दलबदल के लिए मुफ़ीद है छोटे दलों का गठन
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स्वतंत्र प्रभात
जितेन्द्र सिंह पत्रकार
जो नेता अपने बल पर एक विधानसभा का चुनाव जीत पाने में असमर्थ है वह भी अपनी पार्टियों का गठन कर रहे हैं। दरअसल वर्तमान समय में बहुत से ऐसे नेता तैयार हो गये हैं जो अपने फायदे के लिए इधर से उधर होते रहते हैं। लेकिन जब वह अकेले पार्टी बदलते हैं तो उन्हें अपनी सांसदी और विधायकी से त्यागपत्र देना पड़ता है। क्यों कि यह दलबदल कानून के अंतर्गत आता है। इन नेताओं ने इसका भी एक तोड़ निकाल लिया है और वह है अपनी पार्टी का गठन। इसके अंतर्गत वह पार्टियों से गठबंधन करते हैं और जहां नुकसान दिखाई देता है वहां गठबंधन खत्म कर दूसरे दल से गठबंधन कर लेते हैं और उनपर दलबदल कानून भी लागू नहीं होता है। और उनका काम चलता रहता है। इसका एक उदाहरण अभी हाल ही में आया जब उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव से पूर्व पूर्वांचल के एक नेता दारा सिंह चौहान भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर समाजवादी पार्टी में आ गये थे। लेकिन समाजवादी पार्टी की सरकार नहीं बन सकी तो उनकी विचारधारा बदलने को बेताब दिखने लगी और वह समाजवादी पार्टी से त्यागपत्र देकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। चूंकि वह सपा के टिकट पर चुनाव जीते थे और भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की तो उनपर दलबदल कानून लागू हुआ और उनकी विधायकी चली गई। फिर घोसी उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया लेकिन वह चुनाव हार गए। यह उनके लिए बहुत ही कठिन समय साबित हुआ। न इधर के रहे और न ही उधर के। ऐसे में यदि उनकी स्वयं की पार्टी होती तो वह आराम से सपा से गठबंधन खत्म कर एनडीए के साथ जा सकते थे और उनकी विधायकी भी बरकरार रहती। जैसा कि ओम् प्रकाश राजभर करते हैं। यह नेताओं ने एक नया तरीका निकाल लिया है।
अभी दो दिन पहले ही समाजवादी पार्टी से विधायक स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपनी पार्टी बनाने की घोषणा कर दी है। चूंकि वह समाजवादी पार्टी के विधायक थे और उनका सत्ता प्रेम उमड़ रहा था लेकिन यदि वह दलबदल करते तो उनकी विधायकी चली जाती। सपा के मुखिया अखिलेश यादव और हाल ही में राष्ट्रीय महासचिव का पद छोड़ने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य के बीच रार बढ़ती जा रही थी। अखिलेश ने जैसे ही सोमवार को कहा कि लाभ लेकर सब चले जाते हैं उसके चंद मिनटों के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने पलटवार करते हुए कहा कि ऐसे लगता है जैसे केंद्र व राज्य में सपा की सरकार है और वो मुझे लाभ दे रहे हैं। रही बात उनके सम्मान की तो विधान परिषद की सदस्यता जल्द छोड़ दूंगा। इस बीच, स्वामी प्रसाद मौर्य ने नई पार्टी बनाने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि तालकटोरा स्टेडियम नई दिल्ली में 22 फरवरी को प्रतिनिधि कार्यकर्ता सम्मेलन करेंगे।
इसमें वह सपा को छोड़ने का ऐलान करेंगे और चुनावी रणनीति का खुलासा करेंगे। उत्तर प्रदेश में दलबदल सबसे ज्यादा होता है और यही कारण है कि छोटी-छोटी पार्टियों की संख्या यहां सबसे ज्यादा है। ये पार्टियां सिर्फ लाभ कमाना चाहती हैं इनको किसी विचारधारा से कोई मतलब नहीं है। प्रदेश में आरएलडी, अपना दल सोनेलाल, अपना दल कमेराबादी, महान दल, निषाद पार्टी, सुभासपा जैसी तमाम छोटी-छोटी पार्टियां पहले से फल फूल रहीं थीं। इस बीच स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी अपनी अलग पार्टी बनाने की घोषणा कर दी है। किसी पार्टी के विधायक रहने से ज्यादा अपनी पार्टी का गठबंधन करके चुनाव लड़ने में इनको ज्यादा सहूलियत दिखाई देती है। और यह बड़े ही आराम से दलबदल कर सकते हैं।
