सीसामऊ में क्या सपा का किला ध्वस्त कर पाएगी भाजपा ?
2012 से लगातार यहां से चुनाव जीते हैं सपा के इरफान सोलंकी, भाजपा के सुरेश अवस्थी के लिए अन्य जातियों का वोट महत्वपूर्ण
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कानपुर। प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों में से एक कानपुर की सीसामऊ विधानसभा सीट पर भी 13 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। जातिगत राजनीति के आधार पर मुस्लिम बाहुल्य सीट पर मुस्लिम मतदाताओं के बाद सबसे ज्यादा संख्या ब्रह्मण मतदाताओं की है और इसीलिए सपा ने मुस्लिम और भाजपा ने ब्रह्मण प्रत्याशी पर भरोसा किया है। कोई कितना भी कहे कि हम धर्म और जाति की राजनीति नहीं करते लेकिन यह बात उस समय पीछे रह जाती है जब पार्टियां क्षेत्र के धर्म और जाति के मतदाताओं की संख्या देखकर प्रत्याशी तय करतीं हैं।
कानपुर की सीसामऊ विधानसभा सीट 2012 में नये परिसीमन में अस्तित्व में आई थी और तब से इस सीट पर समाजवादी पार्टी का अधिकार रहा है। सपा के इरफान सोलंकी तभी से लगातार यहां से जीतते आ रहे हैं। इरफान को आगजनी तथा कुछ अन्य मामलों में अदालत द्वारा 7 वर्ष की सजा दिए जाने के बाद यह सीट रिक्त हुई है। सपा ने इरफान की ही पत्नी नसीम सोलंकी को चुनाव मैदान में उतारा है। नसीम ने राजनीति को बाहर रहकर देखा है। लेकिन अभी वह राजनीति के अंदर नई हैं। यह बात जरूर है कि सीसामऊ में नसीम सोलंकी के प्रति बेहद सहानुभूति है जिसका मुकाबला करना भारतीय जनता पार्टी के लिए आसान नहीं होगा।

2017 में सुरेश अवस्थी की हार और इरफान की जीत में मात्र 6000 वोटों का फासला था। और भारतीय जनता पार्टी ने इसीलिए सुरेश अवस्थी पर भरोसा जताया है कि शायद वह इस अंतर को पाटने में सफल हो सकें। जातिगत आंकड़े तो यही बताते हैं कि यदि भारतीय जनता पार्टी कुछ दलित वोटों या कुछ अन्य वोटरों को रिझाने में कामयाब रही तो मामला उलट भी सकता है। लेकिन फिलहाल की स्थिति में भाजपा को काफी मेहनत करनी होगी। सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक मुस्लिम मतदाता हैं। वहीं, दूसरे नंबर पर ब्राह्मण वोटर आते हैं। इनके अलावा अन्य जातियों और वर्ग के मतदाता हैं। लेकिन सबका मिजाज एक जैसा है। विधानसभा में ज्यादातर लोग सपा को वोट देते रहे हैं और लोकसभा में भाजपा को। उपचुनाव में वोटरों का रुख क्या रहता है, यह देखने वाली बात होगी। इस बार भाजपा ने ब्राह्मण वोटरों को साधने की कोशिश की है। वहीं, बसपा अपना दलित वोट बैंक साधने में लगी है।
एक अनुमान के अनुसार क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 1 लाख से ऊपर है। इसके बाद ब्राह्मण वोटर दूसरे नंबर पर करीब 70 हजार हैं। तीसरे स्थान पर दलित वोटर आते हैं और उनकी संख्या करीब 60 हजार है। इनके अलावा कायस्थ 26 हजार, सिंधी एवं पंजाबी 6 हजार, क्षत्रिय 6 हजार और अन्य पिछड़ा वर्ग 12,411 वोटर बड़ी भूमिका निभाते हैं। दलित वोटों पर सबकी नजर है। पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने काफी कुछ दलित वोटरों को अपने पक्ष में किया था। लेकिन क्या इस बार भारतीय जनता पार्टी ऐसा कुछ कर सकती है यह चुनाव परिणाम में ही पता चल सकता है। लेकिन यह निश्चित है कि मुस्लिम और ब्रह्मण वोटों के अलावा अन्य वोटरों की महत्ता इसमें बढ़ गई है।
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