बैशाखी : सिख इतिहास का सुनहरा दिन
इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब-जब देश या समाज पर जुल्म हुआ है तो जुल्म का विनाश करने के लिये इस धरती पर अवतार ने जन्म लिया। श्रीकृष्ण भगवान ने कंस का विनाश करने के लिए द्वापर युग में जन्म लिया। श्री कृष्ण भगवान ने गीता में लिखा है:
'यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानधर्मस्य तदाऽऽत्मनं सृजाम्यहम ॥'
श्री गुरु गोविंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु ने विचत्र नाटक में लिखा है:
'हम एह काज जगत में आये-धर्म हेतु गुरुदेव पठायें।
जहां-जहां तुम बिखरों दृष्ट दुख्यिन पकड़ पछारो ॥'
श्री गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर सन् 1666 को माता गुजरी के गर्भ (पिता जी गुरु तेग बहादुर) पटना में हुआ था। उस समय मुगलवंश का अंतिम बादशाह औरंगजेब का शासन था। श्री गुरु गोविंद सिंह एक प्रतिभा संपन्न वीर, योद्धा, श्रेष्ठ कवि उच्च कोटि के साहित्यकार एवं समाज सुधारक थे। आपने अपना साहित्य केंद्र आनंदपुर साहिब बनाया था। इनके दरबार में 152 कवि तथा 36 लेखक थे जो निरंतर साहित्य कार्य करते थे। गुरु जी ने प्राचीन ग्रंथों जैसे- महाभारत, गीता, पुराणों आदि को अनुवादित करवाया। श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध खालसा स्थापना का संकल्प बनाया। इस महान कार्य की स्थापना 30 मार्च सन् 1699 ई. को आनंदपुर साहिब में हुई। उसी दिन गुरु साहब ने खालसे की स्थापना की। यह ऐसी घटना है जिसने भारत वर्ष में एक नई प्रजाति को जन्म दिया। श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने बैसाखी के दिन आनंदपुर साहिब (पंजाब) में एक बहुत बड़ा समूह एकत्र किया, जिसमें भारत के सभी राज्यों के लोग इस समारोह में उपस्थित हुये। गुरु जी ने बैसाखी के दिन सिखों की परीक्षा ली। इस जनसमूह में हजारों लोग उपस्थित थे। गुरु जी शस्त्र धारी कपड़े पहने हुये नंगी तलवार लेकर उपस्थित हुये और ललकार कर कहा कि धर्म के खातिर मुझे एक व्यक्ति के बलिदान की आवश्यकता है। इस प्रकार की घटना को देखते हुये काफी लोग समारोह से भागने लगे।
परंतु गुरु का सिख भाई दयाराम लाहौर निवासी आया और अपने आपको गुरु जी के सम्मुख कर दिया। इसके बाद दूसरे व्यक्ति को - बुलाया जो दिल्ली निवासी जाट धर्मदास उपस्थित - हुआ। इसके बाद तीसरे व्यक्ति जो छोटी जाति का -. भाई हिम्मत राय तथा चौथे को बुलाया जो भाई मोहकम चंद तथा फिर पांचवां जो भाई साहिब चंद जी आये। गुरु जी सभी को बारी-बारी अपने खेमे में ले गये और खून से लथपथ तलवार दिखाते हुये सिर मांगे इस दृश्य को देखते हुये काफी लोग - समारोह से भागने लगे। जब माता गुजरी को इस घटना की खबर मिली तो वह घबरा गयी, को दरअसल गुरु जी ने अपने खेमे में बकरे बांधे हुये न थे और बकरों का ही बध किया गया था। इसी प्रकार गुरु जी ने आज बैसाखी के दिन इन पांच श्रद्धालुओं को अमृत जल पिलाया और पांच प्यारे के नाम से खिताब किया। जो कि सिख इतिहास न में एक महत्वपूर्ण घटना है। पांच प्यारे को अमृत पिलाकर सभी को सिंह अर्थात शेर का खिताब दिया तथा मुर्दा कौम को सिंह अर्थात शेर के रूप में परिवर्तन किया और स्वयं गुरु जी अपना नाम गोविंद राय से परिवर्तन करके 'गुरु गोविंद सिंह' का नाम रखा और कहा कि आज से सभी सिख अपने नाम के आगे सिंह रखेंगे और कहा कि-
वाह-वाह गोविंद सिंह आपे गुरु चेला, खालसा मेरो रूप है, खास खालसे महि हरू डरो-निवास। श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने आज ही के दिन सिख धर्म खालसा पंथ के अनुयाइयों को पांच चीजें रखने का संकल्प किया जो पांच 'क' है- केस, कड़ा, कंघा, कृपाण, कच्छ। यह खालसा के लिये आवश्यक चिह्न हैं। आज ही के दिन गुरु जी ने कहा कि सिख केस नहीं कटायेंगे और सिख स्त्रियों को बुरी नजर से नहीं देखेंगे। शस्त्र धारण करेंगे तथा नशा नहीं करेंगे और तम्बाकू नहीं खायेंगे। आज ही के दिन गुरु गोविंद सिंह जी ने स्त्रियों को 'कौर' से सुशोभित किया तथा सिख स्त्रियों के नाम पे कौर लगाना जरूरी हो गया। श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने जुल्म को खत्म करने के लिये तलवार उठायी थी, उन्होंने अपने जफरनामे में लिखा है कि-
'चूकार अज़ हमा हीलते दर गुज़शत। हलाल अस्त बुरदन व शमशीर दस्त ॥' अर्थात जब मनुष्य सभी शक्तियों से फेल हो जाता है तो अपनी रक्षा के लिये तलवार उठाना जुर्म नहीं। जिस प्रकार एक विद्यार्थी और ग्रेजुएट में अंतर होता है, ठीक उसी प्रकार एक सिख व खालसे में अंतर है। सिख एक विद्यार्थी है, जब वह खालसे में प्रवेश कर जाता है तब वह ग्रेजुएट कहलाता है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि खालसा की स्थापना श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने 33 वर्ष की आयु में की। हजरत ईसा ने खुदा की बादशाहत तथा खुदा का पुत्र होने का दावा 39 वर्ष में किया 7, तथा महात्मा बुद्ध को 35 वर्ष में ज्ञान प्राप्त हुआ। ये एण्ड मेनु कैलेन्डर का कहना है कि गुरु जी एक इतिहासकार, स्टेट्समैन तथा एक मनोवैज्ञानिक थे। व गुरु जी महान त्यागी, नम्र विद्वान, कवि, देशभक्त, कुर्बानी के पुंज तपस्वी थे।
संसार के इतिहास में केवल सिख धर्म ही अपना जन्म दिन खालसे की स्थापना के रूप में बैसाखी के दिन सारे संसार में मनाया जाता है जो सिख धर्म में एक 'सुनहरा दिन' कहलाता है।
प्रस्तुति-रविंदर पाल सिंह एडवोकेट
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