अधर्म पर धर्म की जीत - ज्ञानवापी

 अधर्म पर धर्म की जीत - ज्ञानवापी

संस्कृत के दो शब्दों को जोड़कर बना नाम ज्ञानवापी स्वयं ही यह साबित कर देता है कि यह सनातन परम्पराओं से जुड़ा हुआ स्थान है।
ज्ञानवापी का शाब्दिक अर्थ है ज्ञान का कुंआ। 
स्कंद पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ने स्वयं लिंगाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ये कुआं बनाया था। कहते हैं कि कुएं का जल बहुत ही पवित्र है जिसे पीकर व्यक्ति ज्ञान को प्राप्त हो जाता है। ज्ञानवापी का जल श्री काशी विश्वनाथ पर चढ़ाया जाता था। जानकारों के अनुसार यह कुंड या कुआं मस्जिद और वर्तमान मंदिर के बीच में स्थित है। कहते हैं कि काशी का केन्द्र है ज्ञानवापी कूप। मस्जिद और नए विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि यहां पर जो मंडप था उसे ज्ञानवापी इसलिए कहते थे क्योंकि यहां पर एक संस्कृत पाठशाला का भी संचालन होता था। हमारे पुराणों अनुसार काशी में विशालकाय मंदिर में आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर शिवलिंग स्थापित है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। शिव पुराण और लिंगपुराण में 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में उल्लेख मिलता है। जिसमें काशी का ज्योतिर्लिंग प्रमुख माना गया है। भगवान शिव के त्रिशुल की नोक पर बसी है शिव की नगरी काशी। भगवान शंकर को यह गद्दी अत्यन्त प्रिय है इसीलिए उन्होंने इसे अपनी राजधानी एवं अपना नाम काशीनाथ रखा है। भगवान विष्णु ने अपने चिन्तन से यहां एक पुष्कर्णी का निर्माण किया और लगभग पचास हजार वर्षों तक वे यहां घोर तपस्या करते रहे। पतित पावनी भागीरथी गंगा के तट पर धनुषाकारी बसी हुई है जिसे पाप-नाशिनी कहा जाता है। एक मान्यता यह भी है कि भगवान शिव ने यहीं जगत माता पार्वती को ज्ञान दिया था, इसलिए इस जगह का नाम ज्ञानवापी पड़ा। चौथी और पांचवीं शताब्दी के बीच सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय जिन्हे विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है ने गुप्त साम्राज्य के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। 635 ई० में प्रसिद्ध चीनी यात्री हुआन त्सांग ने अपनी वाराणसी यात्रा के वर्णन में व मंदिर का उल्लेख किया है।
इतिहासकारों के अनुसार 1194 में अफगान लुटेरे मुहम्मद गौरी ने काशी के भव्य मंदिर को लूटकर तुड़वा दिया गया था। मोहम्मद गोरी के मंदिर खंडित करने के बाद मंदिर का निर्माण धर्मप्राण काशी के लोगों ने फिर से कर दिया।
 
फिर फिरोजशाह तुगलक के काल में मंदिर पर हमले की बात होती है। इतिहास में लिखा गया है फ़िरोज शाह कट्टर सुन्नी मुस्लिम था।फिरोज तुगलक के शासनकाल (1351-1388) मे कई मंदिरों को तोड़ा गया।  फिरोजशाह तुगलक ने अपने संस्मरण में लिखा है कि वह सुन्नी समुदाय का धर्मान्तरण सहन नहीं करता और ना ही उसे वह प्रयास सहन थे जिसमें हिन्दू अपने ध्वस्त मंदिरों को पुनः बनायें। उसने बहुत से शिया, महदी और हिंदुओं को मृत्युदंड सुनाया। उसने बहुत से हिंदुओं को सुन्नी इस्लाम में दीक्षित किया और उन्हें जजिया कर व अन्य करों से मुक्ति प्रदान की, जिन्होंने इस्लाम स्वीकार किया था। इतने जुल्मों के बाद भी मंदिर फिर बना। 1447 में जौनपुर के महमूद शाह द्वारा मंदिर को फिर से तुड़वा दिया परन्तु सनातनी लोगों ने बिना हौंसला हारे एक बार फिर से मंदिर बनाया। 1585 में राजा टोडरमल ने इस मंदिर का भव्य रूप से पुर्ननिर्माण कराया था। मंदिर के भव्य स्वरूप को देख तब के मुस्लिम क्षत्रपों ने शाहजहां को इसकी जानकारी दी और उसे मंदिर पर हमला करने के लिए सलाह दी। शाहजहां ने वर्ष 1632 में मंदिर तोड़ने के लिए सेना भेज दी। काशी में मंदिर तोड़ने आये मुगल सैनिकों से दस दिनों तक बनारस की गलियों में नागरिकों ने जमकर संघर्ष किया। मंदिर बचाने के लिए बच्चे, औरतों तक ने अपने को बलिदान कर दिया। जबरदस्त प्रतिरोध के कारण मुगल सेना मुख्य विश्वनाथ मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिरों को तोड़ दिया। इसके बाद 18 अप्रैल 1669 को मुगल आक्रांता औरंगजेब के मंदिर तोड़ने का फरमान का जारी करने का जिक्र इतिहास में मिलता है।एक इतिहासकार डॉ एएस भट्ट ने अपनी पुस्तक ‘दान हारावली’ में भी इसका उल्लेख किया है। मुस्लिम लेखक साकी मुस्तइद ने अपनी पुस्तक ‘मासीदे आलमगिरी’ में विश्वनाथ मंदिर के विध्वंस का जिक्र किया है। काशी के इतिहास पर स्वतंत्र तौर पर शोध कर रहे बनारस बार के पूर्व महामंत्री अधिवक्ता नित्यानंद राय बताते हैं कि औरंगजेब के काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का फरमान आज भी एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में सुरक्षित है। इतिहास में लिखे तथ्यों को रख नित्यानंद राय बताते हैं कि 1669 में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद बनाने का आदेश दिया। मुगल सैनिकों ने मंदिर को काफी क्षति पहुंचाई लेकिन पूरे मंदिर को तोड़ नही पाये परन्तु बाद में मंदिर के तोड़े गए भाग पर औरंगजेब के फरमान पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करा दिया। सन 1752 के बाद मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया और मल्हारराव होलकर ने विश्वनाथ मंदिर के मुक्ति के प्रयास किए, लेकिन तब तक ईस्ट इंडिया कंपनी का राज देश पर हो गया और मंदिर के पुनर्निर्माण का काम रुक गया। बाद में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने 1777-78 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। महारानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा वर्तमान विश्वनाथ मंदिर बनवाने के बाद 1835 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने इसके शिखर पर सोने का छत्र बनवाया था। काशी विश्वनाथ मंदिर के तोड़े गये हिस्से में मंदिर के चिन्ह और गर्भगृह में शिवलिंग होने की बात इतिहासकार मानते हैं। 
 
