अदालत की चक्की में पिसती जिंदगी

अदालत की चक्की में पिसती जिंदगी

हमारे जीवन के शांत कोनों में, दैनिक अस्तित्व के हलचल भरे शोर से परे, अपनी यात्रा की जटिलताओं से जूझ रहे व्यक्तियों की अनकही कहानियाँ छिपी हैं। यह इन सूक्ष्म आख्यानों में है कि मानवीय भावनाओं की सच्ची कशीदाकारी बुनी गई है, खुशी और दुःख के धागे जटिल रूप से आपस में जुड़े हुए हैं। जैसे-जैसे हम अपने साझा मानवीय अनुभव के विशाल विस्तार को नेविगेट करते हैं, हम जिन संघर्षों का सामना करते हैं और जिन जीतों का हम जश्न मनाते हैं उनमें एक अंतर्निहित सुंदरता होती है।


जीवन के उतार-चढ़ाव के बीच, मानव आत्मा के भीतर एक गहन लचीलापन मौजूद है। प्रत्येक व्यक्ति, रात के आकाश में एक अकेले तारे की तरह, एक अनोखी चमक रखता है जो अक्सर व्यक्तिगत चुनौतियों की छाया से अस्पष्ट हो जाती है। अनकहे बोझों का बोझ एक सार्वभौमिक साथी है, जो सीमाओं और संस्कृतियों से परे है, जो हमें सहानुभूति की मूक भाषा के माध्यम से जोड़ता है।


अदालतों के सन्नाटे और बंद दरवाजों के पीछे की धीमी बातचीत में, व्यक्ति खुद को कानूनी कार्यवाही के जटिल जाल में उलझा हुआ पाता है। फिर भी, कानूनी शब्दजाल और लंबित मामलों की पेचीदगियों से परे, एक मानव हृदय धड़कता है, जो न्याय और समझ के लिए सार्वभौमिक इच्छा को प्रतिध्वनित करता है। यह हमारी साझा मानवता का प्रमाण है कि विपरीत परिस्थितियों में भी, व्यक्ति समाधान और मुक्ति की अटूट आशा के साथ बने रहते हैं।


अदालती नाटक से परे, मानवीय टेपेस्ट्री रोजमर्रा के संघर्षों में भी सामने आती है जो अक्सर सुर्खियों से बच जाते हैं। आत्म-संदेह के खिलाफ शांत लड़ाई में, सपनों की तलाश में, और अपनेपन की भावना की तलाश में, लोग अपने जीवन के जटिल इलाके को पार करते हैं। ये संघर्ष भले ही सुर्खियाँ बनें, लेकिन ये हमारे सामूहिक अस्तित्व की पृष्ठभूमि में बजने वाली मूक सिम्फनी हैं।


जुड़ाव के कोमल क्षणों में ही हम वास्तव में मानवीय अनुभव की गहराई को समझ पाते हैं। साझा मुस्कुराहट जो दूरियों को पाटती है, आरामदायक स्पर्श जो एक घायल आत्मा को शांति देता है, और अनकही समझ जो शब्दों से परे है - ये वे धागे हैं जो हमें एक साथ बांधते हैं। जीवन की टेपेस्ट्री में, यह मानवीय संबंध हैं जो कपड़े में रंग जोड़ते हैं, साझा खुशियों और दुखों की एक पच्चीकारी बनाते हैं।


जैसे ही हम अपनी सामूहिक यात्रा की पेचीदगियों पर विचार करते हैं, आइए हम उस सुंदरता को नज़रअंदाज़ करें जो सांसारिक, अनजान और अनकही में रहती है। रोजमर्रा की जिंदगी की शांत लय में, कानूनी लड़ाइयों और व्यक्तिगत संघर्षों की जटिलताओं के बीच, हमारी साझा मानवता की धड़कन निहित है। और इन सूक्ष्म बारीकियों को स्वीकार करने और अपनाने में ही हम वास्तव में अपने अस्तित्व के हृदयस्पर्शी सार को उजागर करते हैं। अनगिनत ऐसे मामले है जिसमें एक निर्दोष व्यक्ति भी कई सालो तक कैदियों को तरह जीवन जीता है और अपना सारा जीवन एक झूठे अदालती केस के चक्कर में बरबाद कर लेता है l

आधुनिक समाज में तो सारी हदें पार हो गईं है अगर आपस में किसी बात को लेकर लड़ाई होती है तो दूसरे को बरबाद करने में व्यक्ति अपनी बहु बेटी पत्नी द्वारा 376 लगाने से नही चुकता अधिकतर ऐसे सारे मामले फर्जी निकले है लेकिन तब तक बहुत देर हो जाती है और उस व्यक्ति की छवि इतनी धूमिल हो जाती है की वह कभी कभी आत्महत्या की ही सही रास्ता समझता है एक झूठा केस एक आदमी जान ले लेता है क्या इतना सरल है 376 लगाना की जब मन में आया किसी भी बात पर किसी भी व्यक्ति पर लगा दिया जाए  ऐसा ही एक केस अभी हाल में ही देखने को मिला है कोर्ट नंबर 66 केस नंबर  41458 में कैसे बेबुनियादी धारा लगाकर फंसाया जा रहा है है  आवेदक पर यह आरोप है  उसने अन्य सह -अवभयकक्तों के साथ मिलकर पीड़िता के साथ बलात्कार किया 


लेकिन आवेदक द्वारा लगाई धाराएं विरोधाभासी और मेडिकल रिपोर्ट में साफ हो गया है की एक ऐसा कुछ नहीं हुआ इसी तरह के हजारों मामले जिसने व्यक्ति कई आरोप का होते हुए भी झूठे केस के चक्कर में पड़कर चाहे एससीएसटी का हो रेप का हो आदलत रूपी चक्की में पिसता रहता है उसकी मां मर्यादा धन समय और कभी कभी जीवन भी एक झूठे केस के चक्कर में पिस जाता है क्या इतनी कमजोर है अपनी न्याय प्रणाली की किसी का जो मन है वो वह धारा उठाकर किसी के मुंह पर थोप दे किन्ही दो व्यक्तियों में लड़ाई होती है खेत को लेकर दोनो ने लड़ाई बराबर की पर एक व्यक्ति ने एससीएसटी एक्ट लगा दिया और दूसरे व्यक्ति का जीवन बरबाद कर दिया बेटा बाहर पढ़ने गया है l

गांव में पिताजी और पड़ोस के चाचा से लड़ाई हुई चाचा ने बेटे पर मुकदमा लिखा दिया अब बताइए वह पढ़ाई करे या कोर्ट के चक्कर काटे एक झूठे मुकदमे ने उसकी जिंदगी में तूफान ला दिया उसे नौकरी कोन देगा मुझे लगता है अब अदालत को इन फर्जी मुकदमों को लेकर कोई सख्त कदम उठाना पड़ेगा और एक जनसमान मुहिम चलानी होगी जिसमें मुकदमों के बारे में बताया जाए और झूठे मुकदमों के बारे में भी जागरूक किया जाए

अदालत की चक्की में पिसती जिंदगी

सचिन बाजपेयी 

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