हिन्दू विरोध में बदल गया है बांग्लादेश का आरक्षण आंदोलन
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बांग्लादेश इस समय आरक्षण विरोधी आंदोलन के चलते गंभीर संकट से जूझ रहा है। आरक्षण के विरोध में संपूर्ण बांग्लादेश में हिंसा हो रही है। अब तक सरकारी आंकड़ों के मुताबिक डेड़ सौ से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। वैसे यह सरकारी आंकड़ा 130 है और यह कितना सच है, इसे समझा जा सकता है। नौकरियों की कमी से गुस्साए प्रदर्शनकारी उस प्रणाली को समाप्त करने की मांग कर रहे थे, जिसके तहत 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने वालों के परिजनों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत तक आरक्षण दिया जाता था. सरकार ने बड़े पैमाने पर छात्रों के विरोध प्रदर्शनों के बाद 2018 में इस पर रोक लगा दी थी, लेकिन जून में बांग्लादेश के हाई कोर्ट ने आरक्षण बहाल कर दिया था, जिसके बाद देश में फिर से विरोध प्रदर्शन शुरु हो गए थे।
हालांकि हालात बिगड़ते देख कर सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के आरक्षण के आदेश को रोक लगा दी है। बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने रविवार के अपने फैसले में कहा कि 93 प्रतिशत सरकारी नौकरियां योग्यता आधारित प्रणाली के आधार पर आवंटित की जाएं, पांच प्रतिशत 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में भाग लेने वालों के परिजनों और अन्य श्रेणियों के लिए दो प्रतिशत सीटें आरक्षित रखी जाएं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। इस बीच अब आरक्षण के खिलाफ जारी प्रदर्शन बांग्लादेश में हिंदुओं के विरोध में बदलता जा रहा है। बांग्लादेश में जारी हिंसक प्रदर्शनों के बीच एक हजार भारतीय छात्रों की वतन वापसी हो गई है। हालांकि अभी भी वहां हजारों की संख्या में छात्र फंसे हैं, जो जल्द घर आने की कोशिशों में जुटे हैं। बांग्लादेश में इस हफ्ते सरकारी नौकरियों के लिए विवादास्पद कोटा प्रणाली को लेकर बवाल मचा हुआ है।
दरअसल बांग्लादेश में छात्रों के नेतृत्व में हो रहे विरोध प्रदर्शन शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार की नौकरी कोटा प्रणाली के खिलाफ हैं, जो कुछ समूहों के लिए सरकारी नौकरियों का एक बड़ा हिस्सा आरक्षित करती है। प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि यह प्रणाली भेदभावपूर्ण है और मेधावी उम्मीदवारों को सरकारी पद हासिल करने से रोकती है। आरक्षण के विरोध में बांग्लादेश में जो हिंसा हो रही है, वैसे तो यह उसका आंतरिक मामला है लेकिन इसके संदर्भ भारत से भी बहुत गहरे जुड़े हुए हैं। बांग्लादेश में पहले 30 प्रतिशत आरक्षण बांग्लादेश मुक्ति संग्राम सेनानियों के परिवारों को मिलता था। लेकिन इस आरक्षण के खिलाफ बांग्लादेश में आंदोलन हुआ जिसके बाद इसे वापस ले लिया गया था। आंदोलन उचित भी था क्योंकि बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन को आधी सदी हो गया है, अब उनकी तीसरी पीढ़ी को आरक्षण देने का कोई मतलब नहीं।
लेकिन नेता अपना स्वार्थ देखता है भले ही इसके लिए देश बर्बाद हो जाये। कुछ लोग अदालत में गये और यह फैसला ले आये कि 30 फीसद आरक्षण फिर लागू किया जाये। संभवतः शेख हसीना की सरकर ने अदालत से इस तरह का फैसला करवाया और फिर उसे लागू कर दिया। इसका कारण यह है कि बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन से ही शेख हसीना ही पार्टी बनी है और ज्यादातर स्वतंत्रता सेनानी के परिवार शेख हसीना की पार्टी में ही हैं। इस तरह 30 प्रतिशत आरक्षण का सीधा लाभ शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी के कार्यकर्ताओं को मिलता है। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इसीलिए अति उत्साह में 30 प्रतिशत आरक्षण लागू किया। लेकिन उनको जनता के विरोध का अंदाजा नहीं था।