इस तरह की छोटी पार्टियां देश के अन्य राज्यों में भी हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है। इसका मुख्य कारण यह है कि उत्तर प्रदेश में जातिगत राजनीति का बोलबाला है और तमाम जातियों के नेताओं ने जिनकी जनसंख्या ज्यादा है अपनी अपनी पार्टी खड़ी कर दीं हैं। बिहार की बात की जाए तो नितीश कुमार से बड़ा उदाहरण और कुछ हो ही नहीं सकता। जो लगातार गठबंधन बदलते रहते हैं। बिहार में लोकजनशक्ति पार्टी के दो धड़े हैं। इसके अलावा जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवाम पार्टी जो अपने राजनैतिक लाभ के लिए केवल सत्ता के करीब बने रहना चाहते हैं। एक चर्चा महाराष्ट्र में भी चल रही है जहां राज ठाकरे अपनी पार्टी का गठबंधन एनडीए से करना चाहते हैं। लेकिन महाराष्ट्र में इस समय ऐसा पेंच फंसा है कि एनडीए की सरकार तो बनेगी लेकिन सत्ता की चाबी सहयोगी दल अपने हाथों में रखना चाहते हैं और यही स्थिति लगभग बिहार में है भले ही एनडीए की सरकार बनी रहे लेकिन मुख्यमंत्री नितीश कुमार ही रहते हैं। इधर कुछ समय से जातिगत राजनीति को साधने के लिए गठबंधन का दौर चल रहा है। चूंकि भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है तो सभी छोटे छोटे दल भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन को उत्सुक दिखाई देते हैं और जब भारतीय जनता पार्टी से बात नहीं बन पाती है तब वह दूसरी पार्टियों की तरफ रुख करते हैं।
पहले के समय में नेता दलबदल करते थे लेकिन दलबदल कानून लागू हो जाने के बाद पार्टियां गठबंधन का दलबदल करने लगी हैं। इनमें बहुत सी पार्टियां ऐसी हैं कि यदि उनको कि दूसरी बड़ी पार्टी का साथ न मिले तो वह अपना एक प्रत्याशी भी जिता पाने में असमर्थ हैं। लेकिन बड़ी पार्टियों को यह फायदा है कि उनके जातिगत आंकड़े अच्छी तरह से फिट हो जाते हैं। अभी हाल ही में भारतीय जनता पार्टी ने विपक्षी नेताओं के लिए अपने दरवाजे पूरी तरह से खोल दिए हैं। फिर एक बार मोदी सरकार के नारे के साथ भारतीय जनता पार्टी का लोकसभा चुनावों का व्यापक संगठनात्मक अभियान शुरू हो गया है, पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में दिए गए इस नारे के साथ भारतीय जनता पार्टी ने दूसरे दलों के नेताओं के लिए अपने द्वार खोले हैं। केन्द्र से लेकर राज्य और जिलों में बनाई गई ज्वाइनिंग कमेटियां पूरी तरह से सक्रिय हो गई हैं। चुनावों तक लगभग हर रोज कहीं न कहीं दूसरे दलों के प्रमुख नेताओं को भारतीय जनता पार्टी में लाया जाएगा। पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेताओं को इस काम की जिम्मेदारी सौंपी है। अभी हाल ही में मध्य प्रदेश में यह निश्चित हो गया था कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनके पुत्र नकुल नाथ कांग्रेस पार्टी छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी में जा रहे हैं। लेकिन राहुल गांधी ने किसी तरह से कमलनाथ को मनाने में कामयाबी हासिल की। और उनके बेटे नकुल नाथ का टिकट पक्का कर दिया। अभी भी भारतीय जनता पार्टी के नेता अन्य पार्टियों के नेताओं के संपर्क में हैं।
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