात न माने उसको अपने हाल पर छोड़ देना चाहिए। सती मायके गई। वहां उनका पिता ने कोई सम्मान नहीं किया। उधर यज्ञ में पति का अपमान देख कर यज्ञ की आग में कूद कर जल मारी। इस बात की जानकारी मिली महादेव जी तो वह अपने गणों के साथ जाकर यज्ञ का विध्वंश कर डाला। सती के पिता राजा दक्ष का सिर काट डाला ।
बाद में लोगों के अनुनय विनय पर उनके सर पर बकरे का सिर ले आकार जोड़ दिया गया।
कथा के अंत में आयोजक महंत राजेन्द्र दास ने कथा व्यास पीठ की आरती उतारी।
इस अवसर पर ,अमित दास,अशोक वर्मा,प्रदीप वर्मा,गणेश वर्मा, जाय सवाल, अरुण तिवारी,मुनील सिंह सहित अन्य लोगों ने कथा का रसपान किया।
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