मंदिर के एक भाग में बनी मस्जिद के सर्वेक्षण में मस्जिद के अंदर हिंदू देवी देवताओं की प्रतिमा है। बताते चले, 15 अक्टूबर 1991 को वाराणसी की अदालत में ज्ञानवापी में नव मंदिर निर्माण और हिंदुओं को पूजन-अर्चन के अधिकार को लेकर पं.सोमनाथ व्यास, डा. रामरंग शर्मा व अन्य ने याचिका दायर की थी। 1998 में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद व यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड लखनऊ की ओर से हाईकोर्ट में विरोध में दो याचिकाएं दायर की गई थी।
07 मार्च 2000 को वादी पं.सोमनाथ व्यास की मृत्यु हो गई। फिर 11 अक्टूबर 2018 को पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी को मुकदमे में वाद मित्र नियुक्त किया गया। मुकदमे में सुनवाई और दलीलों के बीच 8 अप्रैल 2021 को वाद मित्र की अपील मंजूर कर न्यायालय ने पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश जारी कर दिया। इसके बाद इस आदेश के खिलाफ सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने वाराणसी की ज़िला अदालत में पुनरीक्षण याचिका दायर की। जिसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को पांच सदस्यीय कमेटी की देखरेख में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की खुदाई का आदेश दिया गया था। ज्ञानवापी को लेकर हिन्दू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी विवादित ढांचे की जमीन के नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विशेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है। विवादित ढांचे के दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र हैं।
 
1991 में इस मामले में याचिका दाखिल करने वाले हरिहर पांडेय का कहना है कि विवादित स्थिल के भूतल में तहखाना है व मस्जिद के गुम्बद के पीछे प्राचीन मंदिर की दीवार है। उसे आज भी साफ तौर पर देखा जा सकता है। मस्जिद के बाहर विशालकाय नंदी हैं, जिसका मुख मस्जिद की ओर है। इसके अतिरिक्त मस्जिद की दीवारों पर नक्काशियों से देवी देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं। 2021 में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दी। 2022 में कोर्ट के आदेश के अनुसार ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का काम पूरा हुआ। नए सर्वेक्षण में यह साफ हो चुका है की मस्जिद मंदिर को तोड कर उसके स्थान पर बनी है। ज्ञानवापी को लेकर पिछले कुछ दिन से कोर्ट में सुनवाई जारी थी। अब इसको लेकर बड़ा फैसला आया है। हिंदू पक्ष ने कोर्ट में व्यास तहखाने में पूजा करने की अनुमति मांगी थी। अब कोर्ट ने फैसला हिंदू पक्ष के हक में सुनाया है।  हिंदू पक्ष को व्यास तहखाने में पूजा का अधिकार मिल गया है। वहीं साथ में कोर्ट ने जिला प्रशासन को बैरिकेडिंग में व्यवस्था कर पूजा कराने के लिए 7 दिन का समय दिया है। उम्मीद है अन्याय पर न्याय की जीत,अधर्म पर धर्म की जीत का नया उदाहरण संसार को भविष्य में देखने को मिलेगा।

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