सी.एम बदलो चुनाव जीतो भाजपाई फार्मूला

सी.एम बदलो चुनाव जीतो भाजपाई फार्मूला

स्वतंत्र प्रभात 
(नीरज शर्मा'भरथल') 
मंगलवार का दिन हरियाणा की सियासत में उथल-पुथल भरा रहा। 12 मार्च को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने मंत्रीमंडल सहित इस्तीफा दे दिया। खट्टर ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के साथ-साथ विधायक की सीट से भी इस्तीफा दे दिया है। इस घटनाक्रम के बाद भाजपा विधायकों की बैठक में नायाब सिंह सैनी को विधायक दल का नेता चुना गया और 5 निर्दलीय विधायकों व हरियाणा लोकहित पार्टी के एकमात्र विधायक गोपाल कांडा के समर्थन के साथ सरकार बनाने का दावा राज्यपाल के समक्ष पेश किया गया।
 
राज्यपाल ने नायाब को सरकार बनाने को आमंत्रित किया और शाम होते होते उन्हे मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। चुनाव से पहले राज्यों में मुख्यमंत्री बदलना बीजेपी की परखी हुई रणनीति है। इसकी शुरुआत भाजपा ने गुजरात से की जब 2022 के विधानसभा चुनावों की तैयारी करते हुए 2021 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी से इस्तीफा लिया गया। विजय रूपाणी के इस्तीफे के बाद पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया। 2017 में जब बीजेपी की इस राज्य में सरकार बनी तो विजय रुपानी सीएम बने।
 
रुपानी का कार्यकाल दिसंबर 2022 में खत्म हो रहा था। लेकिन बीजेपी ने विधानसभा चुनाव से पहले सितंबर 2021 में ही नेतृत्व में बदलाव कर दिया। बीजेपी का ये प्रयोग सफल रहा। दिसंबर 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बंपर कामयाबी मिली और गुजरात में एक बार फिर से भाजपा की सरकार बनी। सीएम चेहरा बदलकर सत्ता में वापसी का बीजेपी का सफल प्रयोग उत्तराखंड में भी देखने को मिला। चुनावों से पहले उत्तराखंड में भाजपा जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी लहर से जूझ रही थी। इसकी काट के लिए पार्टी ने दो बार राज्य में अपने मुख्यमंत्री बदले।
 
2017 में बीजेपी जब उत्तराखंड में चुनाव जीती तो त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम बनाया गया। 2021 आते-आते रावत के खिलाफ विधायकों का असंतोष बढ़ गया। लिहाजा आलाकमान ने रावत को सीएम पद से हटा दिया और 10 मार्च 2021 को राज्य की बागडोर तीरथ सिंह रावत को सौंप दी गई। तीरथ सिंह रावत सत्ता, जनता और प्रशासन पर छाप छोड़ने में सफल होते नहीं दिख रहे थे। पार्टी ने 4 महीने बाद सीएम पद से उनकी छुट्टी हो गई। उसके बाद 4 जुलाई 2021 को पुष्कर सिंह धामी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। मार्च 2022 में बीजेपी पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में चुनावी जंग में उतरी और जीत हासिल की।
 
इसी फार्मूले का इस्तेमाल कर भाजपा त्रिपुरा में दूसरी बार सत्ता पर काबिज हुई। 2018 में लेफ्ट का किला ध्वस्तकर बीजेपी ने पहली बार त्रिपुरा में कमल खिलाया। इस कामयाबी के बाद बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी बिपल्ब देव को। बिपल्ब देब का कार्यकाल 2023 में खत्म होने वाला था। लेकिन विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले बीजेपी ने राज्य में नेतृत्व परिवर्तन कर दिया। बीजेपी ने बिपल्ब दे को संगठन में भेज दिया और सीएम की कुर्सी पर परमाणिक साहा को बिठा दिया। बीजेपी का ये प्रयोग कामयाब रहा और पार्टी ने यहां की सत्ता एक बार फिर से अपने नाम कर ली।
 
निश्चित तौर पर राजनिति में कोई भी फार्मूला जीत की 100 प्रतिशत गारण्टी नही होता। भाजपा का यह फार्मूला कर्नाटक में फेल भी हो चुका है। कर्नाटक में 2023 के  विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ बीजेपी को बड़ी हार मिली थी। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से ठीक डेढ़ साल पहले बीजेपी ने सीएम फेस बदला था। बीजेपी ने जुलाई 2021 में कर्नाटक के तत्कालीन सीएम बीएस येदियुरप्पा को पद से हटाया और सीएम पद की जिम्मेदारी बसवराज बोम्मई को सौंप दी। दक्षिण के दुर्ग को बचाने के लिए बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने जोर-शोर से कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिला।
 
कांग्रेस ने बोम्मई पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और इसे बड़ा मुद्दा बना दिया। इस बीच, येदियुरप्पा समेत अन्य बड़े नेताओं के नाराजगी की खबरें भी आती रहीं। बीजेपी यहां ना एंटी इनकंबेंसी की काट ढूंढ़ सकी और नाराज नेताओं को मनाने में सफल हो पाई। इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिला और जीत हासिल की। भाजपा ने एक बार खराब हालातों को भांपते हुए लोकसभा और हरियाणा विधानसभा चुनावों से पहले राज्य के मुख्यमंत्री को बदल खिसकते जनाधार को संभालने की कोशिश की है। खट्टर के इस्तीफे से एक दिन पहले भाजपा के सांसद बृजेंद्र सिंह का कांग्रेस में जाना पार्टी को एक जबरदस्त झटका था। बृजेंद्र सिंह केंद्रीय मंत्री चौधरी विरेन्द्र सिंह के बेटे हैं।
 
चौधरी विरेन्द्र हरियाणा राजनीति में जाटों के एक बड़े नेता के तौर पर जाने जाते हैं। विरेन्द्र सिंह सर छोटूराम के नाती हैं और भाजपा में आने से पहले वो कांग्रेस का बड़ा चेहरा माने जाते थे। उनकी नाराजगी अजय चौटाला की जेजेपी से गठबंधन को लेकर थी। खट्टर सरकार में अजय के बेटे दुष्यंत चौटाला उपमुख्यमंत्री थे। वीरेन्द्र सिंह सार्वजनिक मंचों से इसके खिलाफ खुलेआम बोलते भी रहे हैं। चौधरी विरेन्द्र और चौटाला परिवार की प्रतिद्वंदिता दशकों पुरानी है।
 
2019 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी दुष्यंत चौटाला चौधरी विरेन्द्र की पत्नी प्रेमलता को उचाना सीट से हरा विधानसभा पहुंचा था। भाजपा में किसी बड़े जाट नेता का अभाव चौधरी विरेन्द्र को भाजपा के लिए खास बना देता है। चुनावों से पहले सरकार को बदल  प्रदेश में गिरी इमेज सुधारने, किसान आंदोलन के दौरान खट्टर व दुष्यंत का किसानों के प्रति व्यवहार और जेजेपी से छुटकारा पाने के लिए जो निशाना भाजपा ने लगाया है देखना होगा यह बदलाव चुनावों पर क्या असर डालता है।

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