आरक्षण लागू होते ही बांग्लादेश के लोग सड़कों पर आ गये और पूरे बांग्लादेश को हिंसा के हवाले कर दिया। परिणाम स्वरूप सैकड़ों लोग मारे गये। तमाम सरकारी भवनों को आगे के हवाले कर दिया गया। पूरा बांग्लादेश जल उठा। हिंसा कहीं भी हो उसको जायज नहीं ठहराया जा सकता है। कोटा विरोधी प्रदर्शनों को कॉर्डिनेट करने वाले नाहिद इस्लाम ने कहा, कि "हम सामान्य रूप से कोटा प्रणाली के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हम चाहते हैं, कि 1971 के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए 30 प्रतिशत कोटा खत्म कर दिया जाए।"
उन्होंने कहा, कि "बांग्लादेश में कई युवाओं के लिए सरकारी नौकरियां ही एकमात्र उम्मीद हैं, और यह कोटा प्रणाली उन्हें अवसरों से वंचित कर रही है।"प्रदर्शनकारियों का मानना है, कि ये रिजर्वेशन प्रधानमंत्री शेख हसीना की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए दिया जाता है और आरक्षण से उनकी सरकार को भारी फायदा मिलता है, क्योंकि आरक्षण लेने वाले उनके ही समर्थक हैं।
आंदोलनकारियों का मानना है, कि कोटा का गलत फायदा उठाया जा रहा है। उनका तर्क है, कि कोटा भेदभावपूर्ण है और इसे योग्यता आधारित प्रणाली से बदला जाना चाहिए।भारत की तरह बांग्लादेश में भी सरकारी नौकरियों का क्रेज है, क्योंकि इसमें काफी अच्छा वेतन दिया जाता है। लेकिन, आधे से ज्यादा सरकारी नौकरियों में अलग अलग आरक्षण व्यवस्था है। प्रदर्शनकारियों का दावा है, कि वे किसी भी राजनीतिक समूह से जुड़े नहीं हैं। अल-जजीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस आंदोलन को छात्र विरोधी भेदभाव आंदोलन के रूप में जाना जाता है। राजधानी में ढाका विश्वविद्यालय और चटगांव विश्वविद्यालय के हजारों छात्र आरक्षण विरोधी आंदोलन में शामिल हो गए हैं। और फिर यह देश के अन्य विश्वविद्यालयों में भी फैल गया है। लेकिन इस बीच कुछ ऐसी वीडियोज भी सामने आई है, जो इस बात की तस्दीक कर रहा है कि यह विरोध प्रदर्शन अब हिंदू विरोधी होते जा रहे हैं।
सोशल मीडिया पर बांग्लादेश से वीडियो वायरल हो रहा है, जिसे लेकर दावा किया जा रहा है कि आरक्षण के विरोध में जारी हिंसा अब हिंदुओं के खिलाफ में बदलती जा रही है। यहां तक बताया जा रहा है कि हिंसा की आड़ में प्रदर्शनकारी हिंदू लोगों का घर तक फूंक रहे है।बांग्लादेश में जो आरक्षण विरोध का हिंसा चल रहा है उसे अब भारत विरोध और हिंदू विरोध में बदल दिया गया। यह प्रदर्शनकारी माइक पर बोल रहा है- "भारत जादेर मामार बारी, बांग्ला छारो तारा तारी" यानी "जिनके चाचा का घर भारत है, वे बांग्लादेश को जल्दी से छोड़ दें।"पता चल रहा है कि बांग्लादेश में जो थोड़े बहुत हिंदू बच गए हैं इस हिंसा की आड़ लेकर उनके घर फूंके जा रहे हैं उन पर हमला किया जा रहा है और पूरे बांग्लादेश में भारत विरोधी माहौल बनाया जा रहा है।
आपको बता दें कि बांग्लादेश में जारी आरक्षण के खिलाफ हिंसा में अब तक 130 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं इस हिंसा के चलते अब तक 4 हजार से ज्यादा भारतीय छात्र स्वदेश लौट आए हैं। वहीं देश में आरक्षण को लेकर मचे बवाल के बीच बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण रविवार को घटा दिया।
विदेश मंत्रालय जिसने बांग्लादेश में स्थिति को "आंतरिक मामला" बताया, ने कहा कि 778 भारतीय छात्र विभिन्न भूमि बंदरगाहों के माध्यम से भारत लौटे हैं। इसके अलावा लगभग 200 छात्र ढाका और चटगांव हवाई अड्डों के माध्यम से नियमित उड़ान सेवाओं से वापस लौटे हैं। इसी के साथ भारतीय उच्चायोग ने 13 नेपाली छात्रों की वापसी में भी मदद की। विदेश मंत्रालय ने कहा, "ढाका में भारतीय उच्चायोग और हमारे सहायक उच्चायोग बांग्लादेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में रह रहे 4000 से अधिक छात्रों के साथ नियमित संपर्क में हैं और उन्हें आवश्यक सहायता प्रदान कर रहे हैं।"इसके अलावा विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेश में भारतीय नागरिकों को अनावश्यक यात्रा से बचने और घर के अंदर रहने के लिए सलाह जारी की है।
मनोज कुमार अग्रवाल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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